बिहार,अपराध और राजनीति

     बिहार में नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल 22 नवंबर 2025 को समाप्त हो रहा है। उम्मीद की जा रही है कि चुनाव आयोग बिहार विधानसभा की सभी 243 सीटों के लिए इसी वर्ष (2025 )के अंत तक यानी अक्टूबर और नवंबर में चुनाव करा सकता है। आगामी चुनावों के मद्देनज़र राज्य में चुनावी सरगर्मियां काफ़ी तेज़ हो गयी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या कांग्रेस नेता राहुल गाँधी या अन्य दलों के शीर्ष नेता सभी चुनावी माहौल को अपने पक्ष में करने की जी तोड़ कोशिश में लग चुके हैं। जब भी बिहार का चुनाव क़रीब आता है मीडिया में 'गुंडाराज ' और जंगल राज जैसे शब्द सुनाई देने लगते हैं। चाहे वह वर्तमान भाजपा-जे डी यू सरकार के लोगों द्वारा एक दशक से भी पहले के लालू यादव राज को याद कर उसे 'गुंडा राज' सम्बोधित कर मतदाताओं में दहशत फैलाने की ग़रज़ से की जाने वाली चर्चा हो या फिर विपक्ष द्वारा नितीश सरकार के शासन में बेख़ौफ़ अपराधियों द्वारा अंजाम दी जाने वाली दुस्साहसिक अपराधी घटनाओं के हवाले से सत्ता पर 'गुंडाराज ' को संरक्षण देने की बात हो। परन्तु बिहार चुनावों में गुंडाराज की चर्चा छिड़ना लगभग स्वाभाविक सा हो गया है। हालाँकि देश के कई अन्य राज्यों में भी अपराध और राजनीति का गहरा सम्बन्ध है। परन्तु बिहार में घटने वाली कुछ आपराधिक घटनाएं ऐसी होती हैं जो पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचती है

     उदाहरण स्वरूप बिहार की राजधानी पटना में 17 जुलाई 2025 की उस सनसनीखेज़ घटना को ही देख लीजिये जबकि पांच सशस्त्र अपराधियों द्वारा पारस HMRI अस्पताल के आई सी यू में घुसकर चंदन मिश्रा नाम के गैंगस्टर की गोली मारकर हत्या कर दी गयी । यह घटना सुबह करीब 7:15 बजे पुलिस मुख्यालय से मात्र दो किलोमीटर दूर हुई। इस घटना के बाद बिहार की क़ानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठना स्वाभाविक था। जिस दुस्साहसिक अंदाज़ में पांच हमलावर, बिना चेहरा ढके हुये , बेख़ौफ़ अंदाज़ में अस्पताल की दूसरी मंजिल पर पहुंचे और केवल चंद सेकंड में इस हत्या को अंजाम देकर बड़ी ही आसानी से अस्पताल से बाहर चले गये इससे राज्य की क़ानून व्यवस्था पर सवाल उठना लाज़िमी था। कांग्रेस ने नितीश सरकार पर क़ानून-व्यवस्था को नियंत्रित करने में विफल रहने का आरोप लगाया तो राजद ने हमलावरों को "सरकारी अपराधी" क़रार देते हुए कहा कि बिहार में 'जंगलराज' की वापसी हो रही है। कई नेताओं ने इस घटना को नीतीश कुमार सरकार की नाकामी का सबूत बताया।

     ऐसी घटनाएं बिहार में अपराधियों के बढ़ते हौसले के साथ साथ अस्पतालों की सुरक्षा और पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाती हैं। आश्चर्य की बात तो यह कि इस शूट आउट से केवल एक दिन पहले यानी  16 जुलाई 2025 को ही  बिहार पुलिस ने यह दावा किया था कि संगठित अपराध और पेशेवर शूटरों पर शिकंजा कसा जा रहा है। परन्तु इस घटना ने तो पुलिस के दावों की पोल ही खोल कर रख दी । उसी दिन यानी 17 जुलाई को ही पटना में एक और हत्या की घटना पेश आई। इस घटना में दानापुर के शाहपुर थाना क्षेत्र में 20 वर्षीय युवक शिवम उर्फ बंटी नामक युवक की अपराधियों द्वारा तेज़ धारदार हथियार से हत्या कर दी गई। इसी तरह 21 जुलाई 2025 को आदित्य कुमार नामक एक युवक की दुल्हिन बाज़ार थाना क्षेत्र के सदावह गांव में  दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या की गई।

     इन्हीं चुनावी माहौल के बीच एक और अप्रत्याशित ख़बर ने राज्य में धमाका कर दिया है। बिहार सरकार के नगर विकास एवं आवास मंत्री जीवेश मिश्रा सहित 9 लोगों को राजस्थान की राजसमंद कोर्ट ने  4 जून 2025  को 15 साल पुराने यानी 2010 के एक नक़ली दवा मामले में दोषी ठहराया है।

     ख़बरों के अनुसार जीवेश मिश्रा पहले दवा कारोबार से जुड़े थे और दिल्ली की आल्टो हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के निदेशक थे। इस मामले ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है, और विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल ने उनके इस्तीफ़े की मांग तेज़ कर दी है। विपक्ष का कहना है कि कि जीवेश मिश्रा को दोषी ठहराए जाने के बावजूद नीतीश कुमार की सरकार और बीजेपी उन्हें संरक्षण दे रही है। कोई जीवेश मिश्रा को  "मौत का सौदागर" कह रहा है तो कोई उन्हें "नक़ली दवा माफ़िया" क़रार देकर उसे बर्ख़ास्त  करने की मांग कर रहा है। इस मामले में 1 से 3 साल तक की सज़ा और 20,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता था परन्तु जीवेश मिश्रा को केवल जुर्माना देकर छोड़ दिया गया। आख़िर ऐसा क्यों ? उधर जीवेश मिश्रा ने इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया और कहा कि वे कोर्ट में जवाब देंगे। बहरहाल इस मामले ने ख़ासकर 2025 विधानसभा चुनाव से पहले बिहार की राजनीति में नया तूफ़ान ज़रूर खड़ा कर दिया है।

     चुनावी वातावरण के बीच बिहार में भारतीय जनता पार्टी के और भी कई नेताओं पर आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के आरोप लगे हैं। मिसाल के तौर पर आरा में भाजपा नेता बबलू सिंह ने कार में रगड़ लगने जैसी मामूली घटना के बाद दो लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी। जंगल राज का इससे बड़ा सुबूत और क्या हो सकता है ? इसी तरह एक अन्य मामले में, भाजपा नेता आलोक कुमार चौहान पर शराब तस्करों को छुड़ाने के लिए 150 लोगों के साथ थाने पर हमला करने, थानाध्यक्ष को पीटने और उनकी वर्दी फाड़ने का आरोप लगा। उधर कुछ दिन पूर्व बिहार सरकार में मंत्री और पूर्व उपमुख्यमंत्री रेणू देवी के भाई पर ज़मीन हड़पने, अपहरण, हत्या और रंगदारी जैसे संगीन मामलों में शामिल होने का आरोप लगा । एक घटना में मंत्री रेणू देवी के भाई  पर बेतिया में एक व्यक्ति का अपहरण कर होटल में ले जाकर मारपीट करने जैसा गंभीर आरोप लगा। हाल के आंकड़ों में बिहार में जिन 31 हत्याओं का उल्लेख किया गया, उनमें से कुछ में राजनीतिक नेताओं के कथित संबंध भी सामने आए। इसी तरह पिछले दिनों पटना में भाजपा नेता विक्रम झा की हत्या और व्यवसायी गोपाल खेमका की हत्या जैसे मामलों ने क़ानून-व्यवस्था पर सवाल उठाए। ऐसे में जहां राजद नेता तेजस्वी यादव भाजपा को "गुंडों, अपराधियों और बलात्कारियों की पार्टी" क़रार दे रहे हैं वहीँ जवाब में भाजपा ने राजद-कांग्रेस गठबंधन को "अपराध की संस्कृति" का जनक बताया है। कहा जा सकता है कि सुशासन के लाख दावों के बावजूद  दुर्भाग्यवश बिहार में आज भी अपराध और राजनीति का चोली दामन का साथ है।

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