बाबा रामदेव : अपने घर शीशे के और दूसरों के घरों पर पत्थर ?

तंजलि समूह के कर्ता धर्ता बाबा रामदेव देश की एक अनोखी व अभूतपूर्व शख़्सियत हैं। पहले गेरुआ वस्त्र धारण कर योग गुरु के रूप में अपनी पहचान बनाई।  फिर योग के बहाने अपने अनुयायियों में आयुर्वेद और स्वदेशी पर प्रवचन देना शुरू किया ,इसी माध्यम से उन्होंने अपने लाखों अनुयायी तैय्यार कर उन्हें भावनात्मक रूप से स्वदेशी उत्पाद ख़रीदने के लिये प्रोत्साहित किया। और बाद में पतञ्जलि समूह गठित कर आयुर्वेद दवाइयों का कारोबार शुरू किया और धीरे धीरे खाद्य कृषि-शोध व स्वास्थ्य से लेकर Farmers producer organisations तक तैयार कर दिये। ख़बरों के अनुसार बाबा जी के  17 टी वी चैनल भी चलते हैं। बताया जाता है कि इस समय पतंजलि समूह का कारोबार करीब 35 हज़ार करोड़ रुपए का है। पतंजलि समूह को देश की दूसरी सबसे बड़ी FMGC  कंपनी भी बताया जा रहा है।यह भी कहा जाता है कि इस समय पतंजलि समुह  लगभग सभी व्यवसायिक क्षेत्र में अपने पैर  पसार चुका है या इसकी कोशिश में लगा है। जहां तक बाबा रामदेव की संपत्ति का प्रश्न है तो पतंजलि आयुर्वेद का स्वामित्व बाबा रामदेव के पास होने के बजाये उनके परम सहयोगी व पतंजलि आयुर्वेद के सीईओ आचार्य बालकृष्ण के पास है। बालकृष्ण के पास कंपनी का लगभग 98.5 फीसदी शेयर है। इस तरह आचार्य बालकृष्ण की संपत्ति अनुमानतः  2.5 बिलियन डॉलर है। मज़े की बात तो यह है कि बाबा रामदेव की संपत्ति शून्य है।बाबा रामदेव ने स्वयं बता चुके हैं कि पतंजलि समूह का पूरा कारोबार करीब 35 हजार करोड़ रुपए का है

परन्तु रामदेव ने जितना अधिक और जितनी तेज़ी से अपने व्यवसाय का विस्तार किया उतना ही अधिक वे विवादों में भी घिरे रहे हैं। उनके व उनके व्यवसायिक पतंजलि समूह के विवादों में घिरने के अलग अलग कारण रहे हैं। कभी वे अपने बड़बोलेपन के कारण विवादों से घिरे कभी नेताओं की तरह अपने अनुयायियों को झूठे सस्ता डीज़ल पेट्रोल दिलाने जैसे झूठे सपने दिखाकर,कभी फटी जीन जैसे पहनावे को बुरा बताकर और बाद में वही फटी जीन ख़ुद बेचते हुए,कभी कोरोना से बचाव की दवा बनाने का दावा करते हुये तो कभी अपने उत्पाद को एलोपैथी दवाईयों से अधिक कारगर बताते हुये। अनेक बार उनके कई ऐसे उत्पाद भी संदिग्ध हो चुके हैं और गुणवत्ता के मापदंड पर फ़ेल या जांच के दौरान अशुद्ध या मिलावटी भी साबित हो चुके हैं जिन्हें वे शुद्ध व स्वदेशी बताते रहे हैं। परन्तु प्रायः यही देखा गया है कि जब वे अपने उत्पाद का गुणगान करते हैं तो साथ ही उसके समान चल रहे दूसरे प्रचलित उत्पाद में कमियां ज़रूर निकालते हैं। और अपने इस व्यवसायिक रवैय्ये के लिये उन्हें कई बार इंडियन मेडिकल एसोसिएशन IMA से लेकर WHO विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधियों यहाँ तक कि अदालतों तक की झिड़कियां भी सुननी पड़ी हैं। रामदेवअपने सार्वजनिक भाषणों में जहां पतंजलि निर्मित कोरोनिल नामक से कोविड-19 का इलाज करने का दावा करते रहे हैं वहीं साथ साथ वे कोरोना वायरस संक्रमण के को नियंत्रित रखने वाली वैक्सीन को भी प्रभावहीन बताते रहे हैं। वे आयुर्वेद चिकित्सा को एलोपैथी चिकित्सा से अधिक प्रभावी भी बता चुके हैं।

पिछले दिनों एक बार फिर बाबा रामदेव ने एलोपैथी के प्रति अपने दुराग्रह को ज़ाहिर करते हुए इसके विरुद्ध जहर उगला। पिछले दिनों जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन कोविड संक्रमण का शिकार हुये तो  रामदेव ने कहा कि तीन बार वैक्सीन की डोज लेने के बावजूद बाइडेन का संक्रमित हो जाना एलोपैथी की नाकामी का सुबूत है। उन्होंने इसे मेडिकल साइंस की विफलता क़रार दिया। इस बार भी अदालत बाबा दिल्ली उच्च न्यायलय ने रामदेव को फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कि किसी को भी एलोपैथी के विरुद्ध गुमराह नहीं किया जाना चाहिए। उच्च न्यायलय ने योग गुरु से कहा कि उन्हें ‘तथ्यों से इतर’ कुछ भी बोलकर जनता को गुमराह नहीं करना चाहिए। कोविड-19 के इलाज के लिए पतंजलि कंपनी द्वारा विकसित कोरोनिल के संबंध में कथित रूप से गलत सूचनाएं फैलाने को लेकर डॉक्टरों के विभिन्न संगठनों द्वारा योग गुरु के खिलाफ दायर मुकदमे की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति अनूप जयराम भम्भानी ने कहा कि उनकी चिंता भी प्राचीन औषधि विज्ञान आयुर्वेद के सम्मान को बचाए रखने की है। गत वर्ष विभिन्न संगठनों ने उच्च न्यायालय में मुकदमा दायर करके रामदेव पर आरोप लगाया था कि वह जनता को गुमराह कर रहे हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण से होने वाली ज्यादातर मौतों के लिए एलोपैथी जिम्मेदार है और साथ ही वे यह भी दावा कर रहे हैं कि कोरोनिल से कोविड-19 का इलाज किया जा सकता है।

पिछले ही दिनों एक बार फिर पतंजलि ब्रांड का गाय के घी का सैंपल जोकि उत्तराखंड के टिहरी की एक दुकान से लिया गया था,खाद्य सुरक्षा और औषधि विभाग की जांच में फेल हो गया है। घी के नमूने की प्रयोगशाला में की गयी जांच की रिपोर्ट के अनुसार पतंजलि घी में मिलावट की गई थी और पतंजलि ब्रांड का गाय का का घी मानकों के अनुरूप नहीं था जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी है। परन्तु पतंजलि ने इस रिपोर्ट को मानने से इंकार करते हुये राज्य की लैबोरेट्री की रिपोर्ट को ही ग़लत बता डाला। उसके बाद खाद्य सुरक्षा और औषधि विभाग ने घी का नमूना एक बार फिर जांच के लिये केंद्र की प्रयोगशाला में भेजा। पतंजलि ब्रांड का यह घी केंद्रीय प्रयोगशाला में भी फेल हो गया। घी के अतिरिक्त चावल के सैंपल की भी रिपोर्ट भी फेल हो चुके हैं। चार धाम यात्रा में चंबा-धरासू राजमार्ग पर स्थित सेलू पानी में एक होटल से पतंजलि द्वारा बेचे जा रहे खाने के चावल का नमूना लिया गया।  इस चावल के सैंपल की भी रिपोर्ट फेल पाई गई है। चावल में बड़ी मात्रा में कीटनाशक मिलने की पुष्टि हुई। जोकि उपभोक्ता के स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है।

दरअसल रामदेव व उनके सहयोगी बालकृष्ण अपने द्वारा संचालित टी वी चैनल्स के अतिरिक्त अन्य प्रमुख टी वी चैनल्स पर भी अपने विभिन्न उत्पादों के भ्रामक विज्ञापन देकर अपने अनुयायियों सहित देश की आम जनता को भी गुमराह कर अपना व्यवसाय बढ़ाने में माहिर हैं। उनकी कंपनी छोड़ चुके अनेक कर्मचारी उनके उत्पाद और उनके व्यवसाय की  हक़ीक़त को उजागर करते रहे  चुके हैं। परन्तु सत्ता के रहम-ो-करम पर नक़ली,मिलावटी व विषाक्त पदार्थों के उत्पादन  लिये न तो रामदेव की कंपनी के विरुद्ध कोई कार्रवाई की जा रही है न ही उनकी बेलगाम वाणी पर नियंत्रण पाया जा रहा है।  शायद यही वजह है कि उनके अपने घर शीशे के होने के बावजूद उनका दूसरों के घरों पर पत्थर फेंकने का सिलसिला बदस्तूर जारी है ?

  (ये लेखक के अपने विचार हैं यह आवश्यक नहीं कि भारत वार्ता इससे सहमत हो )