साल भर पहले यही भ्रष्ट्राचार ताकत थी

गृहमंत्री चिदबंरम ने पिछले दिनों दिल्ली में शीपिंग कारपोरेशन ऑफ इंडिया के एक कार्यक्रम में पत्रकारों से कहा आप राडिया मीडिया के हैं। फिर कहा अगर आप राडिया के टेप नहीं है तो फिर मीडिया में कैसे हैं। जाहिर है पी.चिदंबरम ने यह बात मजाक में कही थी।

 

..लेकिन क्या चिदबरंम इस हकीकत से इंकार कर सकते हैं कि जिस 2जी स्पेक्ट्रम और ए. राजा को लेकर राडिया टेप बना, उस पर बतौर वित्त मंत्री पी.चिदबंरम ने 2008 में ही चार पन्नों की टिपप्णी लिखी थी। अपनी टिप्‍पणी में उन्‍होंने टेलीकॉम्‍ मंत्री ए.राजा के 2जी स्पेक्ट्रम के खेल पर सीधे अंगुली उठाते हुये देश को लगते चूने की बात कही थी। और गृह सचिव मधुकर गुप्ता ने 24 सिंतबर 2008 में उस फाइल पर से आंख मूंद लीं जिसमें पद्मभूषण से सम्मानित पत्रकार के राडिया से बातचीत का जिक्र भी था। असल में इन दो सवालों के जरिये समझना जरुरी है कि जो घपला-घोटाला या भ्रष्ट्राचार आज नजर आ रहा है वह एक-दो साल पहले क्यों अलग नजरिये से देखा जा रहा था। या फिर उस वक्त भ्रष्ट्राचार की परिभाषा में यह सब “पावर” का प्रतीक था।

 

तो पहले बात गृह मंत्री की। 15 नवबंर 2008 में पहली बार मुख्य सतर्कता आयुक्त ने संचार मंत्री ए.राजा को स्पेक्ट्रम घपले पर कारण बताओ नोटिस दिया और उसके तुरंत बाद अपनी जांच के आधार पर प्रधानमंत्री को विस्तृत रिपोर्ट भेजकर अभियोजन प्रक्रिया शुरू करने की मांग की। उस रिपोर्ट में वित्त मंत्री चिदबरंम की वह चार पेजी टिप्पणी भी नत्थी थी, जिसे वित्त मंत्री ने 2जी स्पेक्ट्रम में पहले आओ, पहले पाओ की पॉलिसी अपनाकर देश के राजस्व को चूना लगाना शुरु किया था। और वित्त मंत्रालय देश के बजट में जहां-जहां से देश के खजाने में कमाई आने का अंदेशा लगाये हुये था इसका भी बंटाधार होते हुये चिदबंरम देख भी रहे थे और गठबंधन के धर्म तले टिपण्णी से आगे जाने की हिम्मत भी नहीं दिखा पा रहे थे। क्योकि अगर याद कीजिये तो जब 3जी स्पेक्ट्रम से देश को कमाई हुई तो वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने पहली टिपण्णी यही की थी कि इस कमाई से मनरेगा से लेकर तमाम सामाजिक कार्यक्रमो को पूरा करने में सरकार का धाटा पूरा हो जायेगा।

 

लेकिन उस वक्त वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने 2जी स्पेक्ट्रम की कम कमाई पर कोई टिपण्णी नहीं की। यानी इस साल 27 फरवरी को बजट वाले दिन भी सरकार को यह नहीं लगा कि 2जी स्पेक्ट्रम को कौडि़यों के मोल बेचकर भारी घपला किया गया है। जबकि वित्त मंत्रालय ने ही 2008 में इस मामले में पहली टिप्‍पणी भेजी थी। यानी चिदंबरम 2008 में सिर्फ टिप्‍पणी कर सकते थे और 2010 में प्रणव मुखर्जी सिर्फ खामोशी बरत सकते हैं। लेकिन अब जब सीबीआई को 2जी स्पेक्ट्रम घपले पर ए.राजा की कार्रवाईयो को लेकर चार्जशीट दाखिल करनी है तो सीबीआई को ज्यादा मेहनत की जरुरत इसलिये नहीं है क्योकि तत्कालिन वित्तमंत्री की चार पेजी टिपण्णी ही सीबीआई के लिये काफी है। तो क्या इसीलिये चिदंबरम या प्रणव मुखर्जी अब स्पेक्ट्रम घोटाले पर जेपीसी की मांग आते ही तुरंत खारिज करते है क्योंकि जेपीसी में इसकी जानकारी भी सभी के सामने आ जा जायेगी कि कैसे वित्त मंत्री को तो हर घपले की जानकारी थी। क्योंकि अक्टूबर 2009 में सीबीआई के केस दर्ज करने के अगले ही दिन 22 अक्टूबर 2009 को टेलीकॉम मंत्रालय में छापे मारने के बाद जब ए. राजा के खिलाफ सीबीआई ने कानूनी कार्रवाई करने की सोची तो वह सारे दस्तावेज सीबीआई के प्रोसीक्यूशन विंग को भेजे और उसमें वित्त मंत्रालय यानी तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम की चार पेजी टिप्‍पणी भी नत्थी थी। लेकिन प्रसीक्यूशन विंग चूंकि कानून मंत्रालय के अधीन आता है तो फिर सारी फाइलें भी सीबीआई के प्रसिक्यूशन विंग से कानून मंत्रालय और वहा से पीएमओ चली गयी।

 

इस पूरे दौर में वित्त मंत्रालय की तरफ आज तक इसका जिक्र नहीं जा रहा है कि 2008 में वित्त मंत्री चिदंबरम ने जो सवाल खडे किये थे उनका जवाब ना कानून मंत्रालय ने दिया ना ही पीएमओ ने। लेकिन महत्वपूर्ण है कि राडिया का टेलीफोन टैप करने के लिये सबसे पहले आयकर निदेशालय ने ही गृह सचिव से इजाजत मांगी थी। और तब सवाल टीडीएस का था। यानी टैक्स चोरी का। और राडिया फोन टैप की जानकारी तब भी वित्त मंत्रालय को थी। क्योंकि इन्‍कम टैक्स की फाइल तो वित्त मंत्रालय के जरिये ही गृहमंत्रालय पहुंची और उसी के बाद राडिया के फोन टेप हुये। चिदंबरम अब देश के गृहमंत्री हैं। अब दूसरा सवाल। पिछले साल जिस वक्त सरकार देश के महान विभूतियों को छांट कर उन्हे पद्मभूषण, पद्म विभूषण या पद्मश्री सरीखे सम्मान से सम्मानित करने का सोच रही थी उनके नाम किसी भ्रष्ट्राचार या अपराध में नहीं है इसके लिये समूची लिस्ट अलग-अलग जांच एंजेसियों को भी भेजी गयी। और सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में तब भी नीरा राडिया के साथ जिनकी बात फोन पर हो रही थी उनके नाम को सम्मानित किये जाने वाले नामो का मिलान किया था। और उस वक्त भी उन पत्रकारो के नाम सीबीआई ने गृहमंत्रालय को भेजकर यह टिप्पणी की थी कि सीबीआई 2जी स्पेक्ट्रम मामले में जो जांच कर रही है और नीरा राडिया के फोन टेप से जो नाम निकल कर आ रहे है उनमे से कुछ नाम सरकार की सम्मानित सूची में भी हैं। इस मोस्ट अरजेंट फाइल पर गृह सचिव की नजर नहीं गई होगी ऐसा हो नही सकता है। क्योंकि राडिया का फोन टैप करने की इजाजत तत्तकालिन गृह सचिव मधुकर गुप्ता ने दी थी और पहले छह महीने के फोन टैप करने के बाद जब उसकी समय सीमा बढाने की बात आयी तो फिर से गृह मंत्रालय का दरवाजा खटखटाया गया। क्योंकि पोस्ट एंड टेलीग्राफ एक्ट के तहत हर छह महीने में इजाजत दोबारा लेनी जरुरी होती है। ऐसे में गृह मंत्रालय को यह जानकारी थी कि भ्रष्ट्राचार के मामले में ही नीरा राडिया का फोन टैप हो रहा है। बावजूद इसके मधुकर गुप्ता ने उस फाइल की अनदेखी की जिसमें नीरा राडिया से जुडे उघोगपतियो, नेताओ, नौकरशाह और पत्रकारों के नाम टेप में सामने आये थे। फिलहाल पत्रकारों में जो नाम खुलकर सामने आया है और जिन्हे पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया वह बरखा दत्त का है। जबकि सीबीआई ने इस फाइल में कई नाम का जिक्र किया है। कहा जा सकता है कि बाकियों के नाम अभी सामने नहीं आये हैं।

 

लेकिन बडा सवाल तो यह भी है कि गृह सचिव ने तब भ्रष्ट्राचार की नीरा राडिया फाइल पर आंख मूंदी थी या उस दौर में यह सोचना भी गुनाह था कि पद्मश्री, पद्मभूषण या पद्मविभूषण से सम्मानित लोगो की सरकारी सूची में किसी नाम को ब्लैक लिस्टेट करना अपराध माना जायेगा। या सरकार को आईना दिखाने वाले नौकरशाह अब बचे नहीं हैं। इसलिये राडिया टेप सामने आने के बाद या कहें देश में भ्रष्ट्राचार के खिलाफ माहौल बनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी जिस तरह प्रधानमंत्री से लेकर सीवीसी तक को कटघरे में खडा करने में देर नहीं लगायी उसके अक्स में अगर 2008-09 के दौर को देखें तो मंदी से निपटते मनमोहन सिंह, चिदंबरम और प्रणव मुखर्जी की तिगड़ी खासी महत्वपूर्ण लगती थी। विकास दर के आंकडे दुनिया के सामने मनमोहन इक्नामिक्स को ही श्रेष्ठ माने हुये थे। लेकिन, अर्से बाद जब मनमोहन इक्नामिक्स तले भ्रष्‍टाचार की परते उघाड़ी जा रही हैं तो कौन इसके दायरे में है और कौन दायरे में आयेगा, यही सवाल जेपीसी तक जाने से हिचक रहा है। कयोंकि तब हर दल के नुमाइन्दे के पास कारपोरेट, राजनीति, मीडिया और बिचौलियों के सत्ताधारियों का कच्चा-चिट्टा होगा और बोफोर्स में तो एक कागज ने सत्ता पलट दी थी यहां तो पूरी फाइल होगी।