पूर्वोत्तर भारत को लेकर नरेन्द्र मोदी की सार्थक सोच

पिछले मास के अन्तिम दिनों में नरेन्द्र मोदी गुवाहाटी में थे । उन्होंने गुवाहाटी को मेघालय से जोड़ने वाली रेल पटडी  का उद्घाटन किया । मेघालय में मैंदीपत्थर से असम में गुवाहाटी तक यह गाड़ी चलेगी । यह रेल पटडी चाहे लगभग बीस  बीस किलोमीटर ही है लेकिन इसका प्रतीकात्मक महत्व बहुत ज़्यादा है । देश का एक और राज्य रेलवे नेटवर्क से जुड़ गया है । इससे पहले अरुणाचल प्रदेश की राजधानी इटानगर नहारलगुन को रेलवे नेटवर्क से जोड़ा गया है । इसके साथ ही उन्होंने मिज़ोरम के साईरंग स्टेशन तक के लिये बिछाई जाने वाली रेल पटडी का शिलान्यास भी किया ।  यह दुर्भाग्य की बात है कि पूर्वोत्तर के आठों राज्य आज़ादी के सात दशक बीत जाने पर भी आपस में रेलवे नेटवर्क से नहीं जुड़े हैं । यह सरकार की अदूरदर्शिता ही कहीं जायेगी । पूर्वोत्तर सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है , इसलिये उसका विकास करना चाहिये , यह एक तर्क है , जिसे ध्यान में रखना ही होगा । लेकिन सुरक्षा का तर्क न भी हो तो भी इस क्षेत्र का विकास करना बहुत जरुरी है , क्योंकि विकास की नीति बनाते समय पूरे देश का ध्यान रखना चाहिये  और संतुलित विकास को ही अपनाना होगा । यदि ऐसा न किया गया तो देश के भीतर ही असंतुलन की अनेक दरारें पैदा हो जायेंगीं । इन्हीं दरारों से असंतोष पैदा होता है जो कई बार ग़ुस्से में अलगाव का रुप धारण कर लेता है । पूर्वोत्तर भारत में भी पिछले लम्बे अरसे से यही हो रहा है । ऐसी स्थिति देख कर अनेक बार शत्रु देश भी जलती में तेल डालने का काम करने लगते हैं ।

कई बार यह तर्क दिया जाता है कि पूर्वोत्तर के राज्यों में आबादी कम है इसलिये वहाँ विकास के लिये गैर आनुपातिक ढंग से पैसा नहीं निवेश किया जा सकता । दरअसल ऐसा कुतर्क दिल्ली में बैठी वही नौकरशाही दे सकती है जिसने भारत की एकात्मता को भीतर से अभी तक आत्मसात नहीं किया है । सीमान्त राज्यों पर जो लोग विपरीत परिस्थितियों में भी रह रहे हैं वही वास्तव में भारतीयता की एक निष्ठा साधना कर रहे हैं । लेकिन जब वहाँ विकास की बात तो दूर , जीवनयापन के लिये न्यूनतम संरचना , मसलन हस्पताल , सड़क, स्कूल इत्यादि की व्यवस्था भी नहीं की जाती , तो नई पीढ़ी उन क्षेत्रों की ओर पलायन क्यों नहीं करेगी जहाँ ये सुविधाएँ उपलब्ध है । लद्दाख जैसे क्षेत्रों में यह पलायन कुछ सीमा तक शुरु भी हो गया है । इसलिये जरुरी है कि पूर्वोत्तर के आठों राज्यों में संचार और परिवहन की सुविधाएँ तो हर हालत में पहुँचाई ही जानी चाहिये । देर आयद दुरुस्त आयद । नरेन्द्र मोदी की सरकार ने इसकी महत्ता को  तो समझा है और उस ओर क़दम भी उठाना शुरु किया है । गुवाहाटी में दिये गये अपने भाषण में मोदी ने कहा कि वास्तुशास्त्र के अनुसार ईशान दिशा का विकास पूरे विकास की कुंजी है । जिस घर का ईशान कोना सुन्दर है , वह सारा घर सुन्दर और सुखी होता है । यही स्थिति देश की है । पूर्वोत्तर भारत का ईशान है । ईशान विकसित है तो देश का दक्षिण , उत्तर और पश्चिम भी विकसित , समृद्ध और सुखी होगा । अब तक की पूर्ववर्ती सरकारों का वास्तुशास्त्र में विश्वास नहीं था । वे शुद्ध सेक्युलर सरकारें थीं । उन्होंने सोचा होगा कि यदि पूर्वोत्तर भारत यानि देश के ईशान कोने का विकास किया तो उन पर वास्तुशास्त्र में विश्वास करने का आरोप लग सकता है , जिसके कारण वे साम्प्रदायिक सरकारें मानी जा सकती हैं । इसलिये उन्होंने सेक्युलिरिजम की रक्षा के लिये पूर्वोत्तर भारत को अविकसित और पिछड़ा रखना जरुरी समझा होगा ।

यदि पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों में सड़कों और रेलवे का जाल बिछा हो तो इसमें कोई शक नहीं कि इस क्षेत्र के पर्यटन उद्योग में बेतहाशा वृद्धि होगी , जिससे इस क्षेत्र में आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी । असल में यदि इस क्षेत्र में संचार व्यवस्था का विस्तार किया जाये और उसकी गुणवत्ता भी सुनिश्चित की जाये तो पूर्वोत्तर क्षेत्र भारत को दक्षिण पूर्व एशिया से स्थल मार्ग द्वारा जोड़ने का सिंह द्वार बन सकता है । भारत और दक्षिण पूर्व एशिया सांस्कृतिक दृष्टि से एक ही विस्तृत क्षेत्र है । इनका आपस में एक बार फिर स्थल मार्ग से जुड़ना पूरे देश की आर्थिकता में परिवर्तन ला सकता है । निश्चय ही इससे सबसे ज़्यादा लाभ पूर्वोत्तर के इन आठ राज्यों को ही मिलेगा ।

मोदी ने कहा कि अब तक तो हम लुक इस्ट नीति की ही बात करते रहे हैं । लेकिन केवल देखने भर से कुछ नहीं होगा । अब हमें कहना होगा देखो भी और उसके बाद क्रियान्वित भी करो । पूरे पूर्वोत्तर में जो स्थिति स्थल मार्ग से सम्पर्क की है लगभग वही स्थिति आकाश मार्ग से सम्पर्क की है । राजधानियों को छेड़ कर दूसरे महत्वपूर्ण शहरों से सम्पर्क का साधन नहीं है । यदि यह मान लिया जाय कि वायु मार्ग से कनैकटिवटी तो अमीर लोगों की हित साधक है तो कम से कम सैल फ़ोन कनैकटिवटी को तो अमीरों के लिये ही नहीं माना जा सकता । उसका प्रयोग तो ग़रीब से ग़रीब आदमी भी करता है ।  दुर्भाग्य से पूर्वोत्तर में सबसे ज़्यादा दुर्दशा सैल फ़ोन के सिग्नल की ही है । सैल फ़ोन सिग्नल के अभाव में पूर्वोत्तर में पहुँचते ही मूर्च्छित अवस्था में ही चला गया है । यहाँ के अधिकांश हिस्सों में सैल फ़ोन पर किसी से सम्पर्क  हो जाना भी एक उपलब्धि ही मानी जाती है । अन्यथा मानसिक रुप से तो व्यक्ति पूर्वोत्तर में पहुँचते ही सोच लेता है मानों देश के शेष हिस्सों से कट गया हो । तरंगों के माध्यम से स्थापित संचार व्यवस्था सुधरती है तो यहाँ के युवकों को छोटी मोटी नौकरी के लिये भी बड़ों शहरों में नहीं आना पड़ेगा । बंगलौर , पुणे और मुम्बई इत्यादि में ईशान के जो लोग नौकरी करने जाते हैं , तब उन्हें कहीं भी बाहर जाने की जरुरत नहीं रहेगी । बल्कि वे वही काम आउटसोर्सिंग के ज़रिये अपने प्रदेशों के अन्दर ही  कर सकते हैं । लेकिन इन सब कामों के लिये पूर्वोत्तर प्रदेश कम से कम दिल्ली की प्राथमिकता में तो होने चाहिये ? इसके विपरीत , दिल्ली के लिये ये प्रान्त अजूबा ज़्यादा थे और सरकार भी इसे विदेशी पादरियों के हवाले करके निश्चिन्त हो गई लगती थी । अब नयी व्यार बदली है । पूर्वोत्तर भी सरकार की प्राथमिकता में शामिल हो गया । निश्चय ही इसका परिणाम श्रेयस्कर होगा ।