पाक को समाप्‍त कर देना चाहिए

माफ नहीं पाक को साफ करने का समय

पहले पाकिस्तानी सेना द्वारा २ भारतीय सैनिकों के सर कलम कर ले जाना और उसी तनावपूर्ण माहौल में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ की अजमेर यात्रा, इस हफ्ते बुधवार को सीआरपीएफ के जवानों पर आत्मघाती हमला और अब पाकिस्तानी संसद में आतंक के मसीहा अफज़ल गुरु को श्रद्धांजलि देना; पाकिस्तान भारत और नीचा दिखाने या भड़काने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा है। इधर हमारे देश की संसद भी पाकिस्तान की नीचता पर उबल रही है पर ठोस कारवाई के आसार अब तक नहीं दिखाई दिए हैं।

यह आलम है कि पाकिस्तान के मसले पर देश के गृहमंत्री और गृह सचिव के बयानों में ही विरोधाभास झलक रहा है। भाजपा जहां सरकार से ठोस कार्रवाई की मांग कर रही है और केंद्रीय मंत्री द्वारा पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को दिए गए भोज की आलोचना कर रही है वहीं सलमान खुर्शीद २००१ की अटल-मुशर्रफ़ को भाजपा की दोहरी पाक नीति बताकर उसे कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। यानी देश की अस्मिता से जुड़े मुद्दे पर भी देश के राजनीतिक दलों में अपनी ढपली अपना राग की भावना लक्षित हो रही है। हालांकि यह सही है कि पाक नीति को लेकर सरकार की जवाबदेही पर सवालिया निशान लगाए जा सकते हैं। बीते दिनों भारत आए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ की अगवानी में भारत ने मेजबानी की मिसाल कायम की थी जबकि उनकी इस निजी यात्रा को लेकर देशव्यापी गुस्सा था।

यहां तक कि उनका काफिला अजमेर की जिस गली से गुजरा उसे बाद में स्थानीय लोगों ने पानी से धोया था। किसी देश के प्रधानमंत्री के लिए इससे बड़ी बेज्जती की बात और क्या होगी पर लगता है जैसे पाकिस्तान और उसके हुक्मरानों को इज्ज़त अब रास नहीं आती है। तभी तो थोड़े दिन की ख़ामोशी के बाद सीमा पार की गतिविधियां दोनों देश के संबंधों को तनावपूर्ण कर देती हैं। दरअसल पाकिस्तान के साथ संबंधों को लेकर सरकार और उसके सहयोगी दलों में ही एक राय नहीं है। यहां तक कि पाकिस्तानी आतंकियों द्वारा ५ सीआरपीएफ जवानों की हत्या के बाद भी जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का श्रद्धांजलि न देना उनकी शहादत का तो अपमान है ही, साथ ही उनकी पाक भक्ति और केंद्र का उनके समक्ष नतमस्तक होना काफी कुछ बयान कर देता है।

 

हालांकि शुक्रवार को पाकिस्तान की संसद में पारित आतंकवादी अफजल गुरु की फांसी के निंदा प्रस्ताव को लोकसभा में सर्वसहमति से खारिज कर दिया गया। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार की ओर से पाक संसद की गतिविधि पर सख्त ऐतराज जताया गया और साफ कर दिया गया कि जम्मू-कश्मीर पाक द्वारा अवैध रूप से कब्जाए गए हिस्से (पीओके) सहित भारत का अटूट अंग है और हमेशा रहेगा। मीरा कुमार ने कहा कि आतंकवाद पर पाकिस्तान ऐसी हरकतों से बचे। पाकिस्तान भारत के आंतरिक मामले में दखलअंदाजी न करे क्योंकि ये भारत को मंजूर नहीं है। मीरा कुमार ने कहा कि पाकिस्तान ने भारत से वादा किया है कि वो आतंक के खिलाफ है और भारत के खिलाफ आतंकवाद का वो समर्थन नहीं करेगा, न ही अपनी धरती का इस्तेमाल भारत के खिलाफ होने वाले आतंकवादी कृत्य के लिए होने देगा, लेकिन उसने अपने वादे के खिलाफ काम किया है। खैर संसद से लेकर सड़क तक पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा है और सरकार को अब इससे समझना भी चाहिए। आम आदमी भी अब पाकिस्तान की ओछी व नापाक हरकतों से परेशान हो चुका है। पाकिस्तान के देशव्यापी विरोध के बाद सरकारी स्तर पर देखें तो सरकार ने भारत-पाक के बीच अप्रैल-मई २०१३ में होने वाली हॉकी सीरीज को रद्द कर दिया है। इस सीरीज़ के दौरान पांच मैच भारत में खेले जाने थे और पांच पाकिस्तान में। इसके अलावा भारत-पाक के बीच नए वीजा समझौते का क्रियान्वयन भी अब खटाई में पड़ गया है।

भारत ने शुक्रवार से शुरू होने जा रही समूह पर्यटन वीजा की सुविधा को नहीं शुरू करने का फैसला किया है। गौरतलब है कि सितंबर २०१२ में हुए नए वीजा समझौते के तहत भारत-पाकिस्तान ने १५ मार्च से एक-दूसरे के नागरिकों को समूह पर्यटन की वीजा जारी करने का फैसला किया था। इससे १० से ५० पर्यटकों के लिए ३० दिन का सामूहिक वीजा मिल जाता, पर बदले हालातों में सरकार ने इसे नहीं शुरू करने फैसला किया है। देखा जाए तो ये कवायदें पाकिस्तान को आंशिक रूप से झुका तो सकती हैं किन्तु मजबूर नहीं कर सकतीं। एक ऐसा राष्ट्र जिसका अस्तित्व ही भारत विरोध पर टिका हो उससे अमन की क्या उम्मीद करें। पर यह सोच भी अब चुप बैठना गलत होगा। पाकिस्तान जैसा मुल्क जिसकी कनपटी पर बंदूक लगी होने के बावजूद भी वह दुनिया के लिए नासूर बन चुका है; उसके प्रति कैसा दया भाव? क्षमा भी उसी को शोभा देती है जो उसकी कद्र करना जानता हो। एक ऐसे राष्ट्र के प्रति कैसी दया जिसने दया को ही भारत की कमजोरी समझ लिया हो? कम से कम इस बार तो सरकार को मामले की गंभीरता और देश के नागरिकों की मनःस्थिति समझते हुए कड़ी से कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए और यदि नौबत युद्ध की आती है तो आगे बढ़ने में ज़रा भी नहीं सोचना चाहिए। आखिर हम पाक को कब तक माफ़ करेंगे?