घर वापिसी को लेकर हो रही बहस

कुछ दिन पहले आगरा में दो सौ के लगभग मुसलमान , जिनके पूर्वज , जिन दिनों हिन्दुस्तान पर विदेशियों का राज था  उन दिनों किन्हीं कारणों से मुसलमान बन गये थे , वापिस अपने पूर्वजों की विरासत में लौट आये । यह एक ऐसी सामान्य घटना थी जिसका कोई भी नोटिस क्यों लेता । यदि कोई अपना घर छोड़ गया हो और कुछ अरसे के बाद अपने घर में वापिस आ  जाये तो घर के लोग उसका स्वागत करेंगे ही । और आगरा में यही हुआ । यह भी सच है कि घर से बाहर गया व्यक्ति , इतने लम्बे काल तक जिन के साथ रहा हो वे भी उसके वापिस लौट जाने का दुख मनायेंगे ही । यहाँ तक तो सब ठीक है । लेकिन इतना तो वे भी जानते हैं कि आख़िर किसी को घर वापिस जाने से रोका तो नहीं जा सकता । आगरा में भी यही हुआ । लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में इतना और हुआ कि घर वापिसी की इस घटना को अख़बारों ने ख़बर मान कर छाप दिया । प्रिंट मीडिया के लिये तो यह महज़ कुछ पंक्तियों की ख़बर मात्र थी लेकिन इलैक्ट्रोंनिक मीडिया की बात अलग है । उसे अपनी ख़बर से प्रभाव निर्मित करना होता है । उसकी दुकान चौबीस घंटे खुली रहने वाली है । साँस लेने तक की फ़ुर्सत नहीं है । उपर  से आपस में ज़बरदस्त मुक़ाबले का ज़माना है । इलैक्ट्रोंनिक मीडिया ने रस्सी को साँप बना कर किसी कुशल जादूगर की तरह श्रोताओं को चौंकाना है । इसलिये अचानक जब उसे आगरा में कुछ लोगों की घर वापिसी की रस्सी मिली तो उसने उसे साँप बना कर अपने उद्योग को खाद पानी देना शुरु कर दिया । उसने रस्सी को साँप बनाने में क्या क्या फूहड़पन की हरकतें की इसकी चर्चा बाद में , पहले दिल्ली की बात कर लें ।

जिस समय आगरा में घर वापिसी की यह घटना हुई उस समय दिल्ली में संसद चल रही है । ताज्जुब तब हुआ जब कुछ गिने चुने लोगों ने संसद को इसी बात को लेकर ठप्प कर दिया । संसद में लोग इस घर वापिसी को मतान्तरण या धर्मान्तरण बता रहे थे । उनका कहना था कि जो लोग घर वापिस आये हैं , उनके लिये जिन्होंने घर का दरवाज़ा खोला है , उनको तुरन्त सज़ा दी जाये । उनका तर्क यह था कि यदि घर छोड़ कर चले गये लोगों के लिये घर के लोग ऐसे दरवाज़ा खोलते रहे तो देश एक बार फिर बँट जायेगा ।

इस अवसर पर बाबा साहिब आम्बेडकर की याद आती है । देश को हिन्दू और मुसलमान के आधार पर बाँटने की तैयारियाँ चल रही थीं । जिन्नाह इस के कर्ता धर्ता थे लेकिन अब कांग्रेस भी इसके लिये सहमत हो गई थी । जिन्ना के पूर्वज हिन्दू ही थे लेकिन अपना घर छोड़ कर कभी मुसलमान हो गये थे । घर छोड़ने का इतना दुष्परिणाम हुआ कि जिन्नाह तक आते आते आते घर तोड़ने की बातें होने लगीं । तब लाला हरदयाल ने कहा था कि हिन्दोस्तान पर मुसलमानों के सब हमले अफ़ग़ानिस्तान के रास्ते से ही हुये थे । इसके कारण सबसे पहले अफ़ग़ानिस्तान के लोग ही अपनी विरासत का घर छोड़ कर हिन्दू से मुसलमान हो गये थे । यदि ये लोग अपने घर वापिस लौट आयें तो हिन्दुस्तान सुरक्षित हो सकता है । बाबा साहिब आम्बेडकर ने उनकी इस इच्छा का उत्तर कालान्तर में अपनी पुस्तक थाटस आन पाकिस्तान में दिया था । उनका कहना था कि इस्लाम अपने घर में आने की अनुमति तो देता है लेकिन अपने घर से वापिस जाने की अनुमति नहीं देता ।”

यह एक ऐसा भवन है जिसके अन्दर आने के लिये दरवाज़े खुले रहते हैं । इतना ही नहीं इसमें लोगों को ज़बरदस्ती घेर कर भी अन्दर लाया जाता है । लेकिन एक बार यदि कोई व्यक्ति , चाहे किसी भी कारण से ही इस घर के अन्दर चला जाता है तो उसके बाद उसे यह घर छोड़ने की अनुमति नहीं है । यदि कोई व्यक्ति इस घर को छोड़ने की कोशिश करता है या दीवार फाँदने की कोशिश करता हुआ पकड़ा जाता है तो उसे गोली मार दी जाती है । क्या पाकिस्तान में कोई व्यक्ति , जिसके पुरखे कभी औरंगज़ेब के काल में , हिन्दू से मुसलमान हो गये थे , आज वापिस अपने पुरखों की विरासत के घर , यानि हिन्दू विरासत में वापिस आ सकता है ? इसकी सज़ा वहाँ के क़ानून में ही मौत है । यह तो ख़ुदा का शुक्र है कि हिन्दुस्तान इस्लामी देश नहीं है , नहीं तो आगरा के घर वापिस आने वाले इन लोगों को गोली मार दी जाती । आगरा से लेकर दिल्ली तक जो लोग चिल्ला रहे हैं कि इन लोगों को घर वापिसी की इजाज़त किसने दी , उनका भाव केवल यही है कि हमारा बस चलता तो हम तो घर का दरवाज़ा खोलने वालों को उड़ा देते । लेकिन जो घर के अन्दर आये हैं उनका क्या हश्र होता इसका अन्दाज़ा लगाया जा सकता है ।

जो घर छोड़ कर जा रहा है , उसे तो पूछा ही जाना चाहिये कि भाई क्यों जा रहे हो ? यह जाँच भी करना जरुरी है कि क्या कोई बरगला तो नहीं रहा ? लेकिन जो घर वापिस आ रहा हो , उसके लिये दरवाज़े बन्द कर देना तो अमानवीय ही माना जायेगा । लेकिन जब संसद में इसी मुद्दे पर बहस होने लगी और इसे धर्मान्तरण ही कहा जाने लगा तो आख़िर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को भी कहना पड़ा कि आख़िर यह बहस किस बात को लेकर हो रही है । भाव यही था कि सम्बंधित लोगों और पक्षों को इस घटनाक्रम को लेकर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन दिल्ली में बैठ कर कुछ लोग अपने राजनैतिक हितों के लिये पानी को पेट्रोल बनाना चाहते हैं ।

अब फिर दिल्ली के ही इलैक्ट्रोंनिक मीडिया की बात की जाये । वैसे तो बहस को संचालित करने वाले अधिकांश एंकरों का जो स्तर और अध्ययन है , उसे देखते हुये उन पर नाराज़ होना बेमानी है , लेकिन कुछ की बातें सुन कर तो कोफ़्त होती है । लगता है ये पानी का पेट्रोल तो मालिकों के कहने पर बनाते हैं , क्योंकि इनके मालिकों को अपने मीडिया उद्योग से पैसा कमाना है लेकिन अपने घर से माचिस ख़ुद लाकर इस पेट्रोल को आग लगाने का काम शायद ये अपनी इच्छा से ही करते हैं । क्योंकि इनको भी मालिकों के आगे कारगुज़ारी दिखाना होती है । एक चैनल पर एक एंकर चिल्ला चिल्ला कर ग़ुस्सा हो रहा था कि बजरंग दल वालों की हिम्मत तो देखिये , वे कह रहे हैं कि शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला के पुरखे भी  हिन्दू थे । उस एंकर को लगता था कि इससे बड़ा झूठ कोई हो ही नहीं सकता । उसका कहना था कि जो घर वापिसी हो रही है , उसे रोकने के लिये तुरन्त क़ानून बना देना चाहिये । बहस में भाग लेने वालों ने इसका क्या उत्तर दिया यह तो नहीं पता लेकिन कुछ देर बाद जब शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला के पौत्र और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ही स्पष्ट कहा कि कश्मीर के सभी मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू थे और कश्मीर में इस्लाम बाहर से आया तो जिस चैनल का ज़्यादा उत्तेजित एंकर इसे सदी का सबसे बड़ा झूठ मान रहा था , उसके मालिक का चैनल भी उमर के बयान को प्रमुखता से प्रसारित कर रहा था । मुझे नहीं पता उस एंकर को इसका भी अर्थ समझ आया या नहीं । लेकिन सोनिया कांग्रेस के ही एक स्वयंभू नेता राशिद अल्बी हलकान हो रहे थे कि उन्हें अपने पूर्वजों पर गर्व है । यह अच्छी बात है । लेकिन उनके पूर्वज कौन थे , इस पर चुप्पी साध रहे थे । उनसे हिम्मत वाले तो उमर अब्दुल्ला ही निकले जिन्होंने छाती ठोक कर कहा कि मेरे पूर्वज हिन्दू थे । लेकिन जो लोग आगरा में हुई घर वापिसी की इस घटना को लेकर आसमान सिर पर उठा रहे हैं , उन्हें न तो पूर्वजों से कुछ लेना देना है और न ही इतिहास से । उनके लिये तो असली मुद्दा अगले चुनावों में मुसलमानों की कुछ वोटें मिल जायें , यही है । इसी के कारण में संसद के अन्दर और बाहर आस्तीनें चढ़ा रहे हैं ।