औद्योगिक घरानों की लड़ाई में मीडिया की ढ़ाल

देश के दो औद्योगिक घरानों जी लिमटिड़ उद्योग और जिन्दल उद्योग में जंग छिड़ी है । जी ग्रुप के दो सम्पादक गरिफ्तार किये जा चुके हैं । जी लिमटिड़ उद्योग अपने आप को उद्योग की बजाय मीडिया ग्रुप कहलाना ज्यादा पसन्द करता है । लेकिन मीडिया और मीडिया उद्योग में अन्तर करना जरुरी है । भले ही इन दोनों में अन्तर की रेखाएं अत्यन्त सूक्ष्म हैं । यही कारण है कि अनेक बार मीडिया उद्योग भी ,मीडिया की तरह सार्वजनिक जीवन में व्यवहार करता दिखाई देता है । मीडिया मिशन है और मीडिया उद्योग मुनाफा कमाने के लिये अन्य उद्योगों की तरह ही खोला गया एक कारखाना है जिसमें ख़बर नाम के उत्पाद का उत्पादन होता है । लेकिन इस उद्योग की एक खासियत है । इसमें किसी विशिष्ट उत्पाद को न बेच कर भी मुनाफा कमाया जा सकता है । मुम्बई में बल्टिज के जमाने से ही मीडिया उद्योग पनपने लगा था लेकिन इसका त्वरित विकास पिछले कुछ दशकों में ही हुआ है । मीडिया उद्योग अन्य उद्योगों के लिये सहायक उद्योग का काम भी करता है । यह अन्य उद्योगों के उत्पादों को विज्ञापन के जरिये बेचने का धन्धा भी करता है । दरअसल मीडिया उद्योग के मुनाफे का मुख्य स्रोत यही है । कुछ बड़े उद्योग समूहों ने मीडिया उद्योग के छोटे बड़े यूनिट अलग से भी लगाये हुये हैं । उनके ये मीडिया यूनिट उनके उद्योगों को अप्रत्यक्ष लाभ पहुँचाते हैं और उनके रास्ते में आने वाली कठिनाइयों को दूर करते हैं । टाईम्स आफ इंडिया ने अपने सम्पादक एच के दुआ को इसीलिये सम्पादक के पद से अपमानजनक ढंग से हटा दिया था क्योंकि उन्होंने समूह के व्यापारिक हितों के लिये अखबार का इस्तेमाल करने से इन्कार कर दिया था ।

लेकिन शायद यह पहली बार हुआ है कि एक मीडिया उद्योग समूह दूसरे उद्योग समूह से इस प्रकार सड़कों पर लड़ने के लिये उतर आया है । जी मीडिया उद्योग समूह का हठ यही है कि उसे इस लड़ाई में मीडिया स्वीकार किया जाये , उद्योग नहीं । मीडिया बिरादरी इस लड़ाई को मीडिया की आजादी पर प्रहार माने । यह कुछ इसी प्रकार का है हठ जिस प्रकार मुनाफा कमाने के लिये खोले गये प्राइवेट विश्वविद्यालय कह रहे हैं कि उन्हें भी शिक्षा संस्थान मान लिया जाये । ( ऐसा ही एक विश्वविद्यालय गोपाल काण्डा ने भी खोला है ) । जब इस प्रकार दो औद्योगिक घराने लड़ते हैं तो उनमें काम करने वाले मुलाजिमों की हालत दयनीय हो जाती है । मालिक का साथ दें या फिर सड़क पर आ जायें ? परन्तु वर्तमान लड़ाई का तो एक और पक्ष भी है । मीडिया औद्योगिक समूह में काम करने वाले मुलाजिमों को पत्रकार कहा जाता है । पत्रकार की एक पहचान और नैतिकता तो उसके पत्रकार होने की है और दूसरी पहचान एक औद्योगिक घराने के सामान्य मुलाजिम होने की है । इस संकट काल में वह किस पहचान को प्राथमिकता दे ? जब से बड़े बड़े मीडिया औद्योगिक घराने विकसित हो गये हैं , तब से अनेक पत्रकार भी पत्रकारिता की आड़ में इन्हीं घरानों के व्यवसायिक हितों के लिये काम करने लगे हैं । इस से दोनों पक्षों को लाभ होता है ।

जब दो औद्योगिक घरानों की लड़ाई होती है (वैसे आम तौर पर औद्योगिक घराने लड़ते नहीं बल्कि एक दूसरे के रहस्यों को छिपाने में सहायता करते हैं, लेकिन कभी कभार लड़ाई भी होती ही है ) तो जनता को यह लाभ जरुर होता है कि एक दूसरे का खोखलेपन जानने का अवसर मिल जाता है । कोलगेट और पैपसोड़ैंट की लड़ाई में दोनों समूह प्रमाण देकर बता रहे कि कि एक दूसरे के उत्पाद में ऐसा एक भी गुण नहीं है जिसका वे विज्ञापनों में दावा करते हैं । यही स्थिति जी(जी मीडिया औद्योगिक घराना) और जि(जिंदल औद्योगिक  घराना) की हो रही है । “जी” मीडिया को ढ़ाल की तरह इस्तेमाल कर रहा है तो “जि” उसकी काट सत्ता की धार से कर रहा है । दोनों घरानों में चार दशकों से पारिवारिक सम्बंध हैं । दोनों हरियाणा के रहने वाले हैं । परिवारों के बुजुर्गों ने दोनों को आपस में बिठा कर सुलह सफाई करवाने की कोशिश भी की । लेकिन व्यवसायिक हितों में सुलह सफाई भी एक सीमा तक ही कारगर होती है । परन्तु बड़े बुजुर्गों के प्रयासों का इतना लाभ जरुर हुआ कि लड़ाई सड़कों पर लड़नी बन्द हो गई । जी न्यूज ने नवीन जिन्दल के खिलाफ़ ख़बरें देना स्थगित कर दिया ।

जी न्यूज के दो प्रतिनिधि जिन्दल उद्योग से बाकायदा बातचीत भी करने लगे । यह सचमुच हैरानी की बात है कि इतने बड़े औद्योगिक घराने ने बातचीत के लिये प्रतिनिधि के तौर पर दो पत्रकारनुमा व्यक्तियों समीर और सुधीर को उतारा । वैसे तो इससे ही सिद्ध होता है कि मीडिया उद्योग मीडिया को किस खूबसूरती से ढ़ाल के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है और कुछ स्वनामधन्य पत्रकार इस काम के लिये कितनी आसानी से उपलब्ध हैं । मामला पच्चीस करोड़ और सौ करोड़ के बीच लटक रहा था कि बातचीत टूट गई । जिस उत्पाद की कीमत “जी” सौ करोड़ लगा रहा था उसकी कीमत “जि” की नज़र में पच्चीस करोड़ से ज्यादा नहीं थी । लेकिन जिन्दल के लोगों ने एक काम अवश्य किया । उन्हों सारी बातचीत की चोरी छिपे रिकार्डिंग कर ली थी । वैसे तो यह धन्धा ज्यादातर मीडिया औद्योगिक घराने ही करते हैं और रिकार्डिंग को गोपनीय रखने के लिये सौदेबाजी कर लेते हैं लेकिन इस बार यह काम जिन्दल ने करके यह भी सिद्ध कर दिया कि यदि व्यापारिक हितों की सुरक्षा करनी है तो आधुनिक तकनालोजी का प्रयोग करना कितना जरुरी है । यदि दोनों समूहों की बातचीत सिरे चढ़ जाती फिर तो दोनों पक्षों की यह बातचीत गोपनीय ही रहती , लेकिन बातचीत सिरे नहीं चढ़ी । परन्तु जिन्दल के हाथों तुरुप का पत्ता तो आ ही चुका था । जिन्दल ने यह तुरुप का पत्ता सार्वजनिक कर दिया ।तुरन्त दोनों समूह एक दूसरे के खिलाफ़ मानहानि का केस लेकर मुम्बई उच्च न्यायालय की ओर भागे । अब लड़ाई का बाकायदा ऐलान हो गया था ।जिन्दल यहीं नहीं रुके । उसने वह तुरुप का पत्ता पुलिस के हवाले कर दिया और फोरेंसिक प्रयोगशाला में जाँच में पाया गया कि बातचीत की रिकार्ड की गई सीड़ी एकदम सही है । क़ानून की दृष्टि में यह अपराध है तो स्वभाविक ही समीर सुधीर पर मुकद्दमा चलता । वही मुकद्दमा शुरु हुआ । सीड़ी सही होने की जैसे ही पुष्टि हुई पुलिस ने समीर सुधीर को गिरफ्तार करने में क्षण भर की देरी नहीं की । आनन फानन में जी उद्योग के मालिकों ने अपने प्रतिनिधि को प्रैस कान्फरेंस में भेजा । वह वकील को  साथ लेकर हाजिर हुआ । वैसे उसकी ज़रुरत नहीं थी , क्योंकि क़ानूनी बहस तो कचहरी में होनी थी , प्रैस कान्फरेंस में नहीं । वकील का एक ही तर्क था ,जब लेनदेन हुआ ही नहीं तो अपराध कैसा ? जी उद्योग का तर्क बिचित्र है । मान लीजिए एक गुंड़ा किसी दूसरे गुंडे को टैलीफोन पर धमकी देता है कि इतने पैसे दो नहीं तो तुम्हारी टांगें तोड़ दूंगा । धमकी पाने वाला पुलिस को सूचना दे देता है । धमकी देने वाला यदि यह कहे कि पैसे का लेनदेन तो हुआ ही नहीं , फिर अपराध कैसा ?

जी औद्योगिक घराना इस पूरी लड़ाई को असली मुद्दे से हटा कर मीडिया की लड़ाई बनाने का प्रयास कर रहा है और जिन्दल घराने पूरी लड़ाई में सत्ता को अतिरिक्त हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है । जाहिर है मीडिया और सत्ता दोनों का ही दुरुपयोग हो रहा है । फिर भी एक लाभ तो है ही । इस लड़ाई में दोनों का असली चेहरा भी नंगा हो रहा है । सोनिया कांग्रेस के राज में किस प्रकार बेशरमी से खुले आम राष्ट्रीय स्रोतों की लूट प्रारम्भ हो गई है और इस लूट में मीडिया इंडस्ट्री किस प्रकार अपना हिस्सा बसूल रही है ।