![](https://i0.wp.com/www.bharatvarta.in/wp-content/uploads/2016/04/Nitish_Kumar_in_deep_thought_295x200.jpg?fit=1180%2C800&ssl=1)
नीतीश: संघ-विरोधी मोर्चा क्यों ?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीशकुमार ने आह्वान किया है कि देश में अब गैर-संघी मोर्चा उसी तरह बनना चाहिए, जैसे कि डॉ. राममनोहर लोहिया ने 1967 के चुनाव में गैर-कांग्रेसी मोर्चा बनाया था। नीतीश का यह बयान जबर्दस्त है। मैं अभी चंपारण में हूं, जहां महात्मा गांधी ने 100 वर्ष पहले सत्याग्रह की शुरुआत की थी। बिहार के सारे अखबारों और टीवी चैनलों पर सबसे बड़ी खबर यही है। पता नहीं, दिल्ली और देश में इस घोषणा की प्रतिक्रिया क्या है।
इसमें शक नहीं कि नीतीश ने यह घोषणा एक वैकल्पिक प्रधानमंत्री के तौर पर की है। वे मोदी का विकल्प बनना चाहते हैं। उसके लिए जरुरी है कि वे देश के सारे दलों को इकट्ठा करें। यदि उन्हें इस काम में थोड़ी भी सफलता मिल जाए तो मोदी को परास्त करना तो बाएं हाथ का खेल है। मोदी का नशा जिस तेजी से उतरा है और उनसे मोहभंग की शुरुआत जिस लगातार ढंग से चल रही है, वह नीतीश को राष्ट्रीय फलक पर चमकाने के लिए काफी है लेकिन यह समझ में नहीं आया कि वे देश की संघ-विरोधी सभी शक्तियों को इकट्ठा क्यों करना चाहते हैं? क्या वे संघ का विकल्प बनना चाहते हैं? नहीं। वे बनना चाहें तो भी नहीं बन सकते। नहीं बना सकते। इतनी तपस्या, इतना त्याग, इतनी कट्टरता- वे कहां से लाएंगे?
उनका लक्ष्य तो सीमित और छोटा है। वे तो सिर्फ प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। वे बेहतर प्रधानमंत्री होंगे, इसकी पूरी संभावना है। इसके लिए मोदी-विरोधी मोर्चा बनाना तो तर्कसंगत लगता है लेकिन संघ-विरोधी मोर्चे की तुक क्या है? संघ के लाखों स्वयंसेवक नीतीश के प्रशंसक है। उन्हें नीतीश अपना विरोधी बनाए या समर्थक, यह उन पर निर्भर है। लाखों स्वयंसेवकों का मोदी से उच्चाटन हो रहा है। वे नीतीश के शराबबंदी, स्वभाषा लाओ, सबको पढ़ाओं आदि अभियानों का हृदय से समर्थन करते हैं। यदि नीतीश इस तरह के अन्य सार्थक अभियान चलाएंगे तो बिहार में ही नहीं, सारे देश में संघ उनका साथ देगा।
नीतीशकुमार को निष्ठावान कार्यकर्ताओं की फौज संघ से ही मिलेगी, जैसी कि आपात्काल के दौरान जयप्रकाशजी को मिली थी। कुल डले हुए वोटों के सिर्फ 30 प्रतिशत वोटों ने मोदी को प्रधानमंत्री बना दिया। मोदी से उखड़े हुए 15-20 प्रतिाश्त वोट तो नीतीश को बिना कुछ किए ही मिल सकते हैं। शेष वोटों के लिए व्यापक गठजोड़ जरुरी है लेकिन इस गठजोड़ को भगवा या लाल या हरे या तिरंगे रंग में रंगना जरुरी नहीं है। प्रधानमंत्री बनने के लिए नीतीश रंग ही काफी है। यह एक रंग ही सबको जोड़ सकता है।