देश की जनता को सब्ज़ बा$ग दिखाकर व यूपीए सरकार की नाकामियों की पीठ पर सवार होकर केंद्रीय सत्ता संभालने वाली भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के कार्यकाल के दो वर्ष पूरे हो चुके हंै। इन दो वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां अपने विदेशी दौरों का कीर्तिमान स्थापित कर देश के लोगों को यह बताने की कोशिश की है कि गत् दो वर्षों में भारत का नाम विश्व के शक्तिशाली व मज़बूत देशों में गिना जाने लगा है वहीं भारतीय मतदाता मोदी के उन चुनावी वादों को पूरा होते देखने की टकटकी लगाए हुए अभी तक दिल्ली दरबार की ओर निहार रहे हैं। हालांकि मोदी सरकार के सत्ता में आने के मात्र आठ महीने बाद ही दिल्ली के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने यह साबित करना शुरु कर दिया था कि मोदी सहित भाजपा के अन्य नेताओं द्वारा चुनाव में किए गए लंबे-चौड़े वादों पर से जनता का भ्रम अब टूटने लगा है। रही-सही कसर बिहार विधानसभा चुनावों ने भी पूरी कर दी थी। बिहार चुनाव के परिणाम ने तो उस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया कि -‘काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती। गत् दो वर्षों में विभिन्न सत्रोतों द्वारा किए जा रहे विभिन्न सर्वेक्षणों से भी यही नतीजे सामने आ रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ पहले से नीचे लुढ़क गया है। इन्हीं हालात के मध्य प्रधानमंत्री 2019 की चुनावी बेला को करीब आते देख अब चिंतित दिखाई देने लगे हैं।
इसी सिलसिले के अंतर्गत् गत् दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी संसदीय दल की एक बैठक बुलाई जिसमें भाजपा के सांसद शरीक हुए। इस बैठक में प्रधानमंत्री ने एलपीजी योजना,मुद्रा योजना तथा देश के ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युतीकरण का प्रसार किए जाने जैसी योजनाओं के विषय में अपने सांसदों को यह निर्देश दिया कि वे अपने चुनावी क्षेत्रों में गांव-गांव जाकर सरकार की इन योजनाओं का पुरज़ोर प्रचार करें। प्रधानमंत्री ने इस बैठक में बताया कि एलपीजी योजना के तहत 3 करोड़ 18 लाख नए गैस कनेक्षन बांटे जा चुके हैं। इसके अतिरिक्त सरकार ने मुद्रा योजना प्रस्तुत करने के साथ 18 हज़ार गांव में विद्युतीकरण कार्य को आगे बढ़ाने का कार्य किया है। एलपीजी नेटवर्क के दायरे को और अधिक बढ़ाया जा रहा है तथा जनता को सस्ते एलईडी बल्ब उपलब्ध कराने जैसे कई कारगर कदम उठाए गए हैं। इस बैठक में यह भी जताया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गरीबों के कल्याण के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी योजनाओं का बखान करने तथा अपने सांसदों से इन योजनाओं का ढिंढोरा जन-जन तक जा कर पीटने हेतु बुलाई गई बैठक में भी पिछली यूपीए सरकार पर कटाक्ष करने से नहीं चूके। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार अपनी योजनाओं का ढिंढोरा पीटती थी। आप लोग कम से कम सही काम की जानकारी तो लोगों को दें। प्रधानमंत्री ने अपने सांसदों से प्रश्र किया कि उर्जा उत्सव मनाने की बात हुई थी। क्या आप लोगों ने इसकी जानकारी जनता को दी?
सवाल यह है कि प्रधानमंत्री द्वारा अपने संासदों पर गत् दो वर्षों में हुए ‘डैमेज कंट्रोल की जो जि़ मेदारी डालने की कोशिश की जा रही है क्या यह प्रयास सफल होंगे। क्या एलपीजी गांव में विद्युतीकरण तथा एलईडी बल्ब के सस्ता करने जैसी योजनाएं देश के आम मतदाताओं से चुनावों के दौरान किए गए सुनहरे वादों का बदल साबित हो सकेंगी? क्या मतदाताओं को दो वर्ष पूर्व भाजपा द्वारा किए गए चुनावी वादों को भाजपा के अमित शाह की नज़रों से ही देखना चाहिए, यानी वह वादे दरअसल वादे नहीं बल्कि फकत जुमले मात्र थे? और चुनाव पूर्व ‘अबकी बार मोदी सरकार की संभावनाओं के बीच जो सुनहरे सपने जनता को दिखाए गए थे जिसमें कहा गया था कि ‘बहुत हुई मंहगाई की मार अब की बार मोदी सरकार। इस तरह के वादे जनता को गुमराह करने,जनता से झूठ बोलने,जनता को धोखा देने के लिए सिर्फ इसीलिए किए गए थे ताकि इन वादों के झांसे में आकर जनता इन्हें सत्ता के सिंहासन पर बिठा दे और सत्ता में आने के बाद यह होनहार ‘राष्ट्रसेवक मतदाताओं से किए गए अपने इन बुनियादी वादों को भूल कर उन्हें एलपीजी कनेक्शन बांटने लगें या सस्ता एलईडी बलब मुहैया कराने लग जाएं? या फिर देश की जनता को यह समझाने लगें कि देश की पताका दुनिया में अब कितनी ऊंची लहराने लगी है?
देश की वह जनता जो पिछली सरकार के कार्यकाल में निरंतर बढ़ती मंहगाई से बेहद परेशान थी उसे पूरा विश्वास था कि मोदी सरकार सत्ता में आने के बाद अपने वादों को पूरा करते हुए सबसे पहले मंहगाई पर नियंत्रण हासिल करेगी। परंतु मंहगाई कम करना या उसपर नियंत्रण रखना तो दूर आज मंहगाई पिछली सरकार के मु$काबले कहीं तेज़ी से आगे बढ़ चुकी है। देश की जनता जो विदेशों में जमा काला धन वापस आने पर अपने खातों में पंद्रह-पंद्रह लाख रुपये जमा होने की बाट जोह रही थी वही जनता अब दो वक्त की मंहगी रोटी जुटा पाने में स्वयं को असमर्थ महसूस कर रही है। तो दूसरी ओर सरकार अपनी प्राथमिकताओं में सवच्छता अभियान,गंगा सफाई अभियान,गौ संरक्षण जैसे मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर देख रही है? गत् दो वर्षों में देश के परेशान हाल किसानों द्वारा आत्महत्या किए जाने में कीर्तिमान स्थापित किए गए हैं। कृषि प्रधान देश कहे जाने वाले भारतवर्ष का किसान कजऱ् के चलते, सिंचाई हेतु पानी न होने के कारण,उसकी फसल सूखे से चौपट हो जाने की वजह से या मंहगाई के चलते अपनी व अपने परिवार की भूख न मिटा पाने के कारण आत्महत्या करने की नौबत तक पहुंच जाए इससे बड़ी शर्म की बात हमारे देश की सरकारों के लिए और क्या हो सकती है? क्या देश की परेशानहाल जनता को यह समझा कर उसकी तसल्ली कराई जा सकती है कि घबराओ मत देश का झंडा अब पूरी दुनिया में सबसे ऊंचा लहराने लगा है? या उन्हें यह समझाया जाए कि मंहगाई और भूख से तड़पने की इसलिए कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री का मोम का पुतला मैडम तुसाद के यूजि़यम में स्थापित हो रहा है?
इसमें कोई शक नहीं कि हमारे प्रधानमंत्री लच्छेदार भाषणों तथा अपने राजनैतिक कौशल के लिए अपना कोई सानी नहीं रखते। उनके इसी ‘गुण ने लालकृष्ण अडवाणी व मुरली मनोहर जैसे पार्टी के वरिष्ठ,जि़ मेदार तथा विचारवान गंभीर नेताओं को दरकिनार करते हुए उन्हें प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचा दिया। और उनके सब्ज़ बाग दिखाने वाले लच्छेदार भाषणों ने मतदाताओं को उनके पक्ष में निर्णय लेने के लिए मजबूर कर दिया। परंतु अब दो साल बीत जाने के बाद जब वही मतदाता प्रधानमंत्री सहित पूरी पार्टी के नेताओं से पिछले चुनावी वादों का हिसाब मांगने के लिए अपनी कमर कस रहे हैं ऐसे में प्रधानमंत्री एक बार फिर अपने राजनैतिक कौशल का परिचय देते हुए अपने वादों की नाकामी को महसूस करने के बजाए इसे अपने सांसदों के जि़ मे मढऩे की कोशिश कर रहे हैं। खबरों के मुताबिक भाजपा सांसद, मोदी की क्लास में तो ज़रूर शामिल हुए और उनके द्वारा दिए जाने वाले निर्देशों को भी सुना परंतु अनेक सांसद इस बैठक से पहले व बैठक के बाद यह कहते भी सुनाई दिए कि वे अपने क्षेत्र की जनता के पास प्रधानमंत्री द्वारा बताई जा रही योजनाओं का ढिंढोरा पीटने आखिर किस मुंह से जाएं? क्योंकि जनता तो उन वादों को पूरा करने के बारे में ही सवाल करती है जो वादे दो वर्ष पूर्व लोकसभा चुनाव से पहले चुनावी जनसभाओं में किए जा रहे थे?
जहां तक मोदी समर्थकों द्वारा देश की जनता को यह समझाने की कोशिश करने का प्रश्र है कि विश्व में भारत का नाम गत् दो वर्षों में बुलंद हुआ है तो यह तर्क भी देश के लोगों के गले से नीचे नहीं उतरने वाला। क्योंकि नरेंद्र मोदी ने ही पाकिस्तान को चुनाव पूर्व यह कहकर ललकारा था कि वे अपने एक सैनिक के एक सिर के बदले में दुश्मनों के दस सिर काटकर लाएंगे। परंतु जो कुछ दिखाई दिया वह तो यही था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व पाक प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ एक-दूसरे से शाल तथा साड़ी का आदान-प्रदान कर रहे हैं। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री मोदी नवाज़ शरीफ की नातिन की शादी में इस तरह शरीक हुए गोया वे उनके पुराने सगे संबंधी हों। उधर पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले के सिलसिले में भी पाकिस्तानी जांच टीम को घटना स्थल का दौरा कराए जाने को लेकर मोदी सरकार की काफी किरकिरी हुई है। इसी प्रकार चीन व अमेरिका भी भारत को अपेक्षित अहमियत नहीं दे रहा है। उल्टे इन देशों से कोई न कोई ऐसे समाचार आते रहते हैं जो भारत के लिए परेशानी का सबब बनते हैं। हद तो यह है कि नेपाल जैसा छोटा पड़ोसी देश भी भारत के मुकाबले में चीन की तरफ अपना झुकाव बनाते हुए नज़र आया। लिहाज़ा देश की जनता इस बात को भी मुश्किल से ही हज़म कर सकेगी कि विश्व में भारत की ध्वजा गत् दो वर्षों से कुछ ज़्यादा ही ऊंची लहराने लगी है। अत: भाजपा को चाहिए कि वह जनता से किए गए अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए गंभीर हो न कि अपनी नई-नवेली योजनाओं का जनता से परिचय कराने के लिए क्योंकि जनता का सरोकार चुनावी वादों से अधिक है भावी योजनाओं से कम।