‘असीम’ पर ‘संकीर्णता’ के नियंत्रण का प्रयास ?

                                            पूरे विश्व के श्री राम भक्तों,राम प्रेमियों, भगवान राम के मानने व न मानने वालों,आस्तिकों व नास्तिकों सभी धर्मों व जातियों तथा संसार के समस्त देशों के समस्त देशवासियों तथा समस्त जीव जंतुओं को श्री राम जन्म भूमि मंदिर के तीसरे परन्तु संभवतः अंतिम शिलान्यास की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं। गत 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों श्री राम जन्म भूमि मंदिर का भूमि पूजन कर इसकी आधार शिला रखी गयी। इस अवसर पर प्रधानमंत्री के अतिरिक्त जो अन्य चार अति विशिष्ट हस्तियां  'शिलापूजन मंचासीन' रहीं वे थीं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत,उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ,उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, तथा राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण ट्रस्ट के प्रमुख महंत नृत्य गोपाल दास। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत भी एक विशिष्ट अतिथि को तौर पर यहाँ मौजूद रहे और प्रधानमंत्री के साथ उपस्थित अतिथियों को संबोधित भी किया। देश विदेश में इस बहुप्रतीक्षित मंगल दिवस का सभी भारतवासियों द्वारा स्वागत किया गया। देश ने भी चैन की सांस ली क्योंकि दशकों से मंदिर मस्जिद विवाद को लेकर दिन प्रतिदिन जो साम्प्रदायिक वैमनस्य बढ़ता जा रहा था और विभिन्न राजनैतिक दल जिस अयोध्या मुद्दे को समय समय पर अपने वोट के रूप में भुनाते रहते थे कम से कम राम मंदिर के नाम पर चलने वाली नेताओं की उस दुकानदारी पर तो विराम लग गया। 

                                          परन्तु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने वाला निर्णय सुनाने  के बाद जिस तरह  श्री  राम जन्म भूमि मंदिर के भूमि पूजन के आयोजन को संगठन व दल विशेष की देखरेख में तथा उसी की योजनानुसार संपन्न किया गया उसे लेकर बड़े पैमाने पर आलोचना के स्वर उठ रहे हैं। उम्मीद की जा रही थी कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मंदिर निर्माण के पक्ष में फ़ैसला आने के बाद भूमि पूजन व आधार शिला रखने का कार्यक्रम दुनिया को यह सन्देश दे सकेगा कि भगवान राम भारत के लोगों के लिए एक ऐसे  निर्विवादित महापुरुष हैं जिनके प्रति सभी के मन में बराबर आदर व सम्मान है। रामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की ओर से विशेष अतिथि के रूप में पहला न्योता, अदालतों में बाबरी मस्जिद के पक्षकार रहे इक़बाल अंसारी को देकर तथा पद्मश्री पुरस्कार के लिए नामित फ़ैज़ाबाद निवासी शरीफ़ चचा को भूमि पूजन में सबसे पहला निमंत्रण देकर कर निश्चित रूप से मंदिर निर्माण ट्रस्ट ने इस विषय पर अब तक फैलाई जा चुकी साम्प्र्दायिक दुर्भावना को विराम लगाने की कोशिश तो ज़रूर की। परन्तु इसके बावजूद केंद्र सरकार द्वारा गठित ट्रस्ट ने ऐसे अनेक निर्णय लिए जो मंदिर निर्माण की शुरुआत की ख़ुशी होने के बावजूद देश के एक बड़े वर्ग को रास नहीं आए।

                                           उदाहरण के तौर पर इस अवसर पर सभी धर्मों के एक एक शीर्ष धर्मगुरुओं को भी यदि आमंत्रित किया गया होता तो ज़्यादा बेहतर था। यदि यह संभव नहीं हो सका तो हिन्दू धर्म की ही सभी जातियों के प्रतिनिधियों को तो ज़रूर शामिल होना चाहिए था? चारों शंकराचार्य का आयोजन में शरीक न होना भी देश के लोगों के गले नहीं उतरा। देश यह भी नहीं जान सका कि यदि प्रधानमंत्री की उपस्थिति ज़रूरी थी तो राष्ट्रपति की क्यों नहीं? यह भी नहीं तो कम से कम प्रत्येक राजनैतिक दलों के एक एक प्रतिनिधियों को ही शामिल कर राम को लेकर एकता का सन्देश दिया जा सकता था? इंतेहा तो यह रही कि लाल कृष्ण अडवाणी जैसे नेता जिन्होंने राम जन्म भूमि आंदोलन को गति दी तथा जिनके राजनैतिक प्रयासों से भाजपा आज इस स्थान तक पहुंची है, उन्हें भी इस आयोजन में सम्मानित अतिथि का स्थान देना मुनासिब नहीं समझा गया? मुरली मनोहर जोशी जैसे वरिष्ठ नेता व जन्म भूमि आंदोलन के नायक को भी इस समारोह में दरकिनार रखा गया? राम जन्म भूमि आंदोलन के फ़ायर ब्रांड नेता परवीन तोगड़िया को तो जैसे संघ व भाजपा ने भुला ही दिया?देश के विशेषकर अयोध्या के आसपास के क्षेत्रों के उन कारसेवकों को भी इस बात का काफ़ी मलाल रहा की वे उस आयोजन के साक्षी न रह सके जिसमें उन्होंने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था। इस आयोजन को सर्वधर्म,सर्वजातीय,सर्व दलीय आयोजन के बजाए ठीक इसके विपरीत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ,विश्व हिन्दू परिषद् व भाजपा का आयोजन बनाकर संकीर्ण सोच का परिचय दिया गया। भगवान राम पर अपना एकाधिकार जताने वालों पर ही निशाना साधते हुए वरिष्ठ भाजपा नेता व मंदिर आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाली उमा भारती को कहना पड़ा कि 'राम के नाम पर बीजेपी का पेटेंट नहीं हुआ है.उन्होंने कहा कि 'राम के नाम पर किसी का पेटेंट नहीं हो सकता है. राम का नाम अयोध्या या बीजेपी के बाप की बपौती नहीं है. ये सबकी हैं, जो बीजेपी में हैं या नहीं हैं. जो किसी भी धर्म को मानते हो. जो राम को मानते हैं, राम उन्हीं के हैं.'

उमा भारती ने यह भी कहा कि ‘राम’ पर जिस तरह का एकाधिकार जताया जा रहा है वह ‘अहंकार’ है।

                                       नरेंद्र मोदी ने मई 2014 में जब पहली बार देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ लो थी उस समय उन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित कर यह सन्देश देने की कोशिश की थी कि भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ मित्रता व सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाए रखने का इच्छुक है। पूरे विश्व ने नरेंद्र मोदी की इस दूरदर्शी राजनीति को सराहा भी था। परन्तु जिस प्रकार अपने ही देश में श्री राम जन्म भूमि पूजन के आयोजन के इस ऐतिहासिक क्षण में संघ व भाजपा ने अपना एकाधिकार जताने की कोशिश की है उसकी सर्वत्र आलोचना की जा रही है। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी हो या मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड,ए आई आई एम एम ,राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ हो या विश्व हिन्दू परिषद् अथवा भाजपा इनमें से किसी भी संघ,संस्था अथवा दल को किसी भी धर्म या समाज का समग्र प्रतिनिधि संगठन नहीं माना जा सकता। आज देश का किसी भी धर्म या जाति के सभी लोग पूरी तरह से किसी एक संगठन से जुड़े नहीं है। इसलिए भगवन राम हों या किसी भी धर्म के कोई भी महापुरुष या अवतारी पुरुष किसी पर किसी व्यक्ति,संस्था या दल का एकाधिकार नहीं हो सकता। यहाँ मैं अपनी बात के समर्थन में कुंवर महेंद्र सिंह बेदी की उन चार लाइनों को उदघृत करना चाहूंगा जो उन्होंने मुस्लिम बाहुल्य देश दुबई के उस मुशायरे में पढ़ी थीं जहाँ 95 % श्रोता मुस्लिम थे। और उनके इस कलाम को सुनकर पूरा ऑडोटेरियम तालियों की गड़गड़ाहट से देर तक गूंजता रह गया था। हज़रत मोहम्मद व हज़रत अली पर अपना एकाधिकार जताने वाले तंग नज़र मुसलमानों को संबोधित करते हुए उन्होंने फ़रमाया था –‘तू तो हर दीन के हर दौर के इंसान का है। कम कभी भी तेरी तौक़ीर न होने देंगे।। हम सलामत हैं ज़माने में तो इंशाअल्लाह। तुझको इक क़ौम की जागीर न होने देंगे’।। सहर साहब ने यहीं आगे पढ़ा कि -‘हम किसी दीन से हों क़ायल-ए-किरदार तो हैं। हम सनाख़्वान -ए-शह-ए- हैदर-ए-कर्रार तो हैं।। नामलेवा हैं मोहम्मद के परस्तार तो हैं। यानी मजबूर पए अहमद-ए-मुख़्तार तो हैं।। इश्क़ हो जाए किसी से कोई चारा तो नहीं। सिर्फ़ मुस्लिम का मोहम्मद पे इजारा तो नहीं।।

                                      सहर साहब की उपरोक्त पंक्तियों से स्पष्ट है कि महापुरुषों को किसी धर्म विशेष की जागीर नहीं समझा जा सकता। असीम पर संकीर्णता के नियंत्रण के किसी भी प्रयास को 'धार्मिकता' के नज़रिये से नहीं देखा जा सकता बल्कि इसे राजनैतिक स्वार्थ सिद्धि व संकीर्णता का प्रतीक ही माना जाएगा। भजन रचयता रमेश ने अपने  प्रसिद्ध राम भजन में भी यही उल्लेख किया है कि -'घट घट में राम समाना। कण कण मेँ राम समाना || झोपड़पट्टी महल मकाना।  मंदिर मस्जिद देवस्थाना || सब जाति मज़हब घराना। मुढ ढोर ज्ञानी गुणवाना || खग विहग पशु परवाना। सभी क़ब्र घाट श्मशाना। शास्त्र वेद  क़ुरआन बखाना। कोई कोई संत पहचाना। कहे रमेश वो जाने भगवाना।। निश्चित रूप से ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का प्रस्तावित मंदिर भगवान राम के आदर्शों के अनुरूप सद्भाव,सौहार्द्र,राष्ट्रीय एकता,बंधुत्व व सांस्कृतिक समागम की बुनियाद पर खड़ा होना चाहिए न कि किसी के एकाधिकार या संकीर्णता की नींव पर।

(ये लेखक के अपने विचार हैंं,यह आवश्‍यक नहींं कि भारत वार्ता इनसे सहमत हाेे)