एचआईवी के नए संक्रमण दर में गिरावट क्यों थमी?

बॉबी रमाकांत 

2023 और 2024 में वैश्विक स्तर पर एचआईवी से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या में और एड्स से मृत होने वाले लोगों की संख्या में कोई अंतर ही नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के साझा एड्स कार्यक्रम की नवीनतम रिपोर्ट (यूएन-एड्स ग्लोबल एड्स अपडेट 2025) के अनुसार, 2023 और 2024 में, हर साल, विश्व में 13 लाख लोग एचआईवी से नए संक्रमित हुए और 6.3 लाख मृत। ज़ाहिर है कि अधिकांश नए एचआईवी संक्रमण और एड्स मृत्यु वैश्विक दक्षिण देशों में हुईं है।

हालांकि यदि भारत समेत अनेक देशों के आँकड़ें देखें तो अधिकांश देशों में, एचआईवी से संक्रमित होने वाले लोगों और एड्स से मृत होने वाले लोगों की संख्या में बहुत थोड़ी सी गिरावट आई है – पर यह संतोषजनक गिरावट नहीं है। जब तक हम यह सुनिश्चित करें कि एचआईवी से कोई नया व्यक्ति संक्रमित ही न हो और कोई एड्स से मृत न हो, तब तक 2030 तक एड्स उन्मूलन का सपना कैसे साकार होगा?

यूएनएड्स के क्षेत्रीय निदेशक ईमोन मर्फी ने बताया कि 2024 में एशिया पसिफ़िक क्षेत्र में लगभग हर 5 में से 4 नए एचआईवी संक्रमण उन समुदाय में हुए जिन्हें ख़तरा अधिक है – जैसे कि यौनकर्मी, समलैंगिक समुदाय, ट्रांसजेंडर या हिजरा समुदाय, सुई से नशा करने वाले लोग, आदि। अफ़्रीका में हर 4 में से 1 नया एचआईवी संक्रमण इन समुदाय में हुए।

2024 में अफ़्रीका में 8 लाख से अधिक लोग एचआईवी से नए संक्रमित हुए, जिनमें से दो-तिहाई लड़कियां या महिलायें थीं। जो लड़कियां/ महिलाएं 15-24 वर्ष की हैं उनको अफ़्रीका में एचआईवी से संक्रमित होने का खतरा दुगना है (इसी उम्र के पुरुषों की तुलना में)।

दक्षिण अफ्रीका के अधिवक्ता लेटल्होगोनॉलों ने बताया कि एचआईवी सिर्फ स्वास्थ्य का मुद्दा नहीं है बल्कि सामाजिक, आर्थिक और विधिक मुद्दों के साथ आंतरिक रूप से जुड़ा है। यदि हमें एड्स उन्मूलन का सपना साकार करना है तो वायरस तक ही सीमित नहीं रहना होगा – बल्कि जो कारण एचआईवी का खतरा बढ़ाते हैं, उनको समझना होगा और अन्तर-विभागीय और साझीदारी के साथ उन कारणों का समाधान खोजना होगा।

सिर्फ़ सुरक्षित मातृत्व या बाल स्वास्थ्य ही काफ़ी नहीं है बल्कि व्यापक रूप से लोग अपने यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में स्वतंत्रता और स्वायत्तता के साथ निर्णय ले सकें, और ज़रूरी सेवाएँ से लाभान्वित हो सकें, यह भी ज़रूरी है। जब महिलाओं या लड़कियों को यह अधिकार नहीं मिलते तो उनके एचआईवी के साथ संक्रमित होने का खतरा बढ़ जाता है। अन्य स्वाथ्य और सामाजिक समस्याओं का खतरा भी अनेक गुना बढ़ जाता है।

उदाहरण के तौर पर, सब-सहारन अफ्रीका में सिर्फ़ 40% महिलाओं को एचआईवी से बचाव संबंधित सही जानकारी है। कुछ अफ़्रीकी देशों में 50% से कम महिलाओं को गर्भनिरोधक मिल पाते हैं। महिला हिंसा का मुद्दा भी अफ्रीकी देशों में बहुत बड़ा मुद्दा है: दक्षिण अफ्रीका में हर 3 घंटे में 1 महिला की मृत्यु महिला हिंसा के कारण होती है। जो महिलायें, महिला हिंसा से जीवित बच जाती हैं, उनको एचआईवी से संक्रमित होने का खतरा 50% अधिक है। यह कहना है लेटल्होगोनॉलों का।

लेटल्होगोनॉलों ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका में यौनकर्मी को एचआईवी से संक्रमित होने का खतरा 13 गुना अधिक है।

एचआईवी से संक्रमित होने वाले लोगों और एड्स से मृत होने वाले लोगों की संख्या में 2000 की तुलना में काफ़ी गिरावट आई है। यूएनएड्स के इमोन मर्फी ने कहा कि यदि एचआईवी संबंधित वित्तपोषण पूर्ण रूप से बरकरार नहीं किया गया तो एचआईवी से होने वाले नए संक्रमण दर और एड्स से होने वाली मृत्यु दर, 2000 के समान हो सकता है।

ईमोन मर्फी ने बताया कि 2010-2024 के दौरान, एशिया पसिफ़िक क्षेत्र में 9 देश ऐसे हैं जहाँ एचआईवी से संक्रमित होने वाले नए लोगों की संख्या में चिंताजनक बढ़ोतरी हो रही है। फिजी में दुनिया का सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली एचआईवी महामारी है जहाँ 2010-2024 के दौरान, एचआईवी संक्रमण दर में 3091% से अधिक बढ़ोतरी हो गई है।

2010-2024 के दौरान, फिजी के अलावा एशिया पसिफ़िक देशों के इन देशों में एचआईवी दर बढ़ोतरी पर है: फ़िलीपींस (562%), अफ़ग़ानिस्तान (187%), पापुआ न्यू गिनी (84%), भूटान (67%), श्री लंका (48%), तिमोर-लेसते (42%), बांग्लादेश (33%), लाओस (16%)।

2010-2024 के दौरान, एशिया पसिफ़िक क्षेत्र में इन 9 देशों में 50% से कम एचआईवी के साथ जीवित लोगों को जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवाएं मिल पा रही हैं: अफ़ग़ानिस्तान (11%), पाकिस्तान (16%), फिजी (24%), फ़िलीपींस (40%), बांग्लादेश (41%), इंडोनेशिया (41%), मंगोलिया (41%), पापुआ न्यू गिनी (46%), और मालदीव्स (48%)।

2010-2024 के दौरान, विश्व में एचआईवी से नए संक्रमित होने वालों की संख्या में 40% गिरावट आई, पर अफ़्रीका के देशों ने अधिक प्रगति की और वहाँ यह संख्या 57% गिरी। पर एशिया पसिफ़िक के देशों में यह संख्या सिर्फ़ 17% कम हुई।

लेटल्होगोनॉलों ने बताया कि 2023 में, 54 अफ़्रीकी देशों में से सिर्फ़ 16 ने अपने देश के एचआईवी कार्यक्रम को पूर्णत: सरकारी निवेश से पोषित किया था। अमीर देशों के अनुदान पर टिके हुए बाक़ी देशों के एचआईवी कार्यक्रम, वित्तपोषण की नज़र से अत्यंत संकट में हैं। सभी देशों को अपने स्वास्थ्य कार्यक्रम को पूर्णत: सरकारी निवेश पर, या देश के भीतर ही वित्तपोषण के ज़रिए चलाना चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में संबोधित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र के अन्तर-सरकारी उच्च-स्तरीय राजनीतिक बैठक 2025 में, सतत-विकास-लक्ष्य-3 (स्वास्थ्य सुरक्षा) पर मुख्य चर्चाकर्ता शोभा शुक्ला (सीएनएस संस्थापक) ने कहा कि प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य सेवाएँ, आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं में शामिल होनी चाहिए, जैसे कि सुरक्षित गर्भपात, गर्भपात के बाद की देखभाल, माहवारी संबंधित स्वास्थ्य और स्वच्छता, मानसिक स्वास्थ्य सेवा, आदि। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी स्वास्थ्य सेवाएं हर लड़की और महिला तक अधिकार-स्वरूप पहुँच रही हों, जिनमें विकलांग लोग, जनजातीय लोग, विभिन्न जेंडर के लोग, अधिक आयु के लोग, घुमंतू श्रमिक, शरणार्थी, एचआईवी के साथ जीवित लोग, यौन कर्मी, नशा करने वाले लोग, आदि भी शामिल रहें। महिला हिंसा को झेल रही महिलाओं को सभी प्रकार की स्वास्थ्य और सामाजिक सहयोग और सुरक्षा मिले।

शोभा शुक्ला ने संयुक्त राष्ट्र में एकत्रित सरकारी प्रतिनिधियों से कहा कि सतत विकास लक्ष्यों पर 2030 तक खरा उतरने के लिए सिर्फ़ 5 साल शेष रह गए हैं परंतु जेंडर और स्वास्थ्य न्याय की ओर प्रगति असंतोषजनक है। उन्होंने अपील की कि स्वास्थ्य और जेंडर न्याय को सरकारें प्राथमिकता दें और कार्यक्रम में तेज़ी लायें क्योंकि जब तक जेंडर न्याय और स्वास्थ्य सुरक्षा सबको नसीब नहीं होगी, तब तक सतत विकास लक्ष्यों पर हम खरा नहीं उतर सकते।

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