
फिर तो बेमौत मरेंगे कश्मीरी मुस्लिम
आचार्य श्रीहरि
आतंकवाद और हिंसा बहुत बडी कीमत वसूल करते हैं, बेमौत मारते हैं, विकास को बाधित करते हैं, रोजगार को छीनते हैं, प्रगति को रोकते हैं, भविष्य को कुचलते हैं और अंधकार जैसे वातावरण तैयार करते हैं। दुनिया में जहां भी विकास है, उन्नति हैं, रोजगार है, शिक्षा का वातावरण है, विज्ञान का जोर है वहां पर शांति और सदभाव जरूर है। आप जापान को देख लीजिये, अमेरिका को देख लीजिये, चीन को देख लीजिये, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी सहित पूरे यूरोप को देख लीजिये, इन सभी जगहों पर शांति और सदभाव अभी भी विजयी स्थिति में हैं, दकियानुसी और हिंसा की मानसिकता का बहुत जोर नहीं है। यह अलग बात है कि यूरोप और अमेरिका में भी मुस्लिम आबादी की चरमपंथी और काफिर मानसिकता का कुछ न कुछ प्रतिकुल प्रभाव पडा है, शांति और सदभाव को लेकर थोडी-बहुत परेशानी भी है, तनातनी भी है फिर स्थिति नियंत्रण में हैं। इसके विपरीत हम अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान, लेबनान, सीरिया, सूडान, रूस, यूक्रेन और भारत को भी देख लीजिये, जहां पर हिंसा भी है और आतंकवाद भी है, मुस्लिम आबादी की अंधेरगर्दी भी है, गर्म मिजाजी भी है, अन्य धार्मिक समूहों का संहार करने की मानसिकता भी है, जिसके कारण ये सभी देश विफल देश के रूप में तब्दील हो चुके हैं, जाहिलपन पसरा हुआ है, मानवता खतरे में हैं, विकास और उन्नति की बात सोची ही नहीं जा सकती है, सदभाव और सहयोग की बातें भी बेमानी हो चुकी हैं। बांग्लादेश का विख्यात कपडा पार्केट आज गहरे संकट में है, क्योंकि बांग्लादेश में मजहबी मानसिकताओं ने हिंसा का बीजारोपण किया, लोकतंत्र का संहार किया औरं मुस्लिम मजहबी नीतियों को अपने उपर लाद लिया और शांति-सदभाव का संहार कर दिया। पाकिस्तान आज खुद ही कटोरा लेकर भीख मांग रहा है। दुनिया के कई मुस्लिम देश अमेरिका और यूरेाप के पैसों पर निर्भर हो चुके हैं। हमास की हिंसा की प्रतिक्रिया में फिलिस्तीन की कब्र बन गयी है, एक लाख से अधिक मुस्लिम आबादी इस्राइल के हाथों मारे गये हैं।
इस कसौटी पर हम कश्मीर को ही देख सकते हैं। अभी-अभी पहलगाम हिंसक मुस्लिम मजहबी कांड के दुष्परिणामों पर विश्लेषण कर सकते हैं और उपर्युक्त तथ्यों को चाकचैबंद समझ सकते हैं। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने कश्मीर की शांति और सदभाव में मुस्लिम हिसंक मानसिकता का जहर घोला। धर्म पूछ-पूछ कर हत्याएं हुई। हत्याएं निर्दोष लोगों को हुई। हत्याओं का शिकार बने लोग कश्मीर से कुछ लेने नहीं गये थे बल्कि कुछ देने गये थे। क्या देने गये थे? ये घोडे-खच्चर वालों को रोजगार देने गये, समृद्धि देने गये थे। ये होटल वालों, वाहन वालों और टूरिस्ट गाइडों की जेब भरने गये थे। लेकिन इसके बदले में इन्हें क्या मिला? इन्हें मौत मिली, वह भी भयंकर और विभत्स। आज दुनिया में पर्यटन सिर्फ लाभ का सौदा है, माध्यम है। यह लाभ सक्रिय रहता है, रूकता नहीं है। जब तक हिंसा नहीं होती है, आतंक नहीं पसरा होता है, मुस्लिम काफिर मानिसकता हद से बाहर नहीं होती है तब तक पर्यटन जीवन रेखा बना रहता है, उन्नति और प्रगति का जरिया बना रहता है, समृद्धि का हथियार बना रहता है। स्वीटजर लैंड जैसा छोटा सा देश सिर्फ और सिर्फ अपनी सुंदरता के बदौलत दुनिया का सबसे चमकीला और पंसदीदा जगह बना रहता है। स्वीटजरलैंड की तरह ही कश्मीर की घाटी भी सुंदरता और वैभव का प्रतीक है। कश्मीर घाटी की सुंदरता और वैभव पर्यटकों को आकर्षित करता है। कश्मीर कभी शैव पंथ की जगह थी जहां पर हिन्दुओं के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल भी हैं। कश्मीर घाटी में बहुत सारे पर्यटक ऐसे भी होते हैं जो अपनी धार्मिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए भी जाते हैं। कश्मीर पंडित पलायन के बाद भी अपनी धरती के प्रति लगाव छोडे नहीं है। देश के कोने-कोने में बसे कश्मीरी पंडित हर साल अपनी तीर्थ भूमि को नमन करने के लिए जाना नहीं भूलते हैं।
लेकिन आज कश्मीर में सन्नाटा है। पर्यटकों की उपस्थिति नगन्य है। पर्यटको के प्रतीक्षा में वाहन खडे हैं, वाहन व्यवसाय ठप है, होटल खाली पडे हुए हैं। हवाई विमान कंपनियों अपने टिकटों पर छूट पर छूट देने का एलान कर रही है फिर भी टिकट के खरीददार नहीं है। घोडे वाले बेकार हो गये हैं। खबर तो यहां तब आयी है कि घोडे और खच्चरों को जंगलों में छोड दिया गया है, क्योंकि जब पर्यटक ही नहीं है तो फिर इनका क्या काम है। टूरिस्ट गाइड बेकार हो गये हैं, घर बैठ गये हैं। विदेशी पर्यटक भी कश्मीर घाटी से मुंह मोड लिये हैं। अमेरिका और यूरोप ने अपने नागरिकों से कश्मीर घाटी के भ्रमन करने जाने से मना कर दिया है। देशी पर्यटक आतंकवाद और हिंसा के कारण डरे हुए हैं और भयभीत हैं। देशी पर्यटक ने कश्मीर की जगह उत्तराखंड और नेपाल, हिमाचल प्रदेश का विकल्प खोज लिये हैं। सबसे बडी बात यह है कि कश्मीर में तो अब सिर्फ मुस्लिम आबादी ही रहती है, कश्मीर पंडित तो नगण्य ही हैं। इसलिए पर्यटको की कमी का नुकसान सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम आबादी ही उठायेगी। पाकिस्तान पोषित आतंकवादी भी कश्मीर घाटी की मुस्लिम आाबदी में ही शरण लेते हैं। इस सच्चाई को कौन अस्वीकार करेगा?
कश्मीर घाटी में दो ही प्रमुख रोजगार के साधन हैं। एक रोजगार का साधन पर्यटन है। दूसरा फल का उत्पादन है। सेव सहित अन्य फलों का उत्पादन में एक समय कश्मीर घाटी की चमक जरूर थी। लेकिन कश्मीर घाटी को सेव उत्पादन में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड सहित कई इलाके चुनौती तो दे ही रहे हैं, इसके अलावा विदेशों से फलों के आयात भी खूब हो रहे हैं। इसके साथ ही साथ प्राकृतिक प्र्रकोप भी अपना असर दिखाता है। वीपी सिंह की सरकार के दौरान रूबिया अपहरण कांड ने कश्मीर घाटी में ऐसा जहर बोया था जिससे कश्मीर घाटी की मुस्लिम आबादी की आजीविका प्रभावित हुई थी, पर्यटन का व्यवसाय पटरी से उतरा था और भूखमरी के साथ ही साथ बेरोजगारी भी पसरी हुई थी। उस समय रूबिया के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद देश के गृहमंत्री थे। रूबिया का अपहरण पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों ने की थी। पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों ने इसके बदले में आतंकवादियों की रिहाई करायी थी, फिरोती वूसली थी। रूबिया अपहरण कांड के बाद पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने एक पर एक ऐसी घृणित और लोमहर्षक हिंसा को अंजाम दिया है जिससे मानवता शर्मसार होती है और कश्मीर घाटी को स्थायी तौर हिंसक स्थिति में कैद करती है। घारा 370 समाप्ति के बाद कश्मीर घाटी को एक नया जोश मिला था, होश मिला था और आगे बढने का अवसर भी मिला था। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने राष्ट्रपति शासन के दौरान कश्मीर घाटी से आतंकवाद को नियंत्रित करने और समाप्त करने के लिए कई प्रशंसनीय कार्य किये थे। कश्मीर घाटी के शांति प्रिय लोगों ने भी इस क्षेत्र में सरकार को सहयोग किया था। स्थानीय आतंकी समूहों पर नकेल डाला गया था। सबसे बडी बात यह है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार ने जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए कोई कसर नहीं छोडी थी, पैसे पानी की तरह बहाये, विकास के क्षेत्र में पैसे की कमी नहीं होने दी थी। दुर्गम क्षेत्रों में सड़क बनायी गयी। सडकों के निर्माण से रोजगार के साधन उपलब्ध हुए और आवागमन की स्थिति अच्छी बनी। सबसे बडी बात यह है कि कश्मीर घाटी रेल सेवा से दूर थी। रेल सेवा एक सपना ही था। नरेन्द्र मोदी ने कश्मीर घाटी के लोगों के इस सपने को पूरा कर दिखाया और रेल सेवा को कश्मीर तक पहुंचायी। सडकें अच्छी होंगी और रेल सेवा की पहुंच भी होगी तो विकास के अवसर भी बनेंगे और पर्यटकों को असुविधा भी नहीं होगी।
कश्मीर घाटी में पर्यटन और फल उत्पादन के अलावा अन्य विकल्पों के माध्यम से रोगजार के सृजन की बहुत ज्यादा गुजाइश भी नहीं है। कश्मीर घाटी में कर्ज लेकर होटल और वाहन सहित अन्य व्यवसाय करने वाले लोग बेहाल हैं, उनके सामने विकट समस्या उत्पन्न हो गयी है। बैंको के किस्त की तलवार लटक रही है। पर्यटक अगर कश्मीर घाटी नहीं आयेंगे तो भी फिर कश्मीर घाटी की मुस्लिम आबादी की आजीविका कैसे चलेगी, उन्हें रोजगार कहां से मिलेगा? रोजगार पाकिस्तान तो देगा नहीं, आजीविका तो पाकिस्तान चलायेगा नहीं? ऐसी स्थिति में कश्मीर की मुस्लिम आबादी बेमौत ही मरेगी, दर-दर भटकेगी। आतंकवाद से दूरी बनाना ही कश्मीर की मुस्लिम आबादी के लिए हितकारी है।
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