राग स्वदेशी : हक़ीक़त और फ़साना

                       तनवीर जाफ़री
 

     हमारे देश में स्वदेशी उत्पादों का इस्तेमाल करने के लिये प्रायः आवाज़ बुलंद की जाती है। भारत में स्वदेशी सामानों के इस्तेमाल पर ज़ोर इसलिए दिया जाता है क्योंकि इससे देश की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से कई महत्वपूर्ण लाभ होते हैं। देश में स्वदेशी सामान की खपत से स्वदेशी वस्तुओं का उत्पादन बढ़ता है, जिससे स्थानीय उद्योगों को बल मिलता है। इससे रोज़गार के नए अवसर पैदा होते हैं और बेरोज़गारी की समस्या कम होती है। इसके अतिरिक्त विदेशी उत्पाद पर निर्भरता भी कम होती है। इसीलिये कभी सरकार की तरफ़ से देश को आत्मनिर्भर बनाने के मक़सद से स्वदेशी अपनाने के बारे में देश को जागृत करने के प्रयास किये जाते हैं तो कभी स्वदेशी उत्पादों के नाम पर अपना व्यवसाय चलाने वाले भी 'स्वदेशी अपनाओ ' की बातें करते नज़र आते हैं। परन्तु क्या वजह है कि हम तो स्वदेशी का राग ही अलापते रह जाते हैं उधर पड़ोसी देश चीन का बड़े भारतीय बाज़ार पर क़ब्ज़ा हो जाता है ? चीन निर्मित शायद ही कोई ऐसा जीवनोपयोगी उत्पाद हो जिसकी भरपूर खपत भारत में न होती हो। परन्तु हमारे देश में स्वदेशी अपनाओ का शोर तो ज़्यादा सुनाई देता है परन्तु उसकी गुणवत्ता सुधारने या उचित क़ीमत में आकर्षक,टिकाऊ व योग्य वस्तु का उत्पादन करने पर ज़ोर कम दिया जाता है।

     स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई प्रमुख अवसरों पर आत्मनिर्भर भारत बनाने हेतु स्वदेशी अपनाने के संबंध में जनता से अपील कर चुके हैं। वे दुकानों को स्वदेशी वस्तुओं से सजाने और भारतीय उत्पादों को गर्व से उपयोग करने के लिए नागरिकों को प्रेरित करते रहते हैं। प्रधानमंत्री का मानना है कि विकसित भारत का सपना तभी साकार होगा जब भारतीय सामान वैश्विक बाज़ार में अपनी पहचान बनाएं और प्रत्येक नागरिक स्वदेशी उत्पादों के इस्तेमाल पर गर्व महसूस करे। इसीलिये प्रधानमंत्री अक्सर 'वोकल फ़ॉर लोकल' की बात करते सुने जाते हैं जिसमें स्थानीय बाज़ार और उत्पादों को बढ़ावा देने पर बल दिया जाता है। निःसंदेह भारत की आत्मनिर्भरता का मार्ग तभी मज़बूत होगा जब देशवासी अपने उत्पादन, तकनीक और नवाचार में स्वदेशी को प्राथमिकता दें। विदेशी वस्तुओं की जगह देसी उत्पाद को पहचान और सम्मान देना आज के दौर में राष्ट्रीय हित, सुरक्षा और आर्थिक मज़जबूती के लिए अत्यंत आवश्यक है।

      परन्तु सवाल यह है कि भारतवासियों के लिये स्वदेशी उत्पाद बनाने वाली कंपनियां या उद्योग अपने आप में कितने विश्वसनीय हैं ? क्या वजह है कि देश के लोगों को भारतीय उत्पाद  की तुलना में अनेक विदेशी उत्पाद ज़्यादा पसंद आते हैं। कई विपक्षी नेता तो यहां तक कहते हैं कि स्वदेशी अपनाने का पाठ पढ़ने वाले प्रधानमंत्री स्वयं विमान से लेकर मोबाईल फ़ोन,पेन,चश्मा व घड़ी आदि सब कुछ विदेशी प्रयोग करते हैं ? स्वदेशी उत्पाद बनाने व बेचने वाले रामदेव भी पूरे देश को स्वदेशी अपनाने की शिक्षा देते रहते हैं। परन्तु अनेक बार उनके उत्पाद मिलावटी या निर्धारित मानकों के प्रतिकूल पाए गये हैं। सेना सहित कई प्रमुख जगहों से पतंजली के उत्पाद हटाये जा चुके हैं। कई बार उनके उत्पाद गुणवत्ता के मानक पर खरे नहीं उतरे। ऐसे में स्वदेशी उत्पाद की विश्वसनीयता पर सवाल तो उठेगा ही ?

      इसी तरह पिछले दिनों तमिलनाडु में बने 'कोल्ड्रिफ़' नामक कोल्ड सीरप ने देशभर में हंगामा खड़ा कर दिया। इस सिरप के पीने से अब तक मध्य प्रदेश, राजस्थान, केरल, और अन्य राज्यों के 26 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है। यह मामला भारत में स्वास्थ्य और दवा सुरक्षा व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े कर रहा है। तमिलनाडु की श्रीसन फ़ार्मास्युटिकल कंपनी द्वारा निर्मित इस विषाक्त सीरप के सेवन से अनेक बच्चों की किडनी फ़ेल हो गयी और कई बच्चों की मौत हो गई। 14 वर्षों से निर्माणाधीन यही सीरप आख़िरकार रिक्तियों, नियमों के उल्लंघनों और मिलावट के कारण अपनी गुणवत्ता पर खरा नहीं उतरा और ज़हरीला साबित हुआ। क्या इस तरह की घटना भारत की दवा सुरक्षा प्रणाली की गंभीर चूक का संकेत नहीं है? निश्चित रूप से इस ज़हरीली दवा के निर्माण में मानकों का उल्लंघन हुआ, और इसे कई वर्षों तक बिना उचित निगरानी के बाज़ार में फैलने दिया गया। बेशक सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया है और दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की दिशा में क़दम उठाने की बात भी की है परन्तु जिनके घरों के 'चिराग़' बुझ गये न तो उन्हें वापस लाया जा सकता है न ही उनपरिवारों को स्वदेशी उत्पाद पर भरोसा करने का पाठ पढ़ाया जा सकता है। 

     आज पूरे देश में सरे आम ज़हरीली सब्ज़ियां,विषाक्त फल, मिलावटी व ज़हरीले दूध,पनीर घी मक्खन खोया कुट्टू का ज़हरीला आटा आदि तमाम चीज़ें बेचीं जा रही हैं। दूध की तो रोज़ के उत्पादन से कई गुना अधिक की खपत है, सरकार व प्रशासन को भी यह सब पता है परन्तु मिलावट ख़ोर मौत के सौदागर सरे आम ऐसी ज़हरीली सामग्री बाज़ार में खपा रहे हैं। तमाम नक़ली दवाइयां बाज़ार में बेचीं जा रही हैं। इसी तरह मिलावटी व ज़हरीली मिठाइयां व बेकरी के सामान बाज़ार में बेख़ौफ़ बिकते हैं। बाज़ार में इन सब चीज़ों की खपत का मुख्य कारण भ्रष्टाचार है। इन मौत के सौदागरों को भली भांति मालूम है कि उनके काले करतूतों का पर्दा फ़ाश होने के बावजूद उनका कुछ भी बिगड़ने वाला नहीं। केवल गुणवत्ता का ही प्रश्न नहीं बल्कि मिठाई वाला यदि आपको एक या दो हज़ार रूपये किलो मूल्य की मिठाई देता है तो वह गत्ते के डिब्बे को भी उसी रेट में तोल देता है। यानी आपको मंहगी क़ीमत अदा करने के बावजूद पूरा सामन नहीं मिल पाता। किसी सामग्री पर छपे अधिकतम खुदरा मूल्य को लेकर भी बड़ा गोलमाल देखा जा सकता है। कई बार तो प्रिंटेड रेट से आधे मूल्य पर भी दुकानदार सामन बेच देता है। जबकि आधे मूल्य पर बेचने पर भी दुकानदार मुनाफ़ा कमाता है।  

      हमारे देश में अभी भी किसी वस्तु के प्रयोग की तिथि समाप्त होने यानी एक्सपायरी डेट निकल जाने के बावजूद सीधे सादे व अनपढ़ लोगों को ऐसा सामान बेच दिया जाता है। कई कम गुणवत्ता वाले सामानों पर किसी ब्रांडेड कम्पनी की मुहर लगा कर बाज़ार में बेच दिया जाता है। इस तरह की मानसिकता का केवल एक ही कारण है कि इस तरह के व्यापार करने वाला व्यक्ति कम समय में अधिक धन कमाना चाहता है। और अपने इस ' अनैतिक व नापाक मिशन' में वह यह भी भूल जाता है कि ऐसा कर वह आम लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहा है क्योंकि उसे इस बात का पूरा यक़ीन रहता है कि किन्हीं विशेष परिस्थितियों में उसके पकड़े जाने के बावजूद उसका कुछ बिगड़ने वाला नहीं । लिहाज़ा देशवासियों को स्वदेशी उत्पाद अपनाने की सलाह देने वालों को चाहिये कि पहले उत्पादन कर्ताओं को यह सख़्त निर्देश व सन्देश दिया जाये कि गुणवत्ता से कोई समझौता न हो। मिलावट ख़ोरी,नक़ली व ज़हरीले खाद्य पदार्थ बाज़ार से पूरी तरह ग़ायब हों। देशवासियों को ज़हरीली सामग्री बेचने वालों को सामूहिक हत्या के अभिप्रायपूर्वक किये गये प्रयास का दोषी मानकर दण्डित किया जाये। भारतीय उत्पाद की क़ीमतें व नाप तौल ठीक हों। जब तक देशवासियों में स्वदेशी उत्पाद के प्रति पूरा विश्वास पैदा नहीं होता तब तक 'राग स्वदेशी' अलापना इसलिये मुनासिब नहीं क्योंकि इसकी हक़ीक़त कुछ और है जबकि असली फ़साना कुछ और।   

                                           (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और उपरोक्त लेख उसके स्वयं के विचार हैं)

    

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