अमेरिकी हस्तक्षेप से मुक्ति की दिशा में मध्य एशिया

     इस्राईल को लंबे समय से मिल रहे अमेरिकी संरक्षण से वैसे तो पूरी दुनिया भली भांति वाक़िफ़ है। परन्तु अब इस अमेरिकी संरक्षण के चलते इस्राईल ख़ासतौर से ग़ज़ा में जिसतरह मानवता की लगातार बर्बर हत्या करता जा रहा है उसे देखकर दुनिया के अधिकांश देश न केवल इस्राईल के ख़िलाफ़ होते जा रहे हैं बल्कि उन्हें इस्राईल को दिया जाने वाला अमेरिकी संरक्षण भी अब रास नहीं आ रहा है। वास्तव में शांतिप्रिय मध्य एशिया में तबाही,बर्बादी व अशांति की इबारत लिखने वाला अमेरिकी संरक्षित इस्राईल ही है। 7 अक्टूबर 2023 को जब से दक्षिणी इस्राइल पर हमास द्वारा हमले किये गये और 251 लोगों को बंधक बनाया गया उसके बाद  इस्राईली सेना (आईडीएफ़ ) ने हमास की आतंकी कार्रवाई के जवाब में जिस तरह ग़ज़ा पट्टी में बड़े पैमाने पर सैन्य कार्रवाई शुरू की और आज तक जारी है उसने इस्राईल व अमेरिका के अमानवीय चेहरे को पूरी तरह उजागर कर दिया है। ग़ज़ा में बर्बरता और अत्याचार की हर सीमाओं को इस्राईल पार कर चुका है। रिहाइशी बस्तियों अस्पतालों स्कूलों शरणार्थी कैंपों धर्मस्थलों आदि को खंडहर बनाने के बाद अब भूखे निहत्थों को मार रहा है।

      ख़बर है कि ग़ज़ा में ग़ज़ा ह्यूमनटेरियन फ़ाउंडेशन (जीएचएफ़) की ओर से बांटा जा रहा खाना बहुत कम लोगों तक पहुंचने के कारण वहां भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई है। कई बार ऐसी अमानवीय घटना भी घटी कि जब जीएचएफ़ के भोजन वितरण केंद्र पर मदद लेने के लिए भूख से तड़पते बच्चे व महिलायें भोजन की ख़ातिर आकर लाइन में लगे उसी समय उन पर इसराइली सुरक्षा बलों ने गोलियां चला दीं जिससे दर्जनों लोग मरे गये। कई बार इस्राईली सुरक्षा बलों द्वारा भूखे शरणार्थियों को खाना देने के लिये बुलाया गया,बाद में लाइन में खड़े होने के बाद उनपर गोलीबारी कर अनेक लोगों की हत्या कर दी गई । संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय के अनुसार पिछले दो महीनों में भोजन हासिल करने की कोशिश कर रहे एक हज़ार से अधिक फ़िलस्तीनी,  इस्राईली हमलों में मारे जा चुके हैं। इनमें से कम से कम 766 लोगों की मौत उन चार वितरण केंद्रों के आसपास हुई है, जिन्हें जीएचएफ़ संचालित करता है।

इसके अलावा 288 लोगों की मौत संयुक्त राष्ट्र और अन्य सहायता केंद्रों के पास हुई है। सौ से अधिक सहायता संगठनों और मानवाधिकार समूहों का कहना है कि ग़ज़ा में बड़े पैमाने पर मानव जनित भुखमरी फैल रही है। अंतरराष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विशेषज्ञों ने इन हालात के लिए  इस्राईल को ज़िम्मेदार ठहराया है क्योंकि वही फ़िलस्तीनी क्षेत्रों में भेजी जाने वाली सप्लाई को नियंत्रित करता है।

      आम लोग ही नहीं बल्कि ग़ज़ा में युद्ध की रिपोर्टिंग करने वाले अनेक स्थानीय व विदेशी पत्रकार व उनका परिवार भी भुखमरी का सामना करने को मजबूर है। कुछ पत्रकार तो इस हद तक असहाय हो चुके हैं कि वे अपने मासूम असहाय बच्चों व परिवार के लिए भोजन तक नहीं जुटा पा रहे हैं। ग़ज़ा में काम करने वाले कुछ पत्रकार तो अपनी जान की बाज़ी लगाकर लाइनों में लगकर चैरिटी किचन से खाना ले रहे हैं। उनके बच्चे दिन में सिर्फ़ एक बार दाल, चावल या पास्ता खा कर गुज़ारा करने को मजबूर हैं। कुछ पत्रकारों ने तो यहाँ तक बताया कि उन्होंने भूख दबाने के लिए नमक मिला पानी पीना शुरू कर दिया है। ज़रा सोचिये जिन पत्रकारों की बदौलत दुनिया को इस्राईली सेना के ज़ुल्म और ग़ज़ा के लोगों की बेबसी व बर्बादी की ख़बर सुनाई व दिखाई देती थी अगर वही पत्रकार व उनका परिवार सुरक्षित नहीं रहेगा तो अमेरिकी संरक्षित इस्राईल के काले करतूत दुनिया तक कैसे पहुंचेंगे ? इन्हीं हालात में अनेक अंतर्राष्ट्रीय राहत संगठन और मानवाधिकार समूह बड़े पैमाने पर भुखमरी फैलने की चेतावनी दे रहे हैं।

     एक ओर तो इस्राईल-अमेरिका फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले हमास को आतंकी संगठन बताकर उसकी आड़ में पूरे फ़िलिस्तीन पर नियंत्रण हासिल करने की फ़िराक़ में है तो दूसरी ओर यही इस्राईल-अमेरिकाअहमद हुसैन अल-शरा, जिसे अबू मोहम्मद अल-जुलानी के नाम से भी जाना जाता है,को सीरिया में बशर अल असद का तख़्ता पलटकर उसे अंतरिम राष्ट्रपति बना देता है। यह वही जुलानी है जिसपर कुछ समय पहले तक अमेरिका ने दस मिलियन डॉलर का ईनाम घोषित कर रखा था। क्योंकि वह अलक़ायदा से जुड़ा था। 2017 में उसने अन्य कई आतंकी संगठनों के साथ मिलाकर हयात तहरीर अल-शाम HTS नामक संगठन बना लिया था। अमेरिका ने HTS को आतंकी लिस्ट में भी रखा था। अब अमेरिका ने उसके संगठन HTS को आतंकी लिस्ट से भी हटा दिया है । गोया जो व्यक्ति अमेरिका के हर विभाजनकारी इरादों में साथ रहे वह उसके लिए आतंकवादी नहीं और जो उसके और इज़रायल के ख़िलाफ़ हो या अपनी स्वतंत्र नीति रखता हो वह आतंकवादी घोषित हो जाता है चाहे वह ईरान जैसा संप्रभुता संपन्न राष्ट्र ही क्यों न हो ?

      बहरहाल, अमेरिका को सर्वशक्तिमान मानने वाले व अमेरिकी रहमो करम पर जीने वाले कुछ अमेरिकी पिट्ठू देशों की शासकों व तानाशाहों की बात छोड़ दें तो पूरा विश्व ख़ासकर मध्य एशियाई देश इस बात को समझ चुके हैं कि अब समय आ गया है कि किसी भी तरह इस्राईल को सबक़ सिखाया जाये और मध्य एशियाई क्षेत्रों को अमेरिकी हस्तक्षेप से मुक्ति दिलाई जाये। ईरान का भय दिखाकर सुन्नी शिया मतभेदों को बढ़ावा देना दरअसल अमेरिका की सुन्नी देशों के प्रति हमदर्दी नहीं बल्कि एक बड़ी चाल है जिसे मुस्लिम जगत अब बख़ूबी समझ चुका है। मुस्लिम जगत जुलानी की आड़ में सीरिया को बर्बाद करने की साज़िश को भी समझ रहा है।परन्तु ख़बर यह भी है कि सीरियाई जनता भी अमेरिका इस्राईल के सीरिया के प्रति नापाक इरादों को भांप कर एकजुट होने लगी है। मध्य एशियाई क्षेत्रों को अमेरिका से मुक्त कराने के शुरुआत संकेत मिलने लगे हैं। ईरान ने गत 23 जून को क़तर की राजधानी दोहा स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डे अल-उदीद एयरबेस पर मिसाइलें दाग़ कर तथा इराक़ और सीरिया में भी अमेरिकी सैन्य ठिकानों को निशाना बना कर यह चेतावनी दे दी है कि अमेरिकी सैन्य अड्डे मध्य एशियाई क्षेत्रों में सुरक्षित नहीं हैं। साथ ही इराक़ी प्रतिरोध समूहों, विशेष रूप से कताइब हिज़बुल्लाह, ने इराक़ी सरकार को यह चेतावनी जारी कर दी है कि वह अमेरिकी सेना को दो महीने के भीतर बगदाद अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और ऐन अल-असद बेस जैसे  इराकी सैन्य ठिकानों, से पूरी तरह से हटने के लिए कहे। इराक़ी प्रधानमंत्री मोहम्मद शिया अल-सुदानी को इस संबंध में पहले से सहमति के आधार पर कार्रवाई करने के लिए "पर्याप्त समय" दिया गया था, और अब केवल दो महीने बचे हैं। यानी सितंबर 2025 के अंत तक अमेरिका को इराक़ छोड़ने की चेतावनी दे दी गयी है। इस चेतावनी में यह भी कहा गया है कि अगर यह कार्रवाई समय सीमा में पूरी नहीं हुई, तो उनकी "अलग राय" होगी , हालांकि उन्होंने "अलग राय" को स्पष्ट नहीं किया।इस तरह की अनेक छोटी बड़ी घटनाओं व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रही गोलबंदी को देखते  हुये इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि मध्य एशिया अमेरिकी हस्तक्षेप से मुक्ति के प्रयास की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

 

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