बीजेपी यूपी-बंगाल में भी महिलाओं-युवाओं पर लगाएगी दांव

      बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने न सिर्फ नीतीश कुमार को दसवीं बार मुख्यमंत्री का ताज पहनाया, बल्कि भारतीय जनता पार्टी को एक ऐसा फॉर्मूला सौंप दिया जो अब उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्यों में परखा जाएगा। एनडीए की 202 सीटों वाली ऐतिहासिक जीत के पीछे आधी आबादी का हाथ साफ दिख रहा है। महिलाओं ने 71.78 प्रतिशत मतदान कर पुरुषों के 62.98 प्रतिशत को पीछे छोड़ दिया, और यह आंकड़ा सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति का आईना है। भाजपा के वरिष्ठ नेता इसे 'वाई' यानी वीमेन-यूथ सेंट्रिक पॉलिटिक्स की जीत बता रहे हैं, जहां जातीय समीकरण टूटे और विकास की योजनाओं ने वोटों का ध्रुवीकरण किया। अब सवाल यह है कि क्या यह मॉडल यूपी की योगी सरकार और बंगाल की ममता बनर्जी की चुनौतियों को पार कर पाएगा? राजनीतिक जानकारों का मानना है कि हां, अगर बजट से लेकर बूथ मैनेजमेंट तक सही दांव चले गए।बिहार की धरती पर जो कुछ हुआ, वह कोई संयोग नहीं था। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, कुल 67.13 प्रतिशत मतदान हुआ, जो 1951 के बाद का रिकॉर्ड है। लेकिन असली खेल तो महिलाओं ने खेला। नीतीश सरकार की 'महिला स्वरोजगार योजना' के तहत डेढ़ करोड़ महिलाओं के खाते में 10 हजार रुपये की किस्त पहुंची, और यह पैसा वोटिंग बूथों पर लंबी-लंबी कतारों के रूप में दिखा। एक तरफ लालू प्रसाद के पुराने मुस्लिम-यादव (एमवाई) समीकरण की बातें हवा में तैर रही थीं, वहीं आधी आबादी ने एनडीए को ऐसा साथ दिया कि महागठबंधन 35 सीटों पर सिमट गया। भाजपा अकेले 89 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी, और जनता दल यूनाइटेड को 85 मिलीं।
 


 

      विशेषज्ञों का कहना है कि महिलाओं ने न सिर्फ संख्या बल्कि गुणवत्ता में भी योगदान दिया। जहां पुरुष वोटरों में सत्ता-विरोधी लहर की चर्चा थी, वहां महिलाओं ने योजनाओं के ठोस असर को प्राथमिकता दी। उदाहरण के तौर पर, दरभंगा की अलीनगर सीट से भाजपा की 25 वर्षीय लोक गायिका मैथिली ठाकुर ने 11,730 वोटों से जीत हासिल की, जो युवा महिलाओं की नई ऊर्जा का प्रतीक बनीं। कुल 88 महिला उम्मीदवार मैदान में उतरे, जिनमें से 28 विजयी रहीं, और भाजपा ने 13 में से 10 को जीतकर रिकॉर्ड बनाया। यह जीत सिर्फ सीटों की नहीं, बल्कि एक नए वोट बैंक की स्थापना की है, जहां जाति से ऊपर उठकर विकास और सुरक्षा का मुद्दा हावी हो गया।अब नजरें उत्तर प्रदेश पर हैं, जहां योगी आदित्यनाथ सरकार साढ़े आठ साल के शासन में कानून-व्यवस्था का पर्याय बन चुकी है। बिहार की सफलता से प्रेरित होकर भाजपा यहां 'वाई' फॉर्मूले को और मजबूत करने की तैयारी में है। फरवरी 2025 में पेश हुए 2025-26 के बजट को ही देख लीजिए 8,08,636 करोड़ रुपये का यह 'चुनावी बजट' महिलाओं और युवाओं पर केंद्रित था। मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना के लिए 225 करोड़ रुपये आवंटित हुए, जो बेरोजगार युवाओं को लोन और ट्रेनिंग का वादा करता है।इसी तरह, निराश्रित महिलाओं के लिए पेंशन योजना पर 2,980 करोड़ रुपये खर्च का प्रावधान किया गया, जिससे लाखों महिलाओं को मासिक सहायता मिलेगी। मेधावी छात्राओं को स्कूटी देने की योजना ने भी सुर्खियां बटोरीं, और लाड़ली बहना जैसी योजनाओं की तर्ज पर महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण का रोडमैप तैयार हो रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि 2027 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पेश होने वाले बजट में रोजगार पर कोई बड़ा ऐलान हो सकता है।

      योगी सरकार ने लोकसभा चुनाव के बाद पुलिस भर्ती परीक्षा का आयोजन कर 60 हजार से अधिक युवाओं को नौकरी का तोहफा दिया, जो बिना किसी भ्रष्टाचार के आरोप के हुआ। यह भरोसा अब विधानसभा चुनाव में कैशेबल हो सकता है।लेकिन यूपी की सियासत सिर्फ योजनाओं पर नहीं थमेगी। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपनी 'पीडीए' यानी पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक पॉलिटिक्स को मजबूत करने में जुटे हैं, जो लोकसभा 2024 में कामयाब रही थी। उपचुनावों में यह कमजोर पड़ी, लेकिन अखिलेश इसे आजमाने को तैयार हैं। भाजपा की काट के तौर पर 'वाई' समीकरण ही काम आएगा।बिहार में जहां एमवाई फॉर्मूला टूटा, वहां यूपी में यादव वोटों का बिखराव भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। एनडीए के यादव उम्मीदवारों ने बिहार में महागठबंधन से ज्यादा सीटें जीतीं, और यूपी में भी ऐसा ट्रेंड दिख सकता है। ऊपर से कानून-व्यवस्था का मुद्दा। योगी सरकार ने महिला अपराधों पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई, जहां एनकाउंटर और सख्त कार्रवाई ने महिलाओं में सुरक्षा की भावना जगाई। पिछले दो सालों में ऐसे सैकड़ों केसों में त्वरित न्याय हुआ, जो चुनावी साल में 'बेटी बचाओ, अपराधी ठोको' का नारा बन सकता है। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि अगर बजट में महिलाओं के लिए 10 हजार रुपये वाली स्वरोजगार योजना जैसा कुछ आया, तो सपा का पीडीए समीकरण धराशायी हो सकता है।

      पश्चिम बंगाल की सियासत में तो यह फॉर्मूला और भी रोमांचक साबित होगा। 2026 के विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा ने बिहार मॉडल को ही आधार बनाया है। पार्टी का लक्ष्य 160 सीटें है, और हर बूथ पर नजर रखने के लिए 'चौकड़ी' तैयार की गई है केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, त्रिपुरा के पूर्व सीएम बिप्लब कुमार देव, सह प्रभारी सुनील बंसल और आईटी हेड अमित मालवीय।बिहार जीत के ठीक बाद बंगाल में लड्डू बांटे गए, और पीएम मोदी ने इसे 'ममता मैजिक तोड़ने' का संकेत दिया। यहां बड़ा मुद्दा महिला सुरक्षा बनेगा। आरजी कर घोटाला, दुर्गापुर में मेडिकल छात्रा के गैंगरेप जैसे मामले तृणमूल कांग्रेस की कमजोरी उजागर कर रहे हैं। भाजपा व्यक्तिगत हमलों से बचते हुए मुद्दों पर फोकस करेगी, जैसा कि अक्टूबर 2025 में रणनीति बदली गई थी।

      बंगाल भाजपा प्रमुख समिक भट्टाचार्य का दावा है कि 2026 में सत्ता उनके हाथ आएगी। युवाओं को साधने के लिए डिजिटल कैंपेन और बूथ मजबूती पर जोर होगा, जबकि महिलाओं के लिए बिहार जैसी योजनाओं का विस्तार। तीन साल से लगे तंबू अब फल ला रहे हैं, और बिहार का प्रयोग यहां अलग रंग में चलेगा जहां बंगाल की सांस्कृतिक विविधता को ध्यान में रखा जाएगा।यह सब देखकर लगता है कि भाजपा ने बिहार से एक टेम्प्लेट तैयार कर लिया है, जो जाति की दीवारें तोड़कर विकास की नींव रखेगा। यूपी में जहां योगी का 'ठोक दो' मॉडल महिलाओं को आकर्षित कर रहा है, वहीं बंगाल में ममता की किलेबंदी को भेदने के लिए सामूहिक नेतृत्व और पीएम मोदी के विकास एजेंडे पर दांव लगेगा।लेकिन चुनौतियां कम नहीं। यूपी में सपा का पीडीए अभी भी मजबूत है, और बंगाल में तृणमूल का स्थानीय समर्थन। फिर भी, आंकड़े बोलते हैं बिहार में 71.78 प्रतिशत महिला वोटिंग ने खेल पलट दिया, और अगर यूपी-बंगाल में 60 प्रतिशत भी ऐसा हुआ, तो 2026 का नक्शा बदल जाएगा।राजनीति के इस नए दौर में 'वाई' ही राज करेगा, जहां आधी आबादी और युवा ऊर्जा मिलकर इतिहास रचेंगे। कुल मिलाकर, बिहार की लहर अब पूरे हिंदुस्तान को छू लेगी, और भाजपा का यह दांव या तो मास्टरस्ट्रोक साबित होगा या सबक। वक्त ही बताएगा, लेकिन तैयारी तो जोरों पर है। 

                                                                       (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

 

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