इंसाफ के खिलाफ क्यों हैं विपक्षी दल

तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को रोकने के लिए ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक-2018’ लोकसभा में पास होने के बाद मुस्लिम महिलाएं बहुत खुश हैं। तीन तलाक के कारण पीड़ित महिलाओं ने तो लोकसभा में विधेयक पारित होने के बाद मिठाइयां बांटी और यह उम्मीद लगाई है कि राज्यसभा से यह विधेयक पारित हो जाएगा। लोकसभा में विधेयक पारित कराने के लिए मुस्लिम महिलाओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई दी है। तीन तलाक मामले की बात करते ही इंदौर की शाहबानो की चर्चा शुरु हो जाती है और साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की भी। यह मामला हमें यह भी याद दिलाता है कि किस तरह एक मुस्लिम महिला को सुप्रीम कोर्ट से मुकदमा जीतने के बावजूद इंसाफ नहीं मिल पाया था। शाहबानो मामले ने देश की राजनीति में उथलपुथल तो मचाया पर असली बदलाव आ आया है। पांच बच्चों की मां इंसाफ के लिए तरसती रही। कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति के कारण शाहबानो का जीवन बहुत ही कष्ट में कटा। मुस्लिमपरस्त नीति के कारण कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी संसद में पलट दिया। मुस्लिम धर्मगुरुओं ने शाहबानो मामले को मुस्लिमों के धार्मिक मामलों में दखल बताते हुए मुस्लिमों के खिलाफ करार दिया। इस मामले को  राजनीतिक कारणों से खूब गर्माया गया। 1973 में गठित ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ जमकर अभियान चलाया। 1986 में कांग्रेस की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम मौलानाओं के दबाव में मुस्लिम महिला(तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित करके सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल दिया। यह कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति का नतीजा ही था कि मुस्लिम महिलाओं को लंबे समय तक इंसाफ के लिए लड़ाई लड़नी पड़ी। कांग्रेस और उसके साथ आवाज मिलाने राजनीतिक दल आज भी महिलाओं को इंसाफ दिलाने की मुहिम का विरोध कर रहे हैं।

तीन तलाक की दोजख भरी जिंदगी से निजात पाने के लिए मुस्लिम महिलाओं ने अदालतों का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट ने अगस्‍त 2017 में इसे असंवैधानिक करार दिया। इसके बाद सरकार इस मुद्दे पर कानून बनाने की तैयारी कर रही है। मुस्लिम संगठनों ने इस मुद्दे को शरीयत से मुद्दा बताया तो लेकिन इस बात का कोई जवाब नहीं देता कि कई मुस्लिम देशों में तीन तलाक गैरकानूनी है। शरीयत की आड़ में भारत से बाहर रहने वाले लोग फोन या सोशल मीडिया के जरिये अपनी बीवी को तलाक-तलाक-तलाक बोलकर निकाह समाप्त कर देते हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर जारी किए अध्यादेश के बावजूद यह कुप्रथा जारी रही। लोकसभा में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट के गैरकानूनी करार दिए जाने के बाद देशभर में तीन तलाक के 248 मामले सामने आए हैं। मीडिया और अन्य रिपोर्ट में ऐसे मामलों की संख्या 477 बताई जा रही है। हो सकता है यह संख्या इससे भी ज्यादा हो सकती है। मीडिया में आए दिन हम इस तरह की खबरें पढ़ते रहे हैं कि अमुक व्यक्ति ने अपनी बीवी को किस तरह तीन तलाक बोलकर दोजख की जिंदगी में झोंक दिया। यह भी जानकारी दी गई कि सबसे ज्यादा तीन तलाक के मामले उत्तर प्रदेश में सामने आए हैं।

मुस्लिम समाज में जारी इस कुप्रथा के खिलाफ तीन तलाक पीड़‍ित पांच महिलाओँ ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। तीन तलाक की सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय विशेष बेंच का गठन किया गया। शीर्ष अदालत ने 2016 में इस पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित सभी पक्षकारों की राय ली। केंद्र ने लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता के आधार पर शीर्ष अदालत में तीन तलाक का विरोध किया तो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड  ने इसे विश्‍वास का मसला बताया। 2017 की मई में उसी साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्‍पणी की और कहा कि निकाह खत्‍म करने का यह सबसे घटिया तरीका है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड 1400 वर्षों से जारी आस्‍था का सवाल बताया। इस पर केंद्र ने तीन तलाक को अवैध ठहराए जाने पर मुस्लिम समाज में विवाह व तलाक के लिए नया कानून बनाने की बात कही। अगस्‍त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में  तीन तलाक को असंवैधानिक और कुरान के मूल सिद्धांतों के  खिलाफ करार दिया। पांच जजों की पीठ ने दो के मुकाबले तीन मतों से फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे भारतीय संविधान के अनुच्‍छेद 14 और 21 का उल्‍लंघन बताया। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस बारे कानून बनाने के निर्देश दिए। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर केंद्र सरकार ने मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक लोकसभा में पेश किया। दिसंबर 2017 में तो लोकसभा से पारित हो गया, लेकिन राज्‍यसभा में पारित नहीं हो पाया। सितंबर 2018 में सरकार ने तीन तलाक के खिलाफ कानूनी रोक के लिए जारी अध्यादेश के तहत तीन तलाक को अपराध घोषित करते हुए शौहर के लिए तीन साल तक की जेल और जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान किया गया।

नरेंद्र मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ दिलाने के वायदे को पूरा कर दिखाया है। कुछ विपक्षी दल इस मुद्दे पर राजनीतिक लाभ के लिए संसद और बाहर होहल्ला मचा रहे हैं। मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ दिलाने के विधेयक के खिलाफ इन दलों ने लोकसभा से बॉयकाट किया। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी और दूसरे दलों को मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ दिलाने की बजाय अपने वोटबैंक की चिंता है। इस साहसिक कार्य के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रिया। भारतीय जनता पार्टी ने मुस्लिम महिलाओं को उनका हक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लोकसभा में ऐतिहासिक विधेयक पारित कराने के बाद हमें उम्मीद है कि राज्यसभा भी इस विधेयक को पारित करेगी।