‘एंटीबायोटिक रेसिस्टेंसी’ : एक वैश्विक समस्‍या

     सार्वजनिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से एंटिबायोटिक का दुरुपयोग आज के समय में एक वैश्विक समस्या बनता जा रहा है। एंटीबायोटिक का बढ़ता रेसिस्टेंट शक्ति को लेकर वैश्विक स्तर पर चिंता जाहिर की जा रही है। इसी संदर्भ को ध्यान में रखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने‘एंटीबायोटिकःहैंडल विथ केयर’ नामक वैश्विक कैंपेन की शुरूआत की है। 16-22 नवंबर,2015 तक पूरे विश्व में प्रथम विश्व एंटिबायोटिक जागरुकता सप्ताह मनाया गया। इस कैंपेन का मुख्य उद्देश्य यह था कि एंटिबायोटिक के बढ़ते खतरों से आम लोगों के साथ-साथ स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े नीति-निर्माताओं का भी ध्यान आकृष्ट कराई जाए।

     विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एंटिबायोटिक रेसिस्टेंस की सामाजिक स्थिति को समझने के लिए एक 12 देशों में एक शोध किया है। इस शोध में बताया गया है कि एंटीबायोटिक के प्रयोग को लेकर लोग भ्रम की स्थिति में हैं। इस सर्वे में 64 फीसद लोगों ने माना है कि वे मानते हैं कि एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस उनके परिवार व उनको प्रभावित कर सकता है, लेकिन यह कैसे प्रभावित करता है और वे इसको कैसे संबोधित करें, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। उदाहरणार्थ 64 फीसद लोग इस बात में विश्वास करते हैं कि सर्दी-जुकाम में एंटीबायोटिक का उपयोग किया जा सकता है, जबकि सच्चाई यह है कि एंटीबायोटिक वायरसों से छुटकारा दिलाने में कारगर नहीं है। लगभग एक तिहाई लोगों ( 32 फीसद ) का मानना था कि बेहतर महसूस होने पर वे एंटीबायोटिक का सेवन बंद कर देते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि उन्हें चिकित्सक द्वारा निर्धारित दवा-कोर्स को पूर्ण करना चाहिए।

     विश्व स्वास्थ्य संगठन के डीजी डॉ. मारगरेट चान का कहना है कि, ‘एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट का बढ़ना सार्वजनिक स्वास्थ्य के सामने बहुत बड़ी समस्या है। विश्व के सभी कोनों में यह खतरे के स्तर को पार कर चुका है।’

     12 देशों में किए गए सर्वे में एक देश भारत भी है। भारत में 1023 लोगों का ऑनलाइन साक्षात्कार किया गया। इस शोध के अनुसार 76 फीसद लोगों ने कहा कि उन्होंने पिछले 6 महीनों में एंटीबायोटिक का सेवन किया है। जिसमें 90 फीसद लोग प्रिस्किप्सन, डॉक्टर व नर्स के कहने पर एंटीबायोटिक लिए थे। 75 फीसद लोगों ने यह माना कि सर्दी-जुकाम में एंटीबायोटिक का उपयोग किया जा सकता है, जो कि गलत है; वहीं 58 फीसद लोगों ने माना कि वे जानते हैं कि एंटीबायोटिक के सेवन में डॉक्टर द्वारा निर्देशित कोर्स को पूरा करना चाहिए। हालांकि 75 फीसद भारतीयों ने माना कि एंटिबायोटिक रेसिस्टेंस विश्व-स्वास्थ्य के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है।

     इस तरह देखा जाए तो आज के वैश्विक माहौल में एंटीबायोटिक रेसिस्टेंसी मानव स्वास्थ्य के लिए एक बहुत ही बड़ी समस्या लेकर अवतरित हुआ है। जरूरत है इससे बचने की।

कैसे बचें

     किसी भी समस्या का सबसे बड़ा निदान यह होता है कि उसे समस्या बनने ही न दिया जाए। कहा भी गया है कि ‘प्रिवेंशन इज बेटर दैन क्योर’। यदि समाज के लोग कुछ मूलभूत बातों का ध्यान रखें तो इस वैश्विक समस्या को बहुत हद तक काबू में किया जा सकता है:-

  • संक्रमरण से बचाव के लिए क्रमिक रूप से हाथ धोएं, भोजन में स्वस्छता का ख्याल रखें।
  • एंटीबायोटिक का सेवन पंजीकृत चिकित्सक के निर्देशन में ही करें।
  • चिकित्सक द्वारा निर्देशित दवा का पूर्ण सेवन करें।
  • कभी भी एंटीबायोटिक का उपयोग कम-ज्यादा न करें।
  • एंटीबायोटिक दूसरों के साथ साझा न करें।

फार्मासिस्ट व स्वास्थ्य कार्यकर्ता क्या करें…

  • यह सुनिश्चित करें की आपका हाथ, चिकित्सकिय उपकरण व वातावरण साफ-सुथरा हो ताकि संक्रमण से बचा जा सके।
  • मरीज का वैक्सिनेशन प्रक्रिया को अप टू डेट रखें…
  • यदि बैक्टेरियल संक्रमण की आशंका हो तो बैक्टेरियल कल्चर टेस्ट जरूर करें ताकि इसकी पुष्टि हो सके।
  • एंटीबायोटिक उसी समय प्रिसक्राइव करें, जब वास्तव में इसकी जरूरत हो
  • ध्यान रखें कि आप जो एंटीबायोटिक प्रिसक्राइव कर रहे हैं वह सही है, उसका डोज सही है और उसकी अवधि सही है।

नीति-निर्धारक कैसे सहयोग कर सकते हैं…

  • एंटीबायोटिक रेसिस्टेंसी को दूर करने के लिए एक बेहतरीन राष्ट्रीय एक्सन प्लान बनाकर।
  • एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस संक्रमण को रोकने के लिए एक बेहतर निरिक्षण-व्यवस्था विकिसत कर के।
  • संक्रमण रोकथाम व इससे जुड़े संसाधनों को मजबूत कर के।
  • गुणवत्ता पूर्ण दवाइयों की उपलब्धता व निगरानी सुनिश्चित करा कर।
  • एंटीबायोटिक रेसिस्टेंसी के बारे में जागरूकता फैलाकर।
  • नव शोध व ईलाज को बढ़ावा देकर।