एक भगवान जो है हैवान-शैतान 

वो दर्द से छटपटाती रही पर निष्ठुर डॉक्टरों को उस पर जरा भी दया नहीं आई

Safdarjung Hospital New Delhi. सफदरजंग अस्पताल के आपातकालीन विभाग के डॉक्टरों द्वारा गरीब मजदूर महिला के साथ निष्ठुर, अमानवीय व मानवता को शर्मसार करने वाला व्यवहार किया, इतना ही नहीं उपरोक्त महिला के साथ गए लोगों के साथ दुर्व्यवहार, बत्तमीजी से बात करना व वहां के ब्लैक कमाण्डों द्वारा अपमानित कराते हुए उन्हें बाहर करवाना सफदरगंज अस्पताल के प्रशासन पर बहुत बड़ा प्रश्न   चिह्न  लगा रहा है। 

ज्ञात रहे कि सुशीला उर्फ पूनम पति राजेश गुप्ता नाम की गरीब मजदूर महिला संजय इंक्लेव, उत्तम नगर में रहती है। सुशीला को करीब कई दिनों से पित्त की थैली में पथरी की शिकायत थी, बाद में पथरी के कारण उसे काफी परेशानी व असहनीय पीड़ा होने लगी। जब सुशीला ने सारी जांच करवाई तो उसे पता चला कि उसके पित्ताशय के किसी नली में पथरी है। वहां पत्थर का अंश उपर की ओर फंस गया है जिसके कारण वो पंद्रह दिनों से कुछ ठीक से अन्न व जल नहीं ग्रहण  कर पा रही थी। खाना खाते या पानी पीते उसे उल्टी होने लगती थी। आधी-आधी रात को असहनीय पीड़ा होने के कारण उसे निकट के अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता था। उसकी हालत कमजोर होते देख कई बार उसे पानी की बोतलें चढ़ी। पीड़ा नित्य बढ़ने के कारण वो दीन दयाल अस्पताल गई वहां भी उसे डॉक्टरों ने अपमानित किया व झिड़का व  एकाक इंजेक्शन लगाने के बाद उसे वहां न आने और अस्पताल में सारी सुविधा न होने की बात कही।

सुशीला की दशा नित्य-प्रतिदिन खराब होती जा रही थी। उसके परिजन सुशीला को पंत अस्पताल ले गए लेकिन वहां भी उसके पित्ताशय के पथरी का ईलाज नहीं हो पाया। पंत अस्पताल के डॉक्टरों ने कहा कि उसके पित्ताशय की पथरी  निकल तो सकती थी किंतु दूरबीन खराब है जिससे उसका पथरी फिलहाल नहीं निकाला जा सकता। 

इतना ही नहीं, सुशीला के परिवार वाले हार नहीं माने उसे वे राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ले गए मगर वहां भी वही दूरबीन न होने की बात कही गई। डॉक्टरों का कहना था कि पित्त की नली में फंसी पथरी को दूरबीन के द्वारा ही सही किया जा सकता है।अंत में राम मनोहर लोहिया के डॉक्टर सुशीला को सफदर जंग अस्पताल में भेज दिया।

मगर सफदरजंग अस्पताल में पहुंचने पर वहां के डॉक्टरों ने सुशीला को एडमिट कर ऑपरेशन करने  से मना कर दिया, एकाक दर्द के इंजेक्शन लगाने के बाद आगे उसकी पथरी जो की उसके पित्ताशय की नली में फंसी थी निकालने से मना कर दिया, जबकि वो असहनीय दर्द से एकदम कराह रही थी वहां के डॉक्टरों ने कहा कि रोगी की जान जब निकलने पर बन आता है तब हम ऑपरेशन करते हैं यानी सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टर एक गरीब महिला के मरने की प्रतीक्षा में थे। क्या एक डॉक्टर इतने निष्ठुर और निर्दयी हो सकते हैं कि किसी दर्द से तड़पती महिला को देख उनका जरा भी हृदय नहीं पसीजा।

वहां, सुशीला के देखरेख के लिए दो महिलाएं व उसकी सहायता के लिए पत्रकार राजीव कुमार भी थे मगर इन लोगों के साथ भी वहां के स्टॉफ के लोगों ने बहुत ही अपमानपूर्वक बात किया गया व सबके सामने बेज्जती की। आपतकालीन वार्ड में एक डॉक्टर से  पत्रकार राजीव कुमार कुछ पूछ रहे थे मगर उस डॉक्टर ने बहुत असभ्य भाषा में उत्तर दिया और जब राजीव कुमार ने उसे सभ्य तरीके से बात करने को कहा तो उसने एक थप्पड़ मारने की बात कही और उस डॉक्टर ने अविलंब वहां अपने ब्लैक बाउंसर को बुलाकर आपातकालीन वार्ड से पत्रकार राजीव कुमार को बाहर करा दिया।

उपरोक्त आपात कालीन वार्ड के दुष्ट डॉक्टर द्वारा पत्रकार राजीव कुमार के साथ अभद्रता पूर्वक बात करने व सबके सामने ब्लैक बाउंसरों द्वारा बाहर कराने पर राजीव कुमार ने अविलंब 100 नंबर पर करीब दिन के 1:30 पर फोन किया, आधे घण्टे में पुलिस आई व राजीव कुमार के साथ अंदर आपातकालीन वार्ड में गई मगर तब तक वो डॉक्टर व दोनों बाउंसर चले गए थे। इसलिए उसका नाम व पद की जानकारी नहीं चल सकी, ज्ञात रहे कि ये सारी घटना 8/08/2017 की है।

पत्रकार राजीव कुमार के साथ दुर्व्यवहार करने वाले डॉक्टर की उम्र अधिकतम 25 से 28 की लग रही थी, वह छोटे-छोट दाढ़ी रखा था। जैसे ही आपातकाल के मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश करेंगे तो बाईं ओर के सबसे अंत में बैठा था व कभी अपने सामने खड़े वेंटीलेटर पर रोगियों को सूई लगाते देखा गया और जो काले कपड़ो में ब्लैक बाउंसर थे वे उस डॉक्टर को पहचानते हैं मगर जब राजीव कुमार के पूछने पर वो बाउंसर उस डॉक्टर का नाम नहीं बताया और राजीव कुमार द्वारा 100 नंबर पर फोन करने का मजाक उड़ाया।

ज्ञात रहे कि जब राजीव कुमार आपातकाल वार्ड से बाहर बाउंसरों द्वारा किये गये तब कुछ देर बाद राजीव  कुमार से दुर्व्यवहार करने वाल डॉक्टर बाहर निकलकर आया तभी राजीव कुमार ने अस्पताल के किसी निचले स्तर के कर्मचारी से उस डॉक्टर का नाम पूछा तो उसने कहा इनका नाम परमेश्वर है, ऐसा बताया। दुर्व्यवहार करने वाला डॉक्टर था या कम्पाउंडर हम दावे के साथ नहीं कह सकते और उसका नाम परमेश्वर है ये भी दावे से नहीं कह सकते क्योंकि पुलिस उसका आई कार्ड नहीं चेक कर पाई, वह जा चुका था। उपरोक्त डॉक्टर के बत्तमीजी करने पर रोगी सुशीला के साथ में गई आरती मिश्रा ने भी उपरोक्त डॉक्टर को ऐसा करने से मना किया मगर उस डॉक्टर ने उनके साथ  भी अपमानित करते हुए बात किया जैसे उसे पता ही नहीं कि उसे महिलाओं के साथ कैसे बात करनी चाहिए।

आगे यह ज्ञात होना चाहिए कि सुशीला देवी के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो किसी प्राइवेट अस्पताल में पैसा देकर अपने ईलाज करवा सकें, अंत में सफदरजंग के डॉक्टरों द्वारा अस्पताल के बाहर का रास्ता दिखाने पर उन्हें मजबूर होकर गंगाराम अस्पताल लाया गया। गंगाराम अस्पताल के डॉ0 नरेश बंशल ने बताया कि सुशीला को ये ऑपरेशन तीन दिन पहले ही करा लेना चाहिए था, क्योंकि सुशीला के सीने के बीच में काफी दर्द हो रहा था और सूजन भी बढ़ता ही जा रहा था, अविलंब सुशीला के ऑपरेशन न होने से उसके साथ कोई भी अनहोनी हो सकती है यहां तक कि उसकी जान भी जा सकती है।

लेकिन समस्या यहां ये थी कि सुशीला के पित्त की थैली के अंदर किसी नली में फंसे पथरी को निकालने के लिए ऑपरेशन की आवश्यकता थी और इसके लिए 35-40 हजार रूपये की भी जरूरत थी मगर एक गरीब मजदूर महिला इतने पैसे कहां से  लाए ? अंत में सुशीला के घर के लोगों को मजबूर होकर किसी से ब्याज पर पैसे लेकर ऑपरेशन करवाना पड़ा। गंगाराम अस्पताल में इस ऑपरेशन की फीस सबसे पहले रिशेप्शन पर कम से कम 35000  रूपये बताई गई, बात में बहुत मिन्नतें करने और गरीबी का हवाला देने पर कुल 18000 रूपये में ऑपरेशन करना तय हुआ, क्योंकि सुशीला की अवस्था हर पल नाजुक ही होती जा रही थी इसलिए डॉक्टर नरेश बंशल ने उसकी दयनीय स्थिति को देखते हुए  30 मिनट के अंदर ऑपरेशन किया और सुशीला के प्राण की रक्षा की जबकि सफदरजंग के डॉक्टरों के लिए सुशीला का दर्द से तड़पना एक बनावटी नखरा था। 

शासन-प्रशासन को  मजदूर गरीब महिला सुशीला उर्फ पूनम के साथ सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा अमानवीय व्यवहार करने व उसको अस्पताल में भर्ती कर ऑपरेशन न करने वाले डॉक्टरों के विरूद्ध आवश्यक कार्यवाही किया जाना चाहिए वर्ना इस तरह इनका दुर्व्यवहार आने वाले रोगियों के लिए बदस्तुर जारी रहेगा। पत्रकार राजीव कुमार के साथ दुर्व्यवहार व अपमानित करने वाले डॉक्टर के विरूद्ध अविलंब उचित कार्यवाही किया जाना चाहिए। महिला आरती मिश्रा के साथ भी बत्तमीजी से बात करने वाले डॉक्टर के विरूद्ध अविलंब कार्यवाही किया जाना चाहिए, ज्ञात रहे कि जिस डॉक्टर ने राजीव कुमार के साथ दुर्व्यवहार किया उसी ने आरती मिश्रा के साथ भी असम्मानित ढंग से बात किया। 

वैसे यहां के वाउंसर, सेक्योरिटी गार्ड किसी का कालर पकड़ लेते हैं, किसी के साथ हाथा-पाई कर लेते हैं। इस अस्पताल में पूरा गंदगी का साम्राज्य है, लूट-घसोट यहां ज्यादा होता है।

सफदरजंग अस्पताल में इस तरह की यह पहली घटना नहीं है, वहां आए दिन रोज इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं। सरकार को इस  तरह की हो रही घटनाओं का संज्ञान लेते हुए अविलंब कार्यवाही करनी चाहिए वर्ना ये अस्पताल राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि को धूमिल कर रहा है। 

तस्‍वीर- सभी तस्‍वीर गूगल से साभार है ।