1984 में सिखों का कत्लेआम कांग्रेस द्वारा प्रायोजित था

जेहादी कांग्रेस द्वारा सिखों के नरसंहार के बाद उपजी भ्रांतियां
 

योगी ब्रह्मऋषि(डॉ. संतोष राय) की कलम से
 

31 अक्तूबर 1984 को ही इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी और उसके उपरान्त पूरे देश में दंगे हुए और कई बेगुनाह सिखों कत्ले आम हुआ। इतना ही नहीं,  दिल्ली में बहुत सारे  हिन्दुओं ने ही कई सिख भाइयों की जान भी बचाई थी । यह दंगा कांग्रेस द्वारा प्रायोजित दंगा था न की हिन्दुओं द्वारा ।

     सिखों को हिन्दुओं से अलग करने का षडयन्त्र तो ब्रिटिश काल में ही प्रारम्भ हो गया था और जो राष्ट्रवादी सिख हिन्दुओं और राष्ट्र के साथ खड़े रहे वे भी चरमपंथी सिखों द्वारा मार दिए गए । और, जो सिख खालिस्तान की मांग कर रहे हैं वे ही सिख परम्परा एवं सिख पंथ को बदनाम कर रहे हैं।  ऐसे लोग सिख होने की अपने हिसाब से परिभाषा दे रहे हैं । यहाँ तक स्थिति यह हो चुकी कुछ फर्जी सिख अपने आपको मुसलमानों से नजदीक पाते हैं और सनातन धर्म एवं हिन्दू संस्कृति को गाली देने में वे अपनी महानता समझते हैं ।

     भारत अनादि काल से हिन्दू देश रहा है। इस देश में जितने भी धर्म, संप्रदाय और मत उत्पन्न हुए हैं उन सभी के अनुयायी  इस देश के वास्तविक उतराधिकारी हैं।  लेकिन जब भारत पर जेहादी मुगल लुटेरों का शासन हुआ तो उन्होंने हिन्दू धर्म और हिन्दुओं को मिटाने के लिए हर तरह के कुत्सित यत्न किये। परिणामस्वरूप  आज जो हिन्दू बचे हैं, उसके लिए हमें उन महापुरुषों का आभार मानना चाहिए जिन्होंने अपने त्याग और बलिदान से देश और धर्म को बचा लिया , जिनकी अमूल्य धरोहर को हम आज सॅंजोए हुए हैं।

 देखा जाए तो इनमें गुरु गोविन्द सिंह का बलिदान सर्वोपरि और सबसे महान है क्योंकि गुरूजी नें धर्म के लिए अपने पिता गुरु तेगबहादुर और अपने चार पुत्र अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतह सिंह को बलिदान कर दिया था। और, बड़े दो पुत्र तो चमकौर के युद्ध में शहीद हो चुके थे, और दो छोटे पुत्र जोरावर सिंह (आयु 8) साल और फतह सिंह (आयु 5) साल जब अपनी दादी के साथ सिरसा नदी पार कर रहे तो अपने लोगों से बिछड़ गए थे, जिनको जालिम मुसलमान सूबेदार वजीर खान ने ठन्डे बुर्ज सरहिंद में कैद कर लिया था ।

     वजीर खान ने पहले तो बच्चों को इस्लाम कबूल करने के लिए लालच दिया, जब बच्चे नहीं माने तो मौत की धमकी भी दी, लेकिन बच्चों ने कहा कि हमारे दादा जी ने धर्म कि रक्षा के लिए दिल्ली में अपना सर कटवा लिया था और हम मुसलमान कैसे बन सकते हैं ? हम तेरे इस्लाम पार थूकते हैं ।

ज्ञात रहे कि गुरु तेगबहादुर ने 16 नवम्बर 1675 को सनातन धर्म एवं हिन्दू संस्कृति कि रक्षा के लिए अपना सर कटवा लिया था।  बच्चों का इस्लाम के प्रति ऐसा तीक्ष्ण जवाब वजीर खान के गाल पर करारा तमाचा था, ऐसा सुनकर वह एकदमआग बबूला हो गया और उसने दोनों बच्चों को एक दीवाल में जिन्दा चिनवाने का आदेश दे दिया और वे बच्चे वहीं अपने धर्म के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

     तदोपरांत, जब गुरूजी को बच्चों के दीवाल में चिनवाए जाने का दु:खद समाचार पाए तो वे जरा सा भी हताश नहीं हुए। सच बात यह थी कि गुरुजी चाहते थे कि लोग अपनी कायरता और दुर्बलता को त्याग करके निर्भय होकर अत्याचारी मुगलों का मुकाबला करें तभी धर्म कि रक्षा हो सकेगी, इसके लिए गुरूजी ने अस्त्र -शस्त्र की उपासना की रीति चलाई :

“वाह गुरूजी का भयो खालसा सुनीको, वाह गुरुजी मिल फ़तेह जो बुलाई है,

धरम स्थापने को, पापियों को खपाने को, गुरु जपने की नयी रीति यों चलाई है।“

     गुरु गोविन्द सिंह जी ने लोगों को सशस्त्र रहने का उपदेश दिया, अस्त्र-शस्त्र को धर्म का प्रमुख अंग बताया, ताकि लोगों के भीतर से भय निकल जाये,  गुरूजी ने कहा कि-
 

“नमो शस्त्र पाणे, नमो अस्त्र माणे, नमो परम ज्ञाता, नमो लोकमाता,

गरब गंजन, सरब भंजन, नमो जुद्ध जुद्ध, नमो कलह कर्ता, नमो नित नारायणे क्रूर कर्ता ।“

-जाप साहब

फिर गुरूजी ने यह भी कहा –
 

“चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊँ, सवा लाख से एक भिडाऊं. तबही नाम गोविन्द धराऊँ “
 

गुरुजी ने अपने इस में आने का यह कारण खुद ही बता दिया था :
 

“इस कारण प्रभु मोहि पठाओ, तब मैं जगत जमम धर आयो,

धरम चलावन संत उबारन, दुष्ट दोखियन पकर पछारन।“
 

     गुरु गोविन्द सिंह जी एक महान योद्धा होने के साथ साथ महान विद्वान् भी थे। वह ब्रज भाषा, पंजाबी, संस्कृत और फारसी भी जानते थे, और इन सभी भाषाओँ में कविता भी लिख सकते थे । जब औरंगजेब के अत्याचार सीमा से बढ़ गए तो गुरूजी ने मार्च 1705 को एक पत्र भाई दयाल सिंह के हाथों औरंगजेब को भेजा, इसमे उसे सुधरने की नसीहत दी गयी थी । यह पत्र फारसी भाषा के छंद शेरों के रूप में लिखा गया है. इसमे कुल 134 शेर हैं, इस पत्र को  “ज़फरनामा “ कहा जाता है।

     यद्यपि यह पत्र औरंगजेब के लिए था, लेकिन इसमें जो उपदेश दिए गए है वह आज हमारे लिए अत्यंत उपयोगी है ।  इसमें औरंगजेब के आलावा इस्लाम, कुरान, और मुसलमानों के बारे में जो लिखा गया है, वह हमारी आँखें खोलने के लिए काफी हैं । इसीलिए ज़फरनामा को धार्मिक ग्रन्थ के रूप में स्वीकार करते हुए दशम ग्रन्थ में शामिल किया गया है ।

     जफरनामा से विषयानुसार कुछ अंश प्रस्तुत किये जा रहे हैं ताकि लोगों को इस्लाम की सच्चाई का पता चल सके :
 

1 – शस्त्रधारी ईश्वर की वंदना :
 

बनामे खुदावंद तेगो तबर, खुदावंद तीरों सिनानो सिपर,

खुदावंद मर्दाने जंग आजमा, ख़ुदावंदे अस्पाने पा दर हवा. 2 -3.
 

उस ईश्वर की वंदना करता हूँ, जो तलवार, छुरा, बाण, बरछा और ढाल का स्वामी है, और जो युद्ध में प्रवीण वीर पुरुषों का स्वामी है जिनके पास पवन वेग से दौड़ने वाले घोड़े हैं ।
 

2 – औरंगजेब के कुकर्म :

तो खाके पिदर रा बकिरादारे जिश्त, खूने बिरादर बिदादी सिरिश्त,

वजा खानए खाम करदी बिना, बराए दरे दौलते खेश रा ।
 

तूने अपने बाप की मिट्टी को अपने भाइयों के खून से गूंथा, और उस खून से सनी मिट्टी से अपने राज्य की नींव रखी और अपना आलीशान महल तैयार किया ।
 

3 – अल्लाह के नाम पर छल : 
 

न दीगर गिरायम बनामे खुदात, कि दीदम खुदाओ व कलामे खुदात,

ब सौगंदे तो एतबारे न मांद, मिरा जुज ब शमशीर कारे न मांद ।
 

     तेरे खुदा के नाम पर मैं धोखा नहीं खाऊंगा, क्योंकि तेरा खुदा और उसका कलाम झूठे हैं। मुझे उनपर यकीन नहीं  है, इसलिए सिवा तलवार के प्रयोग से कोई उपाय नहीं रहा ।
 

4 – छोटे बच्चों की हत्या 
 

चि शुद शिगाले ब मकरो रिया, हमीं कुश्त दो बच्चये शेर रा,

चिहा शुद कि चूँ बच्च गां कुश्त चार, कि बाकी बिमादंद पेचीदा मार ।
 

यदि सियार शेर के बच्चों को अकेला पाकर धोखे से मार डाले तो क्या हु,. अभी बदला लेने वाला उसका पिता कुंडली मारे विषधर की तरह बाकी है और जो तुझ से पूरा बदला चुका लेगा ।
 

5 – मुसलमानों पर विश्वास नहीं :
 

मरा एतबारे बरीं हल्फ नेस्त, कि एजद गवाहस्तो यजदां यकेस्त,

न कतरा मरा एतबारे बरूस्त, कि बख्शी ओ दीवां हम कज्ब गोस्त ।

कसे कोले कुरआं कुनद ऐतबार, हमा रोजे आखिर शवद खारो जार,

अगर सद ब कुरआं बिखुर्दी कसम, मारा एतबारे न यक जर्रे दम ।
 

     मुझे इस बात पर यकीन नहीं कि तेरा खुदा एक ह, तेरी किताब (कुरान) और उसका लाने वाला सभी झूठे हैं, जो भी कुरान पर विश्वास करेगा, वह आखिर में दुखी और अपमानित होगा, अगर कोई कुरान कि सौ बार भी कसम खाए, तो उस पर यकीन नहीं करना चाहिए।
 

6 – दुष्टों का अंजाम :
 

कुजा शाह इस्कंदर ओ शेरशाह, कि यक हम न मांदस्त जिन्दा बजाह,

कुजा शाह तैमूर ओ बाबर कुजास्त, हुमायूं कुजस्त शाह अकबर कुजास्त ।

      सिकंदर कहाँ है, और शेरशाह कहाँ है, सब जिन्दा नहीं रहे, कोई भी अमर नहीं हैं, तैमूर, बाबर, हुमायूँ और अकबर कहाँ गए, सब का एकसा अंजाम हुआ ।
 

7 – गुरूजी की प्रतिज्ञा :

 

कि हरगिज अजां चार दीवार शूम, निशानी न मानद बरीं पाक बूम,

चूं शेरे जियां जिन्दा मानद हमें, जी तो इन्ताकामे सीतानद हमें,

चूँ कार अज हमां हीलते दर गुजश्त, हलालस्त बुर्दन ब शमशीर दस्त ।
 

     हम तेरे शासन की दीवारों की नींव इस पवित्र देश से उखाड़ देंगे, मेरे शेर जब तक जिन्दा रहेंगे, बदला लेते रहेंगे। जब हरेक उपाय निष्फल हो जाए तो हाथों में तलवार उठाना ही धर्म है ।

8 – ईश्वर सत्य के साथ है :

 

इके यार बाशद चि दुश्मन कुनद, अगर दुश्मनी रा बसद तन कुनद,

उदू दुश्मनी गर हजार आवरद, न यक मूए ऊरा न जरा आवरद ।
 

    यदि ईश्वर मित्र हो, तो दुश्मन क्या कर सकेगा, चाहे वह सौ शरीर धारण कर ले। यदि हजारों शत्रु हों, तो भी वह बल बांका नहीं कर सकते हैं,  सदा ही धर्म की विजय होती है ।

     गुरु गोविन्द सिंह ने अपनी इसी प्रकार की ओजस्वी वाणियों से लोगों को इतना निर्भय और महान योद्धा बना दिया कि अज भी मुसलमान सिखों से उलझने से कतराते हैं, वह जानते हैं कि सिख अपना बदला लिए बिना नहीं रह सकते, इसलिए उनसे दूर ही रहो, पंजाबी कवि भाई ईसर सिंह ईसर ने खालसा के बारे में लिखा है :

 

“नहला उत्ते दहला मार बदला चुका देंदा, रखदा न किसीदा उधार तेरा खालसा, रखदा कुनैन दियां गोलियां वी उन्हां लयी, चाह्ड़े जिन्नू तीजेदा बुखार तेरा खालसा ।“
 

पूरा-पूरा बकरा रगड़ जांदा पलो पल, मारदा न इक भी डकार तेरा खालसा”

 

इसी तरह एक जगह कृपाण की प्रसंशा में लिखा है :

 

“हुन्दी रही किरपान दी पूजा तेरे दरबार विच, तूं आप ही विकिया होसियाँ सी प्रेम दे बाजार विच,

गुजरी तेरी सारी उमर तलवार दे व्योपार विच, तूं आपही पैदा होईऊं तलवार दी टुनकार विच ।

तूं मस्त है, बेख़ौफ़ है इक नाम दी मस्ती दे नाल, सिक्खां दी हस्ती कायम है तलवार दी हस्ती दे नाल ।

लक्खां जवानियाँ वार के फिर इह जवानी लाई है, जौहर दिखाके तेग दे, तेगे नूरानी लाई है ।

तलवार जे वाही असां पत्त्थर चों पानी काढिया, इक इक ने सौ सौ वीरां नूं वांग गाजर वाड्धीया”

      मित्रों, इस लेख का एकमात्र उद्देश्य है कि आप लोग गुरु गोविन्द साहिब कि वाणी को आदर पूर्वक पढ़ें और श्री गुरु तेगबहादुर और गुरु गोविन्द सिंह जी के बच्चों के महान बलिदानों को हमेशा स्मरण रखें, और उनको अपना आदर्श मनाकर देश धर्म की रक्षा के लिए कटिबद्ध हो जाएँ वर्ना यह तथाकथित सेकुलर गिरोह और मुस्लिम जिहादी एक दिन सभी सनातनियों को मार डालेंगे। हर एक मुसलमान गजवा ए हिन्द का दु:स्वप्न देख रहा है।

जो लोग कहते हैं की सिख हिन्दू नहीं हैं तो यह गुरु की ही वाणी है इसे भी देख लें :-

"सकल जगत में खालसा पंथ गाजे, जगे धर्म हिन्दू सकल भंड भागे"

गुरु जी ने यह भी कहा की :-
 

"सुन्नत किये पुरुष मुसलमान जो होवेगा नारी का क्या करिए,
अर्धशरीर नार जो त्यागी ताते हिन्दू ही रहिये"

     अर्थात : सुन्नत करने पुरुष मुसलमान बन जाता है और नारी कैसे मुसलमान कहलाएगी, इससे अच्छा हिन्दू ही भले जहाँ नर और नारी को अर्धनारीश्वर कहा जाता है ।

      ज्ञात हो कि अब पंजाब में फिर से उग्रवाद को हवा देने के लिए पगड़ीधारी लोगों से हिन्दूवादी नेताओं की हत्या करवाई जा रही है जिससे सिख बदनाम हो सकें  जो लोग ऐसा कर रहे हैं वे पाकिस्तान और आइएसआई के हाथों के  कठपुतली मात्र हैं  जो कानून के लंबे हाथों से बच नहीं पाएंगे।

      मैं गुरू जी के बातों पर पूर्ण विश्वास के साथ शपथ पूर्वक कहता हूं कि सिख हिन्दू समाज और हिंदुत्व का ही एक अंग है और जो कहते हैं की सिख हिन्दू नहीं है वे मुर्ख भी हैं और वे सिख कदापि नहीं हैं । मैं भाई मतिदास एवं भाई सतिदास की ब्राह्मण परम्परा से हूं जिन्होंने गुरुतेग बहादुर से पहले अपना बलिदान दिया था ।

     सनातन धर्म(हिन्दू) में विभिन्न सम्प्रदाय व पंथ बनें और समय के अनुसार शैव, वैष्णव, वारकरी, लिंगायत, जैन, बौद्ध और अंत में सिख । लेकिन हम अपने मूल स्वभाव और संस्कृति को नहीं भूल सकते हैं । वीर सावरकर ने हिन्दू शब्द को परिभाषित करके कहा है :

आसिंधु सिंधु पर्यन्ता, यस्य भारतभूमिका ।

पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिंदुरिति स्मृत: ॥

 

     सिन्धु नदी से लेकर हिंद महासागर पर्यंत तक फैली हुई भूमि को जो व्यक्ति  अपनी पितृभूमि (पूर्वजों की भूमि) व पुण्यभूमि (देव भूमि, गुरुओं या महापुरुषों की भूमि) मानता है वह हिन्दू है । वैदिक सनातन धर्म, जैन, बौद्ध, लिंगायत, वारकरी, सिख और यहाँ तक नास्तिक दर्शन (चार्वार्क दर्शन) को मानने वाले भी हिन्दू ही कहलायेंगे। अब बात करते हैं पंजाब की।

      इस समय पंजाब में इतने हिन्दू संगठन हो चुके हैं की उन्हें गिनना लगभग मुश्किल हो चुका है और कौन हिंदुत्व के लिए कार्य कर रहा है और कौन नहीं यह भी कहना थोड़ा मुश्किल है । पंजाब में कितने ही तथाकथित हिंदूवादी संगठन कांग्रेस द्वारा पल्‍लवित-पोषित हैं । अब पंजाब में कांग्रेस की सरकार है और हिन्दूवादी नेताओं और कार्यकर्ताओं की हत्याओं पर न तो केन्‍द्र सरकार कुछ बोल रही है और न ही पंजाब में बैठी कांग्रेस सरकार । संघ(RSS) भी मौन है और इस विषय पर उनकी चुप्पी ठीक नहीं है । यहां तक कि सिखों की धार्मिक संस्थाएं यानी अकाल तख़्त भी उपरोक्‍त विषय पर मौन साधे हुए  है । ध्‍यान रहे कि इन सबके  मौन रहने पर समाज में गलत सन्देश जा रहा है ।

 यदि समय रहते सरकार ने स्थिति नही संभाली तो भविष्य में स्थिति भयावह हो सकती है ।

 

(लेखक हिन्दू महासभा-लोकतान्त्रिक के राष्ट्रीय अध्यक्ष  हैं व यह लेख उनके निजी विचार है, भारत वार्ता से इसका कोई संबंध नहीं है न ही इसके लिए जिम्‍मेदार है )