सियासी नौंटकी का फोकटिया प्रचार

बचपन में एक कहानी पढ़ी थी किस तरह बीमार बेटे हुमांयू की जान बचाने के लिए वालिद बाबर ने अल्लाह से दुआ मांगी और कहा था कि अगर उन्हें किसी की जान लेनी ही है तो बेशक वह मेरी जान ले लें लेकिन मेरी औलाद को बख्श दें। कहते हैं कि अल्लाह ने हुमांयू की जान बख्श दी और बाबर की मौत हो गई। अब एक पिता ने दोबारा सरकार बनाने के चक्कर में जनता को यह जानते हुए भी कि पप्पू वोट नहीं देता फिर भी जनता को पप्पू बनाने की कोशिश की। अब जनता है तो सब कुछ जान भी गई। फोकट में लगातार समाजवादी पार्टी के नेता मीडिया में छाये रहे। लोग एक-दूसरे पूछते रहे कि क्या होगा उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का। कमाल की बात तो यह है कि सब का जवाब भी यही था कि अमां यार नौटंकी है बाप-बेटे की। नौटंकी में चाचा, भाई, खान अंकल, मां, समधी यानी सभी ने अपनी-अपनी भूमिका निभाई। सियासी नौटंकी में वही चल रहा है जो पटकथा में लिखा गया है। आखिर में टीपू ने तलवार संभाल ली है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के अमेरिकी सलाहकार ने केवल इतना कहा था कि इमेज चमकाने के लिए उत्तर प्रदेश की जनता में खलनायक बने नेताओं से टकराने का नाटक करो। नौटंकी इतनी बढ़ गई कि सलाहकार भी हैरान हैं।

नौटंकी अभी जारी है। फोकट में मीडिया में जमकर प्रचार हो रहा है। ब्रेक में अखिलेश सरकार के विज्ञापन टीवी चैनलों में लगातार दिखाए जाते हैं तो ब्रेक के बाद सपा में रार के बहाने नेताजी मुलायम सिंह यादव, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, रामगोपाल, शिवपाल के साथ समाजवादी पार्टी के नेताओं के चेहरे चमकाये जा रहे  हैं। अखबारों के आधे पन्ने अखिलेश यादव सरकार की उपलब्धियों से भरे होते हैं तो बाकी पन्ने सपा की सियासी नौटंकी की खबरों से। यह तो अच्छा हुआ कि साल के आखिरी दिन पहले से तय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्र के नाम संबोधन से सपा की सियासी नौटंकी कुछ देर के लिए थमी। यह भी गौर करने वाली बात है कि नए साल के स्वागत में जश्न मनाने को आतुर लोगों ने प्रधानमंत्री का संबोधन बड़े गौर से सुना। प्रधानमंत्री ने गरीब, किसान, मजदूर, छोटे कारोबारी, युवा, महिलाओं और बुजुर्गों के लिए नई घोषणाएं की। पिछले साल आठ नवंबर को की गई नोटबदली के बाद लोगों की दिक्कतों का भी मोदीजी ने जिक्र किया। मोदीजी ने शहरी व ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों को होम लोन में छूट, छोटे व्यापारियों व एमएसएमई को अधिक क्रेडिट गारंटी प्रदान करने तथा कुछ कृषि ऋणों पर 60 दिनों तक ब्याज की छूट तथा वरिष्ठ नागरिकों को ज्यादा ब्याज देने की घोषणा की। जिला सहकारी बैंकों और प्राइमरी सोसायटी से जिन किसानों ने खरीफ और रबी की बुआई के लिए कर्ज लिया था, उस कर्ज के 60 दिन का ब्याज सरकार वहन करेगी और किसानों के खातों में स्थानांतरित करेगी। देश के सभी 650 से ज्यादा जिलों में सरकार गर्भवती महिलाओं को अस्पताल में पंजीकरण और डिलिवरी, टीकाकरण और पौष्टिक आहार के लिए 6 हजार रुपए की आर्थिक मदद देने का ऐलान किया गया। यह राशि गर्भवती महिलाओं के खाते में स्थानांतरित की जाएगी। परेशानियों के बावजूद नोटबदली के समर्थन में खड़े रहने के लिए उन्होंने लोगों का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि देश की ज्यादातर जनता भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहती थी। मोदीजी की घोषणाओं के बाद टीवी चैनलों पर सपा की सियासी नौटंकी पर ज्ञान बांटने वाले मोदीजी की घोषणाओं पर चर्चा करने लगे।

छह महीने पहले नेताजी की सियासी नौटंकी माफिया सरगना मुख्तार अंसारी की कौमी एकता दल के सपा में विलय के बाद होती है। नेताजी के फैसले के खिलाफ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कौमी एकता दल का विलय नहीं होने देते। अपने चाचा शिवपाल यादव के खिलाफ खड़े हो जाते हैं। यह जताने की कोशिश की जाती है कि अखिलेश यादव राज्य में गुंडागर्दी के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं। जनता में खलनायक के तौर पर उभरे शिवपाल के पर कतरने की बात की जाती है। मुलायम सिंह भी शिवपाल के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। चाचा रामगोपाल को पार्टी से पहली बार निकाल दिया जाता है। बर्खास्तगी के बावजूद रामगोपाल राज्यसभा में सपा के नेता बने रहते हैं। खैर रामगोपाल की वापसी हो जाती है। सियासी नौटंकी के तहत कभी किसी मंत्री को बाहर कर दिया जाता है तो फिर उसे वापस कुर्सी पर बिठा दिया जाता है। पिछले कई दिन से यह दिखाया जा रहा है कि अखिलेश को साइकिल से उतारने की तैयारी हो रही है। दिखाया जा रहा है कि नेताजी बहुत नाराज हैं। नेताजी अखिलेश के खिलाफ बोलते हैं। उम्मीदवारों की एक सूची शिवपाल जारी करते हैं तो दूसरी अखिलेश यादव निकाल देते हैं। रामगोपाल सपा का आपात सम्मेलन बुलाने की घोषणा करते हैं तो नेताजी मीडियावालों को बुलाते हैं और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तथा रामगोपाल को पार्टी से बाहर कर देते हैं। नेताजी कुछ भूल जाते हैं तो बगल में बैठे शिवपाल कान में कुछ फूंकते हैं और नेताजी आंखों में आंसू लाते हुए बेटे अखिलेश के खिलाफ बोलते हैं। सड़कों पर भी सियासी ड्रामा होता है। दक्षिण के राज्यों की तरह भावुक जनता सड़कों पर हाय-हाय करती है। नेताजी होश में आओ, अखिलेश को वापस लाओ के नारे लगते हैं। अचानक अखिलेश बहुत ताकतवर हो जाते हैं। पार्टी के सम्मेलन में टीपू की तलवार चलती है और राज्यसभा के सदस्य अमर सिंह की पार्टी से कट जाती है। शिवपाल यादव के पर भी कतर दिए जाते हैं। टीपू के चाणक्य रामगोपाल मुख्यमंत्री को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की घोषणा करते हैं। कहा जा रहा है कि नेताजी फिर रूठ गए हैं और चुनाव आयोग से साइकिल चुनाव चिन्ह को लेकर शिकायत कर रहे हैं। यानी अब साइकिल पूरी तरह पंचर हो गई है।

साइकिल की गद्दी को लेकर सपा की सियासी नौटंकी की सच जनता के सामने आ गया है। सच तो यही है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद सपा का ग्राफ कारनामों के कारण लगातार गिर रहा है। 15 साल से सत्ता बाहर भाजपा का ग्राफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के कारण राज्य में तेजी से बढ़ा है। भाजपा की परिवर्तन यात्राओं में जुटी भीड़ इसका प्रमाण है। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 73 सीट जीतने वाली भाजपा विधानसभा चुनाव में मजबूत जमीन पर खड़ी है। मोदी सरकार की बेदाग चमकदार छवि के सामने अखिलेश की इमेज बनाने की कोशिश के तहत यह सियासी स्यापा मचाया जा रहा है। युवा मुख्यमंत्री कुछ समय बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में कहीं क्लीन बोल्ड न हो जाए, इसलिए उनकी इमेज क्लीन बनाने की कोशिश हो रही है। सपा की नौटंकी में चाचा और भाई के साथ कुछ और किरदार भी भूमिका निभा रहे हैं। खान अंकल यानी मोहम्मद आजम खान भी दम ठोक रहे हैं कि उनकी भावुक अपील के कारण नेताजी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद छोड़कर मार्गदर्शक बनने को तैयार हो गए। नेताजी के समधी लालू यादव भी दावा कर रहे हैं कि उनके कारण मुलायम परिवार का सियासी संकट टल गया। जो भी हो देश के सबसे बड़े सियासी परिवार में शिवपाल की बलि दे दी गई। सियासी परिवार भी ऐसा कि जो भी बालिग हुआ कुर्सी पर बैठ गया। कुछ सांसद बन गए, कोई विधायक बन कर मंत्री बन गया और जो बच गए चैयरमैनी का सुख भोग रहे हैं। दरअसल लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में सपा और बहुजन समाज पार्टी मे टक्कर दिख रही थी। लोकसभा चुनाव में तो बसपा का सफाया हो गया। काले धन पर हमले के बाद दलितों की देवी दौलत की बेटी के तौर दिख रही हैं। मायावती की पार्टी में तो भगदड़ मची हुई है। काले धन पर प्रहार के बाद तो माया की माया ही लुट गई। छोटे-मोटे दलों की वजूद मिट रहा है और जो थोड़ा-बहुत बचा है विधानसभा चुनाव में खत्म हो जाएगा। जो अखिलेश यादव विधानसभा चुनाव में अकेले दम पर उतरने का दम ठोक रहे थे, उन्हें अब कांग्रेस से गठबंधन की जरूरत महसूस हो रही है। अब उन्हें राहुल में भैया दिखाई दे रहा है। जनता तो जनता है और सबकुछ जानती है। न नेताजी के बनाने से पप्पू बनेगी और न मायाजाल में फंसने से। कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल, जनता दल और इसी तरह के छोटे-मोटे दलों की तो उत्तर प्रदेश में कोई हैसियत ही नहीं रहेगी। खुद राहुल गांधी और उनके सिपहसालार कांग्रेस में ही भगदड़ नहीं रोक पा रहे हैं। भाजपा से मुकाबले में बने रहने के लिए सपा की सियासी नौटंकी भी जनता पूरी तरह जान गई है।

लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री हैं और राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक मुद्दों पर बेबाक राय के लिए जाने जाते हैं।