विश्वव्यापी वैचारिक लक्षित हिंसा का दोषी कौन?

                इस्लाम तथा मुसलमानों की रक्षा तथा विकास के नाम पर गठित किए गए तथाकथित इस्लामिक गणराज्य पाकिस्तान में मुसलमानों द्वारा मुसलमानों की ही हत्याएं किए जाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। आज पूरे दावे के साथ यह बात कही जा सकती है कि पाकिस्तान के मुसलमानों को दुनिया के किसी अन्य देश अथवा धर्म से कोई खतरा नहीं है जबकि पाकिस्तान का ही स्थानीय मुसलमान वैचारिक एवं जातिवादी कारणों की वजह से लक्षित हिंसा का शिकार हो रहा है। तालिबानी विचारधारा के संगठन तथा वहाबी विचारधारा रखने वाली  दूसरी तंज़ीमें सभी गैर वहाबी मुसलमानों को अपनी लक्षित हिंसा का शिकार बना रही हैं। हद तो यह है कि यह मानवता विरोधी शक्तियां सूफी-संतों की ऐतिहासिक दरगाहों,इमामाबाड़ों तथा इनकी अपनी विचारधारा से मेल न खाने वाले मुसलमानों की मस्जिदों व अन्य इबादतगाहों पर भी बड़े से बड़े आत्मघाती हमले करने से बाज़ नहीं आ रही हैं। इन्हीं राक्षसी शक्तियों द्वारा 2010 में लाहौर की प्रसिद्ध दाता दरबार दरगाह पर बमबारी कर इस ऐतिहासिक एवं प्राचीन,पवित्र स्थल को ध्वस्त कर दिया गया था। इस हमले में 40 मुसलमान मारे गए थे।

                गत् दिनों एक बार फिर विश्व के सुप्रसिद्ध कव्वाल स्वर्गीय गुलाम फरीद साबरी के पुत्र तथा जाने-माने कव्वाल अमजद साबरी की कराची के लियाकताबाद इलाके में अज्ञात हमलावरों द्वारा उस समय हत्या कर दी गई जबकि वे अपने भाई के साथ कार में सफर कर रहे थे। साबरी की हत्या को स्थानीय पुलिस प्रशासन द्वारा आतंकवादी हमला तथा लक्षित हिंसा बताया गया है। अमजद साबरी की मां असरी बेगम के अनुसार हत्यारों ने 6 माह पूर्व भी अमजद साबरी की हत्या के इरादे से उनके घर पर हमला किया था परंतु उस समय इत्तेफाक से वे घर पर मौजूद नहीं थे। और हत्यारे उनकी तलाश कर भाग गए थे। इस घटना के बाद अमजद साबरी ने अपने,अपने परिवार तथा अपने घर की सुरक्षा हेतु गृहमंत्रालय को एक दरवास्त भी दी थी परंतु उनकी सुरक्षा के कोई उपाय नहीं किए गए और आखिरकार  अमजद साबरी को कट्टरपंथी विचारधारा रखने वाले हत्यारों की गोलियों का शिकार होना पड़ा। कितने अफसोस का विषय है कि सूफी संगीत की मशहूर विधा कव्वाली के क्षेत्र में पाकिस्तान का नाम पूरे विश्व में रौशन करने वाले साबरी घराने के इस महान गायक को मारने वाले हत्यारों की ओर से यह कहा गया है कि साबरी की कव्वालियां ईश निंदा की श्रेणी में आती थीं। ज़रा कल्पना कीजिए कि रमज़ान के पवित्र महीने में वहाबी विचारधारा रखने वाला जो वर्ग स्वयं मुसलमानों की हत्याएं करता फिर रहा है वह दूसरों को ईश निंदा का दोषी बता रहा है? जबकि इसी माह-ए-रमज़ान में अमजद साबरी पाकिस्तान में विभिन्न कार्यक्रमों में तथा टीवी स्टूडियो में जाकर अपने कलाम पेश कर इतार तथा सहरी के वक्त आम मुसलमानों में इस्लामी व सूफी भावनाओं का संचार करते नज़र आ रहे थे।

                45 वर्षीय अमजद साबरी की हत्या किसी एक व्यक्ति अथवा किसी गायक या कव्वाल की हत्या नहीं बल्कि यह एक ऐसी वैचारिक तथा लक्षित हत्या है जो पाकिस्तान सहित पूरे इस्लामी जगत को तबाही व बरबादी की ओर ले जा रही है। अब तक लाखों बेगुनाह मुसलमान पाकिस्तान में ही इन्हीं वहाबी विचारधारा रखने वाले विभिन्न संगठनों के आतंक का शिकार हो चुके हैं। यह विचारधारा अपनी कट्टरपंथी विचारधारा के सिवा किसी भी दूसरी विचारधारा को सुनने-समझने अथवा सहन करने के लिए तैयार नहीं है। अपनी बातें ज़ुल्म और जब्र से मनवाना इनकी फितरत में शामिल हो चुका है। क्या औरतें,क्या बच्चे तो क्या बुज़ुर्ग किसी की भी हत्या करने में इन्हें कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं होती। तालिबान व अलकायदा से लेकर आईएसआईएस जैसे खूवार संगठन तक सभी इसी विचारधारा द्वारा पोषित व संरक्षित हैं। यही वजह है कि जिस प्रकार पाकिस्तान में इन मानवता विरोधी तथाकथित मुसलमानों द्वारा अनेक दरगाहों व इमामबाड़ों को अपनी हिंसा का शिकार बनाया गया ठीक उसी प्रकार आईएसआईएस के दहशतगर्दों द्वारा सीरिया तथा इराक में दर्जनों प्रमुख दरगाहों व म$कबरों को भारी विस्फोटकों द्वारा ध्वस्त किया जा चुका है। चूंकि वहाबी विचारधारा के लोग स्वयं किसी दरगाह अथवा मकबरे में जाना गैर इस्लामी समझते हैं लिहाज़ा वे दूसरे मुस्लिम समुदाय के लोगों की इस प्रकार की इबादतगाहों अथवा उनकी आस्था के केंद्रों को भी पसंद नहीं करते। चाहे वह किसी इमाम,नबी,सहाबी अथवा सूफी या पीर-फकीर की दरगाह,मज़ार या मकबरा ही क्यों न हो।

                यहां एक बात यह भी काबिलेगौर है कि पाकिस्तान,अफगानिस्तान,सीरिया तथा इराक जैसे देशों में तो इस विचारधारा के आतंकियों द्वारा ऐसे गैर वहाबी ठिकानों पर हमले कर उन्हें नष्ट किया जा रहा है जबकि सऊदी अरब में भी यही काम सरकारी स्तर पर दूसरे ऐसे तरीकों से अंजाम दिया जा रहा है जिसका कोई देश, धर्म अथवा समुदाय विरोध भी नहीं कर सकता। यानी सऊदी अरब में ऐसे विभिन्न ऐतिहासिक स्थानों को जिनका संबंध हज़रत मोह मद तथा उनके परिवार के अन्य सदस्यों से है लगभग वे सभी स्थान सऊदी प्रशासन द्वारा समाप्त कर दिए गए हैं। इन स्थानों पर विकास के नाम पर बड़े-बड़े होटल तथा दूसरे कई आलीशान भवन बनाए गए हैं। ऐसे कई ऐतिहासिक स्थलों को समाप्त कर उनमें पार्क अथवा राजमार्ग बना दिए गए हैं। गोया सऊदी सरकार विकास के नाम पर वही काम कर रही है जो इनकी विचारधारा से मेल खाने वाले आतंकवादी आतंकी हमलों के रूप में अंजाम दे रहे हैं। अभी पिछले ही दिनों हज़रत अली की शहादत के समय इसी विचारधारा के आतंकियों द्वारा इरा$क में करबला स्थित हज़रत इमाम हुसैन की दरगाह पर आईएसआईएस आतंकियों द्वारा एक बहुत बड़ा हमला करने की साजि़श रची गई थी। कई कारों में विस्फोटक भर कर हज़रत इमाम हुसैन की दरगाह पर हमला करने की इन नापाक ताकतों की एक बड़ी साजि़श को करबला की रक्षा में लगे फौजयों तथा सुरक्षाकर्मियों ने नाकाम कर दिया तथा दरगाह के करीब पहुंचने से पहले ही बीच रेगिस्तान में दर्जनों आईएस आतंकियों को घेरकर मार डाला।

                विश्व में खासतौर पर इस्लामी जगत में हो रही हलचल पर नज़र रखने वालों को इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि आखिर  सऊदी अरब में मक्का व मदीना के अतिरिक्त किसी दूसरी पवित्र दरगाह अथवा मकबरे का नाम कोई क्यों नहीं जानता? जहां पूरे विश्व में यहां तक कि ईसाई तथा हिंदू बाहुल्य क्षेत्रों में सूफी संगीत तथा कव्वालियों की धूम सुनाई देती है वहीं सऊदी अरब में इस प्रकार के आयोजन क्यों नहीं सुने जाते ? जहां पूरी दुनिया हज़रत मोह मद के नवासे हज़रत इमाम हुसैन के सोग में मोहर्रम के अवसर पर जुलूस,जलसा,ताजि़यादारी तथा मातमदारी आदि का आयोजन करती है वहीं स्वयं हज़रत इमाम हुसैन के जन्मस्थान सऊदी अरब में उनकी याद में कोई आयोजन क्यों नहीं होता? ज़ाहिर है इसका जवाब केवल एक ही है और वह यह कि सऊदी अरब का वहाबी शासक परिवार ताजि़यादारी,मातमदारी, कव्वाली अथवा सूफी विचारधारा से संबंधित  अन्य किसी भी कार्यक्रम अथवा आयोजन के सख्‍त ‍  खिलाफ है। इसीलिए वहां न तो इस प्रकार की किसी विचारधारा को पनपने दिया जाता है न ही उन्हें उनकी धार्मिक व वैचारिक आज़ादी के अनुरूप किसी प्रकार के धार्मिक आयोजन करने की कोई छूट है। बजाए इसके सऊदी प्रशासन की यही कोशिश रहती है कि ऐसे कोई भी ऐतिहासिक स्थल जिन्हें देखने व जिनकी जि़यारत(दर्शन) करने की मनोकामना दुनिया के उन मुसलमानों के दिलों में होती है जो हज के दौरान सऊदी अरब पहुंचते हैं,उन्हें विकास के नाम पर ध्वस्त कर दिया जाए और उनका नामोनिशान भी समाप्त कर दिया जाए।

                सऊदी प्रशासन की ऐसी ही कट्टरपंथी व तानाशाही कोशिशों का विरोध करने वाले अरब के प्रसिद्ध शिया धर्मगुरु शेख निम्र-अल निम्र को सऊदी सरकार द्वारा इसी वर्ष 2 जनवरी को सज़ा-ए-मौत दे दी गई। अल निम्र को मौत की सज़ा देने के बाद ईरान सहित दुनिया के कई मुस्लिम देशों ने सऊदी अरब की इस कार्रवाई का बड़े पैमाने पर विरोध भी किया था। अरब के वहाबी शासकों द्वारा पहले भी उनकी हुकूमत अथवा विचारधारा के विरोध में अपना स्वर बुलंद करने वाले सैकड़ों लोगों को सज़ा-ए-मौत दी जा चुकी है। ऐसे में पूरे विश्व के लिए यह एक चिंता का विषय है कि सऊदी अरब में पैट्रो डॉलर के बल पर पनप रही कट्टरपंथी विचारधारा अपने धन,बल की बदौलत स्वयं तथा अरब द्वारा पोषित अपनी ही विचारधारा के आतंकी संगठनों को कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा के नाम पर मानवता का खून बहाने के लिए कब तक उकसाती रहेगी तथा कब तक इन शक्तियों को अपना संरक्षण देती रहेगी ?