लोहड़ी, जो रस्म ही रह गई…

तीज-त्यौहार हमारी तहज़ीब और रवायतों को क़ायम रखे हुए हैं. ये ख़ुशियों के ख़ज़ाने हैं. ये लोक जीवन का एक अहम हिस्सा हैं. इनसे किसी भी देश और समाज की संस्कृति व सभ्यता का पता चलता है. मगर बदलते वक़्त के साथ तीज-त्यौहार भी पीछे छूट रहे हैं. कुछ दशकों पहले तक जो त्यौहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाए जाते थे, अब वे महज़ रस्म अदायगी तक ही सिमट कर रह गए हैं. इन्हीं में से एक त्यौहार है लोहड़ी.

लोहड़ी उत्तर भारत विशेषकर हरियाणा और पंजाब का एक प्रसिद्ध त्यौहार है. लोहड़ी के की शाम को लोग सामूहिक रूप से आग जलाकर उसकी पूजा करते हैं. महिलाएं आग के चारों और चक्कर काट-काटकर लोकगीत गाती हैं. लोहड़ी का एक विशेष गीत है. जिसके बारे में कहा जाता है कि एक मुस्लिम फ़कीर था. उसने एक हिन्दू अनाथ लड़की को पाला था. फिर जब वो जवान हुई तो उस फ़क़ीर ने उस लड़की की शादी के लिए घूम-घूम के पैसे इकट्ठे किए और फिर धूमधाम से उसका विवाह किया. इस त्यौहार से जुड़ी और भी कई किवदंतियां हैं. कहा जाता है कि सम्राट अकबर के जमाने में लाहौर से उत्तर की ओर पंजाब के इलाकों में दुल्ला भट्टी नामक एक दस्यु या डाकू हुआ था, जो धनी ज़मींदारों को लूटकर ग़रीबों की मदद करता था.

जो भी हो, लेकिन इस गीत का नाता एक लड़की से ज़रूर है. यह गीत आज भी लोहड़ी के मौक़े पर खूब गया जाता है.

लोहड़ी का गीत

सुंदर मुंदरीए होए

तेरा कौन बचारा होए

दुल्ला भट्टी वाला होए

तेरा कौन बचारा होए

दुल्ला भट्टी वाला होए

दुल्ले धी ब्याही होए

सेर शक्कर पाई होए

कुड़ी दे लेखे लाई होए

घर घर पवे बधाई होए

कुड़ी दा लाल पटाका होए

कुड़ी दा शालू पाटा होए

शालू कौन समेटे होए

अल्ला भट्टी भेजे होए

चाचे चूरी कुट्टी होए

ज़िमींदारां लुट्टी होए

दुल्ले घोड़ दुड़ाए होए

ज़िमींदारां सदाए होए

विच्च पंचायत बिठाए होए

जिन जिन पोले लाई होए

सी इक पोला रह गया

सिपाही फड़ के ले गया

आखो मुंडेयो टाणा टाणा

मकई दा दाणा दाणा

फकीर दी झोली पाणा पाणा

असां थाणे नहीं जाणा जाणा

सिपाही बड्डी खाणा खाणा

अग्गे आप्पे रब्ब स्याणा स्याणा

यारो अग्ग सेक के जाणा जाणा

लोहड़ी दियां सबनां नूं बधाइयां…

यह गीत आज भी प्रासंगिक हो, जो मानवता का संदेश देता है.

एक अन्य किवदंती के मुताबिक़ क़रीब ढाई हज़ार साल पहले पूर्व पंजाब के एक छोटे से उत्तरी भाग पर एक लोहड़ी नाम के राजा-गण का राज्य था. उसके दो बेटे थे, जो वे हमेशा आपस में लड़ते और इसी तरह मारे गए. राजा बेटों के वियोग में दुखी रहने लगा. इसी हताशा में उसने अपने राज्य में कोई भी ख़ुशी न मनाए की घोषणा कर दी. प्रजा राजा से दुखी थी. राजा के अत्याचार दिनों-दिन बढ़ रहे थे. आखिर तंग आकर जनता ने राजा हो हटाने का फैसला कर लिया. राजा के बड़ी सेना होने के बावजूद जनता ने एक योजना के तहत राजा को पकड़ लिया और एक सूखे पेड़ से बांधकर उसे जला दिया. इस तरह अत्याचारी राजा मारा गया और जनता के दुखों का भी अंत हो गया.