पास हुआ ऐतिहासिक जीएसटी बिल, किसको होगा फायदा किसको नुकसान

संसद के मानसून सत्र के तीसरे सप्‍ताह में राज्‍य सभा में माल और सेवा कर विधेयक (जीएसटी) से संबंधित 122वां संविधान संशोधन विधेयक का पारित होना उल्‍लेखनीय रहा। राज्यसभा, लोकसभा, 29 राज्य और 90 राजनीतिक दल उन सबने विचार मंथन करके व्‍यापक सर्वसम्‍मति से ऐतिहासिक जीएसटी विधेयक को पारित किया।

माल और सेवा कर (जीएसटी) क्‍या है?

गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) एक अप्रत्यक्ष कर यानी इंडायरेक्ट टैक्स है। विभिन्‍न प्रकार के अप्रत्‍यक्ष करों के जरिये राज्‍यों को भारी मात्रा में राजस्‍व प्राप्‍त होता है और उसका लगभग आधा केंद्र सरकार को प्राप्‍त होते हैं।  व्‍यक्तिगत आयकर जैसे प्रत्‍यक्ष कर आबादी के एक छोटे हिस्‍से से ही प्राप्‍त होता है जबकि प्रत्‍यक्ष करों का प्रभाव प्रत्‍येक नागरिक पर पड़ता है। चूंकि अप्रत्‍यक्ष कर खपत के संबंध में होते हैं, इसलिए गरीबों और अमीरों, दोनों को समान रकम चुकानी होती है।

वर्तमान में संविधान, केंद्र और राज्यों को उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क, सेवा कर, मूल्‍य संवर्धन कर (वैट), बिक्री कर, मनोरंजन कर,  प्रवेश कर,  खरीद कर,  विलासिता कर जैसे अप्रत्‍यक्ष करों और विभिन्‍न अधिभारों को लागू करने का अधिकार देता है।

केन्‍द्र और राज्‍य दोनों के पास इन करों को वसूलने के लिए अपने-अपने आधिकारिक तंत्र हैं, लेकिन केन्‍द्रीय उत्‍पाद शुल्‍क और वैट के लिए अधिकांश करों की गणना एक आधार पर की जाती है, जो कुछ चरण में स्‍वयं कराधान या विनिर्माण मूल्‍य श्रृंखला की अन्‍य चरण की शर्त पर भी की जाती है। इसलिए यह टैक्‍स पर लगने वाला टैक्‍स है, जिससे अंतिम उपभोक्‍ता के लिए सामान और सेवाएं ज्‍यादा महंगी हो जाती हैं और इसके अलावा उद्योग तथा व्‍यापार जीवन में भी कठिनाइयां पैदा होती हैं। इस तंत्र की खामियों का सबसे प्रत्‍यक्ष उदाहरण अंतर्राज्‍यीय सीमाओं पर देखा जा सकता है। जहां विभिन्‍न किस्‍मों के टैक्‍स की जांच और चुंगी (OCTROI) तथा प्रवेश कर के भुगतान के लिए ट्रकों की लंबी लाइनें राजमार्गों पर यातायात को कई घंटे जाम कर देती हैं।

1 अप्रैल, 2017 से वस्‍तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लागू होने की उम्‍मीद है। इससे ये सभी टैक्‍स उपभोक्‍ता के लिए एक ही टैक्‍स में शामिल हो जाएंगे। केन्‍द्र, केन्‍द्रीय वस्‍तु एवं सेवा कर (सीजीएसटी) लागू करेगा और वसूल करेगा, जबकि राज्‍य अपने-अपने राज्‍य के अंदर सभी लेन-देन पर राज्‍य वस्‍तु एवं सेवा कर (एसजीएसटी) लागू करेंगे और वसूल करेंगे। सीजीएसटी का इनपुट टैक्‍स क्रेडिट प्रत्‍येक चरण में उत्‍पादन पर सीजीएसटी देयता की अदायगी पर उपलब्‍ध होगा। इसी प्रकार कच्‍चे माल पर भुगतान किये गये एसजीएसटी का क्रेडिट उत्‍पादन पर एसजीएसटी के भुगतान के लिए लागू किया जाएगा। सेवाएं और वस्‍तुएं प्रत्‍येक चरण में मूल्‍य संवर्धन पर लगने वाले कर के अधीन होंगे। इस प्रकार उपभोक्‍ताओं के लिए करों के समग्र भार को कम किया जा सकेगा।

क्या होंगे इसके फायदे?

  • संविधान के मुताबिक केंद्र और राज्य सरकारें अपने हिसाब से वस्तुओं और सेवाओं पर टैक्स लगा सकती हैं।
  • अगर कोई कंपनी या कारखाना एक राज्य में अपने उत्पाद बनाकर दूसरे राज्य में बेचता है तो उसे कई तरह के टैक्स दोनों राज्यों को चुकाने होते हैं जिससे उत्पाद की कीमत बढ़ जाती है। जीएसटी लागू होने से उत्पादों की कीमत कम होगी।
  • नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक जीएसटी लागू होने से देश की जीडीपी में एक से पौने दो फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है।

किन उत्पादों पर लागू होगा जीएसटी?

  • 2014 में पास संविधान के 122वें संशोधन के मुताबिक जीएसटी सभी तरह की सेवाओं और वस्तुओं/उत्पादों पर लागू होगा। सिर्फ अल्कोहल यानी शराब इस टैक्स से बाहर होगी।

 कैसे काम करेगा जीएसटी?

  • -जीएसटी में तीन अंग होंगे – केंद्रीय जीएसटी, राज्य जीएसटी और इंटीग्रेटेड जीएसटी।
  • -केंद्रीय और इंटीग्रेटेड जीएसटी केंद्र लागू करेगा जबकि राज्य जीएसटी राज्य सरकारें लागू करेंगी।
  • अगर जीएसटी भी वैट की तरह है तो फिर इसकी जरूरत क्यों?
  • -हालांकि जीएसटी भी वैट जैसा ही टैक्स है, लेकिन इसके लागू होने से कई और तरह के टैक्स नहीं लगेंगे।
  • -इतना ही नहीं जीएसटी लागू होने से अभी लगने वाले वैट और सेनवेट दोनों खत्म हो जाएंगे।

किसी भी राज्य में सामान का एक दाम

  • -जीएसटी लागू होने से सबसे बड़ा फायदा आम आदमी को होगा. पूरे देश में किसी भी सामान को खरीदने के लिए एक ही टैक्स चुकाना होगा। यानी पूरे देश में किसी भी सामान की कीमत एक ही रहेगी। जैसे कोई कार अगर आप दिल्ली में खरीदते हैं तो उसकी कीमत अलग होती है, वहीं किसी और राज्य में उसी कार को खरीदने के लिए अलग कीमत चुकानी पड़ती है। इसके लागू होने से कोई भी सामान किसी भी राज्य में एक ही रेट पर मिलेगा।

कर विवाद में कमी

  • -अगर यह लागू हो जाता है तो कई बार टैक्स देने से छुटकारा मिल जाएगा। इससे कर की वसूली करते समय कर विभाग के अधिकारियों द्वारा कर में हेराफेरी की संभावना भी कम हो जाएगी। एक ही व्यक्ति या संस्था पर कई बार टैक्स लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, सिर्फ इसी टैक्स से सारे टैक्स वसूल कर लिए जाएंगे। इसके अलावा जहां कई राज्यों में राजस्व बढ़ेगा तो कई जगह कीमतों में कमी भी होगी।

कम होगी सामान की कीमत

  • -इसके लागू होने से टैक्स का ढांचा पारदर्शी होगा जिससे काफी हद तक टैक्स विवाद कम होंगे। इसके लागू होने के बाद राज्यों को मिलने वाला वैट, मनोरंजन कर, लग्जरी टैक्स, लॉटरी टैक्स, एंट्री टैक्स आदि भी खत्म हो जाएंगे। फिलहाल जो सामान खरीदते समय लोगों को उस पर 30-35 प्रतिशत टैक्स के रूप में चुकाना पड़ता है वो भी घटकर 20-25 प्रतिशत पर आ जाने की संभावना है।
  • -जीएसटी लागू होने पर कंपनियों और व्यापारियों को भी फायदा होगा. सामान एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में कोई दिक्कत नहीं होगी. जब सामान बनाने की लागत घटेगी तो इससे सामान सस्ता भी होगा।

जीएसटी दर क्या होंगी

इसकी तकरीबन तीन दरें होंगी- ‘x’ के रूप में मानक दर, जिसके दायरे में ज्‍यादातर वस्‍तुएं होंगी, आम उपभोग वाली वस्‍तुओं के लिए ‘x-माइनस’ और विलासिता वाली वस्‍तुओं अथवा तथाकथित ‘नीति विरुद्ध वस्‍तुओं’ के लिए ‘x-प्‍लस’। संविधान संशोधन में जीएसटी दरों का कोई भी उल्‍लेख नहीं किया गया है, जिसके बारे में निर्णय जीएसटी परिषद लेगी जिसमें अध्‍यक्ष के तौर पर केंद्रीय वित्‍त मंत्री और राज्‍यों के वित्‍त मंत्री शामिल होंगे। जीएसटी परिषद में लिए जाने वाले किसी भी निर्णय के लिए परिषद के तीन चौथाई सदस्‍यों की मंजूरी आवश्‍यक होगी। राज्‍यों के पास दो तिहाई मताधिकार और केंद्र के पास एक तिहाई मताधिकार होंगे। कांग्रेस पार्टी ने जीएसटी दर के लिए 18 फीसदी की सीमा तय करने की मांग की है, जबकि सरकार ने राजस्‍व तटस्‍थ दर (आरएनआर) सुनिश्चित करने का आह्वान किया है। आरएनआर में व्‍यापक तब्‍दीली या तो महंगाई अथवा राजकोषीय विवेक के लिहाज से प्रतिकूल साबित हो सकती है। केंद्र एवं राज्‍य दोनों के लिए उचित आरएनआर तय करना एक बड़ी चुनौती साबित होगा।

महंगाई पर असर

विश्‍लेषकों का मानना है कि अल्पावधि में सेवाओं की कीमतों पर कुछ असर पड़ सकता है, जिन पर अभी केंद्रीय स्‍तर पर केवल तकरीबन 14 फीसदी का ही सेवा कर औसतन लगता है। हालांकि, निर्मित उत्‍पादों जैसे कि ऑटोमोबाइल के मामले में मानक जीएसटी का असर उत्‍पाद शुल्‍क और राज्‍यों द्वारा वसूले जाने वाले करों के संयुक्‍त वर्तमान असर की तुलना में बहुत कम रह सकता है। वैसे, मध्यम से लेकर दीर्घ अवधि में इसका असर समाप्‍त हो जाना चाहिए। विशुद्ध रूप से अगर देखा जाए तो जीएसटी महंगाई के कहर को कम कर सकता है और इस तरह यह व्‍यापार/उद्योग जगत के साथ-साथ आम जनता के लिए भी अनुकूल साबित हो सकता है। इसके अलावा, यह अर्थव्‍यवस्‍था के असंगठित क्षेत्र के बड़े हिस्‍से को मुख्‍य धारा में लाएगा।

किसको होगा फायदा किसको नुकसान

जीएसटी लागू होने से केंद्र को तो फायदा होगा लेकिन राज्यों को इस बात का डर था कि इससे उन्हें नुकसान होगा क्योंकि इसके बाद वे कई तरह के टैक्स नहीं वसूले पाएंगे जिससे उनकी कमाई कम हो जाएगी। गौरतलब है कि पेट्रोल व डीजल से तो कई राज्यों का आधा बजट चलता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए केंद्र ने राज्यों को राहत देते हुए मंजूरी दे दी है कि वे इन वस्तुओं पर शुरुआती सालों में टैक्स लेते रहें। राज्यों का जो भी नुकसान होगा, केंद्र उसकी भरपाई पांच साल तक करेगा।

विश्लेषकों का मानना है, वस्तु् एवं सेवा कर (जीएसटी) पहले ही दिन से ज्यासदातर राज्यों खासकर उपभोक्ता‍ प्रदेशों को लाभान्विसत करने लगेगा। अपने राजस्व संग्रह में कमी को लेकर राज्यों  के जेहन में व्यातप्ति आशंकाओं के निराकरण के लिए पिछले शुक्रवार को लोकसभा में उनके द्वारा जीएसटी पर पेश किए गए संविधान संशोधन विधेयक में प्रावधान किए गए हैं। इन प्रावधानों के जरिए यह सुनिश्चि किया गया है कि जीएसटी के लागू होने के बाद किसी भी राज्यि को कुछ भी राजस्वै का नुकसान न हो। अंतर-राज्यन व्यापार अथवा वाणिज्यं होने की स्थिति में वस्तुओं की आपूर्ति पर एक ‘गैर-वैट योग्यण अतिरिक्त  कर लगाने का प्रस्ताव किया गया है, जो 1 फीसदी से ज्यादा नहीं होगा। यह कर या तो अधिकतम दो साल के लिए लगाया जाएगा या उस अवधि के लिए मान्य होगा जिसकी सिफारिश जीएसटी परिषद करेगी। वस्तुओं की आपूर्ति पर इस अतिरिक्तक कर से मिलने वाली राशि को उन राज्यों को आवंटित कर दिया जाएगा । जैसे-जैसे व्यानपार बढ़ने लगेगा और विकास रफ्तार पकड़ने लगेगा, वैसे-वैसे जीएसटी पर अमल हर राज्यर के राजस्वं में बढ़ोतरी दर्शाने लगेगा। यही नहीं, जीएसटी पर अमल के कारण अगर कुछ भी राजस्व का नुकसान होता है तो केंद्र पांच वर्षों तक राज्यों  को उसकी भरपाई करेगा।