खम ठोंकता मोदी का खाम

गुजरात के सामाजिक राष्ट्रवाद के गर्भ में पल रहा यह राजनीतिक समाजवाद है. जिन हथकण्डों और तरीकों का इस्तेमाल करके कांग्रेस ने गुजरात को लंबे समय तक अपना गढ़ बनाये रखा अब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी उन्हीं हथकण्डों और तरीकों से गुजरात को राष्ट्रवाद की अभेद्य प्रयोगशाला बनाने में कामयाब हो गये हैं. गुजरात में विधानसभा चुनाव अभी करीब सालभर दूर हैं लेकिन राजनीतिक मैदान पर नरेन्द्र मोदी जीत दर्ज कर चुके हैं.

दरअसल, मोदी ने तीन बार मुख्मंत्री बनने के बाद अगली बार भी गुजरात में बीजेपी की सत्ता बनाए रखने के लिए वह काम शुरू किया है, जो एक जमाने में कांग्रेस अपने लिए देश भर में समान रूप से किया करती थी। गुजरात में कांग्रेस के माधवसिंह सोलंकी क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुसलमान, (केएचएएम) यानी ‘खाम’ को कब्जे में करके बहुत पहले एक बार गुजरात में रिकॉर्ड 148 सीटें जीतकर कांग्रेस को सत्ता में लाए थे। सोलंकी से पहले और उनके बाद इतने भारी बहुमत से गुजरात में कोई भी सत्ता में नहीं आ सका। अब यही फार्मुला मोदी ने अपना लिया है। मुख्यमंत्री मोदी की तैयारी माधवसिंह सोलंकी से भी ज्यादा 151 सीटों पर जीतने की है। इस फार्मूले से पहले मोदी ने यह अच्छी तरह से समझ लिया है कि गुजरात के गौरव का एक जो इमोशनल और सहज पासा उनके हाथ में है, इसी को लेकर गरीब, पिछड़े और मुसलमानों जैसे कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में आसानी से सैंध लगाई जा सकती है। इसी रणनीति के तहत मोदी ने मुसलमान, गरीब और पिछड़े वर्ग को तो लुभाने लुभाने की तैयारी शुरू की ही है। राजपूतों को भी जोड़ने की जुगत शुरू कर दी है।

 

गुजरात के विभिन्न सरकारी बोर्ड, कॉरपोरेशन और संस्थाओं में हाल ही में की गई नियुक्तियों से यह साफ हो गया है कि गुजरात में सत्ता पर कब्जा करने की कोशिशों में कांग्रेस के मुकाबले मोदी कई कदम आगे चल रहे हैं। और कांग्रेस का सबसे दुखद, दाऱूण और विकट संकट यह है कि मोदी के जिस कदम को जिस तरीके से कांग्रेस गलत बताने की कोशिश करती है, वह हर पासा उल्टा ही पड़ता जा रहा है। सबूत के तौर पर, हाल ही में गुजरात में सरकारी कृषि मेलों में कुछ जगहों पर कांग्रेस ने हंगामा करके जनता का हितैषी बनने की जो कोशिश की, वह बहुत हल्की और सतही साबित हुई और हर बार उल्टी भी पड़ गई। इसके ठीक विपरीत बीजेपी गुजरात के किसान को यह समझाने में सफल हो गई कि किस तरह से किसानों के विकास के काम में कांग्रेस अड़ंगे लगा रही है। किसानों के कल्याण के लिए कृषि मेले लगाने के बाद मोदी पूरे गुजरात में गरीब मेले लगाकर गरीब वर्ग को अपनी ओर लुभाने की तैयारी में हैं।

नरेंद्र मोदी ने लंबे समय तक सत्ता में बने रहने के लिए कांग्रेस की वास्तविक राह पकड़ ली है। जी हां, कांग्रेस की राज करते रहने की परंपरागत राह। मोदी कांग्रेस के जातिगत समीकरण साधने की इस परंपरागत राह से ही कांग्रेस को मात देने की मजबूत कोशिश में हैं। और इसे कुछ खरे खरे शब्दों में कहा जाए तो, अगर कांग्रेस नहीं सुधरी तो मुख्यमंत्री मोदी कांग्रेस की राजनीति की असली राह पर चलकर ही गुजरात में कांग्रेस के अंत की तैयारी का तानाबाना बुनने में कामयाब हो जाएंगे।मोदी ने एक और जो बहुत बड़ा राजनीतिक पासा फैंका है, वह है राजपूत वर्ग में अपना आधार बहुत करने का। राजपूतों में मोदी का साख बहुत मजबूत है। फिर भी उन्होंने हाल ही में राजपूत वर्ग को ताकत बख्श कर उनको राजनीतिक रूप से मजबूत करने की कुछ कोशिशें की हैं। वे इसमें सफल भी रहे हैं। मोदी गुजरात के राजपूतों को यह समझाने में कामयाब हुए हैं कि बीजेपी में थे, तो शंकरसिंह वाघेला जैसे कद्दावर राजपूत नेता बहुत ताकतवर नेता थे, लेकिन कांग्रेस ने वाघेला को अपने फायदे के लिए बीजेपी के विरोध में उपयोग करने के बाद किस तरह से करीब – करीब ठिकाने सा लगा दिया है। मोदी जानते हैं कि इस ताकतवर कौम के मन को, उसके प्रभाव को और उसकी ताकत को जानते हैं। इसीलिए वे यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि राजपूतों को सम्मान देकर ही अपने साथ बनाए रखा जा सकता है। यही वजह है कि प्रदीप सिंह जाड़ेजा को युवा क्षत्रिय नेता के रूप में आगे लाया जा रहा है तो भूपेंन्द्र सिंह चूड़ासमा को राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद पर बिठाकर मोदी ने साफ संकेत दिए हैं कि राजपूतों को सरकार और पार्टी में यथा सम्मान जगह दी जाएगी। लेकिन राजपूतों को अधिक सम्मान दिए जाने से कमजोर वर्ग के खिसक जाने के खतरे से भी मोदी बहुत अच्छी तरह वाकिफ हैं। इसीलिए गरीब मेले भी साथ के साथ शुरू कर रहे हैं।

 

पिछले स्थानीय निकाय और पंचायत चुनावों में अल्पसंख्यकों को पांच सौ से भी ज्यादा सीटें देकर मोदी उनको अपने साथ जोड़ने की कोशिश में कामयाब रहे हैं। इन चुनावों में बीजेपी के टिकट पर बहुत बड़ी संख्या में मुसलमान जीतकर आए तो एक यह बात भी साफ हो गई है कि गुजरात के गांव के मुसलमान को मोदी से कोई परहेज नहीं है। और अब मोदी गुजरात में वक्फ बोर्ड और हज कमेटी को फिर से सक्रिय करके उसमें भी कई लोगों की नियुक्ति करके मुसलमानों को यह समझाने में कामयाब हो रहे हैं कि जब जब गुजरात का जिक्र आता है तो हर बार सिर्फ दंगों की बात करके कांग्रेस दुनिया भर में पूरे गुजरात को कैसे बदनाम कर रही है। मोदी अल्प संख्यकों में यह सवाल खड़ा करने और उस पर चिंतन शुरू कराने में भी कामयाब रहे हैं कि कांग्रेस मुसलमानों को आखिर अपनी बपौती क्यों समझती है। किसी  को कुछ भी लगे और गुजरात कांग्रेस के नेता दिल्ली जाकर अपनी स्थिति अच्छी दिखाने की कोशिश में 10 जनपथ और 24 अकबर रोड़ को कुछ भी समझाने की कोशिश करे। लेकिन सच कुछ और है। अपनी तकलीफ यह है कि गुजरात कांग्रेस के नेता यह अच्छी तरह जानते हैं कि गुजरात के ग्रामीण इलाकों का मुसलमान मोदी से लगातार प्रभावित होता जा रहा है। फिर भी दिल्ली को वे उल्टी पट्टी पढ़ाते हैं। अपना मानना है कि दिल्ली जाकर गुजरात में कांग्रेस को मजबूत बताने की कोशिश में यहां के नेता पार्टी का कबाड़ा कर रहे हैं। यह हालात गुजरात में कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा खतरा है। जिसको गुजरात कांग्रेस के नेता समझ रहे हैं, फिर भी पता नहीं क्यों दिल्ली जाकर झूठ बोलते हैं। अपनी तकलीफ यह है कि अंदरूनी कलह, आपसी मतभेद और खेमेबाजी से नहीं उबर पा रही गुजरात कांग्रेस को तत्काल सावधान हो जाना चाहिए। वरना अपने को तो साफ दिख रहा है कि लगातार मजबूत होते मोदी अगले साल एक बार फिर गुजरात को अपने कब्जे में कर सकते हैं। आप भी यही मानते होंगे। मगर कांग्रेस अपनी आंखों की पट्टी खोले तब न…!