इस मोदी-मंत्र का हश्र क्या होगा?

      पिछले 25 दिन में बैंकों में लगभग 12 लाख करोड़ रु. जमा हो चुके हैं। सरकार के मुताबिक बाजार में 14.50 लाख करोड़ के 500 और 1000 के नोट चलन में थे। (सरकारों व एजेंसियों में रखी नकदी सहित) इसका मतलब यह हुआ कि अब बहुत कम बड़े नोट ही बचे हुए हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि बाकि के नोट भी एकाध हफ्ते में बैंकों में आ जाएंगे। याने जितना भी बड़े नोटों वाला नकद पैसा (सफेद और काला भी) बाजारों और घरों में था, वह बैंकों में आ जाएगा। यह सरकार की जबर्दस्त सफलता है। इतने कम समय में इतना पैसा सरकार ने करोड़ों लोगों से उगलवा लिया लेकिन सरकार के पास असली सवाल का जवाब क्या है? गरीब कल्याण कोष में कितना पैसा आएगा?

     असली सवाल यह है कि सरकार के खजाने में टैक्स कितना आएगा? खुद सरकार ही नहीं बता सकती, क्योंकि लाइन में लग-लग कर लोगों ने जो ढाई-ढाई लाख रु. जमा करवाए हैं, उन पर आप कोई आयकर नहीं थोप सकते। जिन लोगों ने करोड़ों रु. नकद देकर अपने खातों में उसे कर्ज दिखवा लिया है, उस पर भी आयकर नहीं लगता। जिन लोगों ने अपने नोट ट्रकों और कारों में भरकर नागालैंड, अरुणाचल और मणिपुर जैसे सीमांत क्षेत्रों के बैंकों में स्थानीय नामों से जमा करवा दिए हैं, वे भी करमुक्त हैं। नेपाल, भूटान, बांग्लादेश तथा अन्य पड़ौसी राष्ट्रों में भारतीय मुद्रा धड़ल्ले से चलती है।

      इन राष्ट्रों से आनेवाले करोड़ों-अरबों के पुराने नोट सरकार को लेने पड़ेंगे। इन पर भी टैक्स नहीं लगाया जा सकता। नक्सलियों, नेताओं, तस्करों और अफसरों ने अपना सारा छिपा धन सफेद कर लिया है और ऐसी तरकीब से कर लिया है कि वह टैक्स की गिरफ्त के बाहर रहे। खेती तो करमुक्त है ही। मोदी सरकार ने लाखों किसानों को रातोंरात लखपति बना दिया है। अमित शाह का जुमला सच साबित हो गया है। बैंकों में जमा यह कालाधन जब बाहर निकलेगा तो उसका रंग सफेद होगा।

      इन्हीं नए नोटों से रिश्वतें दी जाएंगी, तस्करी की जाएगी, आतंकी दनदनाएंगे और काला धन दुगुनी रफ्तार से पैदा होगा। मोदीजी महागुरु सिद्ध हुए। उन्होंने देश के करोड़ों किसानों, मजदूरों, कर्मचारियों और छोटे व्यापारियों को भी काले धन की कला का उस्ताद बना दिया। अभी वे सिर्फ काले को सफेद करने की दलाली कर रहे हैं लेकिन जब उनके हाथों में लाखों रु. आएंगे और जाएंगे तो उन्हें मोटी कमाई का चस्का भी शायद लग जाए। अभी देश की अर्थ-व्यवस्था पैंदे में बैठती-सी लग रही है लेकिन यदि करोड़ों लोगों को यह चस्का लग गया तो देश की अर्थव्यवस्था तो कुलाचे भरने लगेगी। अर्थशास्त्र के इतिहास में इसे ‘विकास का मोदी मंत्र’ के नाम से जाना जाएगा।