इक ग़ज़ल उसकी शान मेँ लिख दूँ

शायरोँ की जुबान मेँ लिख दूँ,

अपने ताजे दीवान मेँ लिख दूँ।

काब-ए-दिल मेँ तेरा नाम लिक्खा,

जाऊँ मैँ अब कुरान मेँ लिख दूँ।

जिसने इन जुल्फोँ को संवारा है,

इक ग़ज़ल उसकी शान मेँ लिख दूँ।

आईना टूटकर कहां बिखड़ा,

पत्थरोँ के मकान मेँ लिख दूँ।

दिल के लुटने की मुकम्मल दास्तां

अपने अश्कोँ के जाम मेँ लिख दूँ।