अदालती फैसलों पर सवाल

संत जेल में, डॉन बाहर

बिहार में लालू यादव के राज को जंगलराज बनाने वाला माफिया सरगना शहाबुद्दीन पटना हाई कोर्ट से जमानत मिलने के बाद भागलपुर जेल से बाहर है। शहाबुद्दीन अभी 50 साल का नहीं हुआ है पर उस पर 56 मामले दर्ज हैं। बिहार में आतंक का पर्याय बने शहाबुद्दीन को जमानत मिलने पर राज्य के लोग दहशत में हैं। शहाबुद्दीन पर मामले दर्ज कराने वाले तो खौफ के मारे बोलने से भी कतरा रहे हैं। शहाबुद्दीन के खौफ के कारण लोग यह भी भूल गए देश के पहले राष्ट्रपति बाबू राजेन्द्र प्रसाद की जन्म स्थली सीवान थी। अब तो लोग यही कहते हैं कि शहाबुद्दीन का नाम लो या सीवान का, बात एक ही है। ऐसे खूंखार हत्यारे की जमानत होना वाकई चौंकाता है। एक तरफ अदालतों से महीनों ऐसे लोगों की जमानत नहीं होती है, जिनके खिलाफ रंजिशन मुकदमे दर्ज करा दिए जाते हैं और दूसरी तरफ बिहार में गठबंधन सरकार के हिस्सेदार लालू यादव का गुणगान करने वाले शहाबुद्दीन को जमानत मिल जाती है। इसमें सरकार और पुलिस की भूमिका भी है।

अदालत के शहाबुद्दीन को जमानत देने के बाद यह सवाल भी उठ रहा है कि आखिरकार नाबालिग छात्रा के यौन उत्पीड़न के आरोप में तीन साल से जोधपुर जेल में बंद बुजुर्ग संत आसाराम को जमानत क्यों नहीं मिल रही है। पिछले महीने राजस्थान हाई कोर्ट ने आशाराम की नौंवी बार जमानत अर्जी खारिज कर दी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी संत आसाराम को राहत देने से इनकार कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मामले में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की मेडिकल जांच रिपोर्ट के बाद ही सुनवाई पर विचार किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जब तक एम्स में आसाराम की मेडिकल जांच नहीं होती और उस पर रिपोर्ट अदालत के समक्ष नहीं आती, जमानत विचार नहीं किया जा सकता।  स्वास्थ्य जांच के लिए एम्स ने दिल्ली से मेडिकल टीम जोधपुर भेजने में असमर्थता जताई थी। एम्स ने सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सात डॉक्टर की टीम का एक पैनल बनाया गया है और आसाराम की जांच के लिए सभी को जोधपुर नहीं भेजा जा सकता। एम्स का तर्क है कि टीम को जोधपुर भेजने से अस्पताल का काम प्रभावित होगा। ऐसे में अब जांच के लिए आसाराम को जोधपुर से फ्लाइट के जरिए दिल्ली लाया जाएगा। अब संत आशाराम जब दिल्ली आएंगे, तब जांच होगी। फैसला कब आएगा। कुछ नहीं कहा जा सकता है। वैसे तो तीन साल से जोधपुर जेल में बंद आसाराम की ओर से दायर जमानत याचिका में कहा गया कि इस मामले में सभी महत्वपूर्ण गवाह के बयान हो चुके है। आशाराम की तरफ से जमानत के लिए जो तर्क रखे गए थे, उनमें यह भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट भी वर्ष 2015 में कह चुका है कि सभी के बयान होने पर जमानत याचिका दायर की जा सकती है। ऐसे में अब गवाह को प्रभावित करने वाले हालात भी नहीं रहे। आसाराम ने स्वास्थ्य आधार पर एक से दो महीने की अंतरिम जमानत मांगी है। संत आशाराम को कोई गंभीर बीमारी न भी तो भी उम्र को देखते हुए अदालत को सहानुभूति तो बरतनी चाहिए। पर ऐसा नहीं हुआ।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों को लेकर व्यापक प्रतिक्रियाएं हुई हैं। खासतौर पर जन्माष्टमी पर महाराष्ट्र में दही हांडी में 20 फुट से ऊपर का पिरामिड बनाने पर पाबंदी लगा दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में बांबे हाईकोर्ट के आदेश को जारी रखा है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि 18 साल से कम उम्र के बच्चों को ‘गोविंदा’ की टोली में शामिल नहीं किया जाए। ऐसे में अब 20 फुट से उंची दही हांडी नहीं लगाई जा सकेगी। यह भी सबने देखा कि कई स्थानों पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं हुआ। क्या सुप्रीम कोर्ट इस तरह से अन्य धर्मों के मामले में दखल दे सकता है। तीन तलाक के मामले में तो मुसलिम संगठनों की तरफ साफतौर पर यह कहा गया है कि कोर्ट उनके धार्मिक मामलों में फैसला नहीं कर सकता है। एक जैसे राजनीतिक हालात होने के बावजूद अदालती फैसले अलग-अलग रहे। उत्तराखंड में मोदी सरकार द्वारा संविधान के अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राष्ट्रपति शासन लगाने के निर्णय को रद्द कर दिया। चीफ जस्टिस जोसफ ने कठोर टिप्पणी करते हुए कहा कि राष्ट्रपति और सरकार के निर्णय भी गलत हो सकते हैं। राष्ट्रपति पर की गई कठोर टिप्पणी को लेकर भी उस समय व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी। अरुणाचल प्रदेश में विधायकों के पाला बदलने के कारण गिरी थी। आखिर में यही साबित हुआ कि विधायकों की नाराजगी के कारण नबाम तुकी दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बन पाए।

राजस्थान हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट एक बुजुर्ग बीमार संत आशाराम की अंतरिम जमानत देने की अर्जी को ठुकरा देते हैं पर संगीन जुर्मों में सजायाफ्ता शहाबुद्दीन को जमानत मिल जाती है। शहाबुद्दीन पर जो मामले चल रहे हैं, उन्हें सुनकर ही लोग दहशत में आ जाते हैं। तेजाब कांड के आरोप में शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा दी जा चुकी है। 2004 में 16 अगस्त को सीवान के एक व्यवसायी चंद्रकेश्वर उर्फ चंदा बाबू के दो बेटों 23 साल के सतीश राज और 18 साल के गिरीश राज को अपहरण के बाद तेजाब से नहला दिया गया था। दोनों की मौत हो गई थी। इस हत्याकांड के चश्मदीद गवाह चंदा बाबू के सबसे बड़े बेटे राजीव रोशन थे लेकिन मामले की सुनवाई के दौरान 16 जून, 2014 को अपराधियों ने 36 साल के राजीव की गोली मारकर हत्या कर दी। आठ मामलों में तो शहाबुद्दीन को एक साल से लेकर उम्र कैद की सजा दी गई है। मार्च 1997 में सीवान में माकपा माले की नुक्कड़ सभा में जवाहर लाल नेहरू विवि छात्र संघ के अध्यक्ष रहे चंद्रशेखर को गोलियों से छलनी कर दिया गया था। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के कार्यकर्ता छोटे लाल गुप्ता के अपहरण और हत्या के मामले में शहाबुद्दीन को उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी। शहाबुद्दीन के ठिकानों से पुलिस को भारी मात्रा में विदेशी असलहे मिले थे। बिहार के जंगलराज में  पहली बार एके 74 भी शहाबुद्दीन ने चमकाई थी। 19 साल की आयु से जुर्म की दुनिया में उतरे शहाबुद्दीन पर हाल ही दैनिक हिन्दुस्तान के पत्रकार राजदेव रंजन ही हत्या कराने का आरोप लगा है। पत्रकार के पास शहाबुद्दीन से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य थे, जिनसे कई बड़े खुलासे होने वाले थे। इतना ही नहीं पत्रकार की हत्या में पुलिस जिस अपराधी शूटर मोहम्मद कैफ की तलाश कर रही है, वह शहाबुद्दीन के साथ खड़ा देखा गया। इसे लेकर मीडिया में बड़ी च्रर्चा है। यह शूटर भी पुलिस की मौजूदगी में शहाबुद्दीन के साथ दिखाई दिया और वह भी तब जब शहाबुद्दीन लालू यादव को अपना बताते हुए नीतीश कुमार को गरिया रहे थे। सुशासन बाबू नीतीश कुमार की पुलिस अभी तक इस शूटर को नहीं पकड़ पाई है। यह है नीतीश कुमार का अपराधमुक्त बिहार बनाने के दावे की असलियत। शहाबुद्दीन के बाहर आते ही राजदेव रंजन का परिवार दहशत में हैं। दहशत में चंदा बाबू का परिवार भी है, जिनके तीन बेटों को मार डाला गया। पत्रकार रंजन की पत्नी आशा रंजन ने सुरक्षा की मांग की है। शहाबुद्दीन पर अपने पति की हत्या की साजिश करने का आरोप लगाने वाली आशा रंजन को अब खुद अपनी हत्या का होने का डर सता रहा है। हो सकता है कि पटना हाई कोर्ट ने नीतीश सरकार की शहाबुद्दीन को खुल्ला छोड़ने की चाल के चलते जमानत दी हो, पर तमाम गवाहों के भयभीत होने के साथ ही अदालत के फैसले से जनता में दहशत है। बिहार भारतीय जनता पार्टी ने राज्यपाल को ज्ञापन देकर शहाबुद्दीन को प्रदेश से बाहर भेजने की मांग की है। कम से कम बिहार बदर करने से जनता को राहत मिलेगी। एक बड़ा सच तो यह भी है कि भागलपुर जेल में बंद रहते हुए भी शहाबुद्दीन संगीन वारदातें करा रहा था। जेल में ही उसका दरबार लगता था। यही खुलासा पत्रकार राजदेव रंजन करने वाले थे, पर उनकों ही खलास कर दिया गया।