‘अटल’ बन जाओ ‘नमो ‘..अब मत नमो…

देश की बागडोर करीब 2 साल पहले हमने कर्णधार के रुप में गुजराती मुख्यमंत्री रहे नरेन्द्र मोदी जी को सौंपी थी,यहाँ समझकर कि  राज्य की तरह की देश की रक्षा और विकास करेंगे.. पर यह क्या..ये तो अब भी ‘मन की बात’ ही कर रहे हैं,जबकि अब तो ‘लातों की बात/बरसात’ होनी चाहिए..अरे देश पर हमले आम बात हो चली है पर जवाब क्या..सबूत.. सबूत,और फ़िर अंतरराष्ट्रीय मंच से बेवफा पाकिस्तान को फ़टकार..अगर यही सब होना/देखना/करना था तो थोड़े पुराने पीएम क्या बुरे थे..वे करते नहीं थे तो बोलते भी कहाँ थे..2 जन.  2016  को पठानकोट में हमले में 7  जवान शहीद और 20 घायल..18  सितम्बर 2016 को उरी(कश्मीर) में  हमला यानी 17 जवान शहीद तो 20  घायल…और क्या चाहिए..आपने 1 गर्दन- सिर के बदले 10 सिर लाने की बात कही थी..तो क्या सबको पप्पू ही बनाया था..माननीय आँख-से-आँख डांलकर बात करने का समय भी अब जा चुका है..अब तो आपको भी पूर्व पीएम वाजपेई की तरह अटल निर्णय लेना होगा..उन्होंने लाख विरोध और सहयोगियों की फिक्र किए बिना पोकरण में अपनी ताकत सबको दिखा दी..नुकसान यही हुआ कि भारत पर कुछ प्रतिबंध लगा गए,पर सबने शक्ति सम्पन्न होने की खुशी में वह भी सह लिए..बाद में वह लगाने वालों ने हटा भी दिए..हम भी आपसे वैसी ही उम्मीद करते हैं कि बस एक बार ठोस क़दम उठा लीजिए..किसी की चिंता मत कीजिए,कोई चेतावनी देने की बजाय इनका मुंह तोड़ दीजिए..आतंक की खान बने पाक से अब क्या चर्चा करनी..और क्यों करनी..अपने घर में कचरा है तो साफ करिए,किसी बाहरी से नहीं पूछना.. शहीद जवानों को यही सच्चा और सादर नमन होगा..बहुत हो गए ‘जय हिन्द…’ के नारे..अब नमिए मत,आप एक बार सत्ता की चाशनी से अलग होकर अटल यानी 56 इंच वाले नरेन्द्र मोदी बन ही जाएँ..आज १७  जवान नहीं,१७  परिवार शहीद  हुए हैं.. उनकी जिंदगी उनके अपने के बिना कैसे कटेगी, सोचकर दिल दहल जाता है..सबने बहुत देख लिया कि पाक किस लायक है..अब बंदूक से बात कीजिए तो ही वो समझेगा..17 जवानों की लाशों और 140 करोड़ आँखों में आँसू की कीमत पर हमें विकास नहीं चाहिए..भ्रष्टाचार और डिजिटल इन्डिया की तकलीफ सह लेंगे पर इस पाकिस्तान को भी थोड़ी तकलीफ दिखाइए..कृपया अब तो जान देने वाले जवानों,परिवारों और आमजन को शर्मिंदा मत करिए..

सोते हुए सैनिकों को मारने से भी

अधिक कुछ और शर्मनाक होने की राह देखना छोड़िए..जम्मू-कश्मीर में अशांति फैलाने वाले नापाक पाक को घर में घुसकर मारना ही अब एकमात्र विकल्प है..हिजबुल मुजाहिद्दीन के  कमांडर बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद से ही कश्मीर घाटी में हिंसा, विरोध-प्रदर्शन की घटनाएं जारी हैं..और क्या देखना है सबको..क्या आप भूल गए कि,पाकिस्तान ने 19 जुलाई को ‘काला दिवस’ मनाया था..हर तनाव के मद्देनजर भारत और पाकिस्तान के बीच आतंकवाद और कश्मीर की स्थिति को लेकर तीखा वाक्युद्ध बरसों से चल रहा है..पर अब यह भी ज़रूरी नहीं है..अरे आतंकियों ने पहले भी ऐसे ही घटना को अंजाम दिया था..तब भी समझाया था..पर फायदा क्या..उसे सुधरना पसंद नहीं और हम उसकी तरह कभी बिगड़ते नहीं..इसी का मजा अमेरिका ले रहा है..ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण कब तक होता रहेगा..हम सबको गहरा दुःख है,पर हल क्या..शहीद होने वाले जवानों को अब हृदय से श्रद्धांजलि ही देने से ही काम नहीं चलेगा..निर्णय की घड़ी है..जिसका बेटा/पति गया है,उसे सुकून तभी मिलेगा,जब भारत भी बंदूक उठाएगा और चलाएगा..पीएम आगे आएं और सुहागनों की टूट चुकी चूड़ियों को भरोसा दिलाएं..कि अब हम मारेंगे,कोई हमें मार के नहीं जाएगा..बार-बार के ऐसे ऐसे श्रद्धासुमन नहीं चाहिए हमें..अब तो रक्षा मंत्री मौके को कहीं जाने और गृह मंत्री को आपात बैठक भी करने की ज़रूरत नहीं..और प्रधानमंत्री जी, आप घटना की निंदा मत कीजिए.. वरना मामला ठंडा पड़ जाएगा..अगर जवानों की शहादत को  बेकार नहीं समझते हैं तो पाकिस्तान को घटना का जिम्मेदार मानकर कारवाई कीजिए..अमेरिका के आगे पाकिस्तान को समझाने की भीख माँगकर भी तो देख/भुगत लिया..कई बार पाक में जाकर दोस्ती का हाथ बढ़ाया..पर नतीजा शून्य..इस शून्य को महाबली बनाने के लिए कुछ खास और पक्का कीजिए..वरना यही मानना पड़ेगा कि सिर्फ सरकार बदली है,बाकी सब वही का वही..कितनी

शर्म की बात है कि सेना के जवानों की जान जाने पर अफ़सोस सब जताएंगे लेकिन आतंकी के जनाजे जितनी भीड़ इनकी शवयात्राओं में नहीं जुटेगी..बुरहानों,याकूबों,अफ़ज़लों के नाम तो सबको याद हैं पर शहीदों के नहीं..आपसे क्षमा चाहूँगा कठोर वाक्यों के लिए ,पर कृपया अब कहिए मत..कुछ करिए..वरना इतिहास और जनता आपको भी…